भले ही कोविड-19 के मामले अभी कम हैं लेकिन बीते सालों में इसने जो तबाही की है उसके बारे में कौन भूल सकता है। हाल ही में एक स्टडी में कोविड को लेकर चुकाने के वाली बात सामने आई है।
इस स्टडी में पाया गया है कि कोविड से ठीक हुए यूरोपियन और चाइनीज लोगों की तुलना में भारतीय लोग फेफड़े से जुड़ी समस्या से काफी ज्यादा प्रभावित हुए हैं। आइए जानते हैं आखिर इस स्टडी के पूरी सच्चाई क्या है और भारतीय लोग ही क्यों लंग की प्रॉब्लम से प्रभावित हैं ।
स्टडी के दौरान क्या पाया गया
PLOS ग्लोबल पब्लिक हेल्थ जर्नल में पब्लिश स्टडी के मुताबिक SARS-CoV-2 के कारण कोरोना से ठीक होने वाले लोगों के लंग्स पर काफी ज्यादा खतरनाक असर पड़ा है। इस स्टडी में उन 207 व्यक्तियों पर स्टडी की गई है जो कोरोना होने के बाद ठीक हुए थे।
स्टडी के दौरान शामिल हुए सभी लोगों का सेंसिटिल लंग फंक्शन टेस्ट करवाया गया जिसे गैस ट्रांसफर (DLCO) भी कहा जाता है। दरअसल यह टेस्ट हवा से सांस लेने पर शरीर के रक्तप्रवाह में ऑक्सीजन कितनी देर में लेते हैं उसे मापने का काम करता है। यह टेस्ट 44 प्रतिशत तक प्रभावित हुआ है।
CMC डॉक्टरों ने इस कंडीशन को काफी खतरनाक बताया है। जिसमें 35% लोगों में रेस्ट्रिक्टिव लंग डिफेक्ट पाया गया। यह सांस लेने और फेफड़ों में हवा फुलाने में अधिक प्रभावित किया है। इसके अलावा स्टडी में क्वालिटी ऑफ लाइफ टेस्ट में भी नेगेटिव इम्पैक्ट देखने को मिल है।
दूसरे देशों के मुकाबले क्यों है ज्यादा भारतीय प्रभावित
बता दें कि सीएमसी वेल्लोर के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर और इस स्टडी के प्रिंसिपल इंवेस्टिगेटर डॉ. डीजे क्रिस्टोफर बताते हैंकि दूसरे देश के मुकाबले डायबिटीज और बीपी के पेशेंट की हालत काफी ज्यादा खराब है।
वहीं इस गंभीर स्थिति में पेशेंट भर्ती होने के बाद ऑक्सीजन सपोर्ट और स्टेरॉयड ट्रीटमेंट देने से मरीज ठीक हो जाता है। लेकिन अगर इंफेक्शन बढ़ जाए तो यह बीमारी 95 प्रतिशत तक फेफड़े को नुकसान पहुंचा सकती है।