खबरिस्तान नेटवर्क, बैंगलोर। रक्षाबंधन श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, यह एक ऐसा बंधन है जो आपकी रक्षा करता है। यह प्यार और अपनेपन का उत्सव है जिसे जाति, वर्ग, धर्म या लिंग के मतभेदों से ऊपर उठकर हर कोई मनाता है। यह धागा जो बहन के प्रेम और उदात्त भावनाओं से स्पंदित होता है, सही मायने में 'राखी' कहलाता है और तब यह मात्र सामाजिक प्रतीक नहीं रह जाता, जब यह भावनात्मक रूप से सभी को जोड़ता है। भारत के विभिन्न हिस्सों में रक्षाबंधन को रखड़ी, बलेवा और सलुनो भी कहा जाता है।
गुणवत्ता के आधार पर बंधन तीन प्रकार के होते हैं: सात्विक, राजसिक और तामसिक। सात्विक बंधन ज्ञान, हर्ष और आनंद से बंधा होता है; राजसिक बंधन वह है जहां आप सभी प्रकार की इच्छाओं और लालसाओं से बंधे होते हैं; और तामसिक बंधन में किसी प्रकार का संबंध तो होता है लेकिन उसमें तृप्ति या संतुष्टि का अभाव होता है। उदाहरण के लिए, धूम्रपान का आदी व्यक्ति इससे आनंद प्राप्त नहीं कर सकता, किंतु उसे छोड़ने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। रक्षाबंधन को सात्विक बंधन माना जाता है, जो ज्ञान और स्नेह के माध्यम से सभी को जोड़ता है।
हालाँकि आज इसे भाई-बहनों के त्योहार के रूप में देखा जाता है, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं रहा है। ऐतिहासिक रूप से, राखी की अवधारणा विभिन्न परिदृश्यों में सुरक्षा का प्रतीक है। इसे माँ, पत्नी या बेटी भी बांध सकती है। ऋषि उन लोगों को राखी बांधते थे जो उनका आशीर्वाद मांगते थे। मुनिजन इस पवित्र धागे को बुराई के खिलाफ ढाल के रूप में इस्तेमाल करते थे। कुछ परंपराओं में, यह 'पाप तोड़क, पुण्य प्रदायक पर्व' है या वह दिन है जो वरदान देता है और सभी पापों को समाप्त करता है। अगस्त महीने की पूर्णिमा का दिन द्रष्टाओं व ऋषियों को भी समर्पित है।
जब हम एक विविधता पूर्ण समाज में रहते हैं, तो यह स्वाभाविक है कि लोगों में कुछ तर्क, मतभेद और गलतफहमियाँ होंगी, जो तनाव, असुरक्षा और भय पैदा करती हैं। जो समाज भय और अविश्वास में रहता है वह नष्ट हो जाता है। यह रक्षा बंधन जैसे पर्व हैं जहां हम एक-दूसरे को आश्वासन देते हैं, "देखो, मैं तुम्हारे साथ हूं।"
हम आम तौर पर सोचते हैं कि बंधन दुख लाता है। लेकिन वास्तव में यदि आप आध्यात्मिक ज्ञान, गुरु, सत्य, तथा आत्मा के साथ बंधे होते हैं तो सुरक्षित रहते हैं।एक रस्सी आपकी रक्षा के लिए भी और आपको मारने के लिए भी बाँधी जा सकती है। सांसारिक इच्छाओं से बंधा छोटा मन आपको घुटन का अनुभव करा सकता है लेकिन जब यह विशाल मन व ज्ञान से बंध जाता है, तो आप मुक्त हो जाते हैं।