ख़बरिस्तान नेटवर्क : जालंधर सेंट्रल से आप के विधायक रमन अरोड़ा के घर विजिलेंस रेड के तार नगर निगम की बिल्डिंग ब्रांच से जुड़ते दिखाई दे रहे हैं। इससे पहले जालंधर में असिस्टेंट टाउन प्लानर (ATP) सुखदेव वशिष्ठ की गिरफ्तारी हुई थी। तब से निगम का ये डिपार्टमेंट चर्चा में है। राजनीति और अफसरशाही की खिचड़ी में आम जानता और कालोनाईजर पिस रहे थे। हालांकि पंजाब में सीएम भगवंत मान की सरकार लगातार नगर निगम में करप्शन कम करने के लिए काम कर रही है। रमन अरोड़ा के घर विजिलेंस रेड के बाद सीएम भगवंत मान ने करप्शन के खिलाफ अपना स्टैंड क्लियर किया है। आप पंजाब ने ट्विटर पेज पर लिखा है कि अपना हो या बेगाना भ्रष्टाचार किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं। रमन अरोड़ा के लिए लिखा है कि अफसरों से झूठे नोटिस भिजवाकर मामला रफादफा करने के बदले बड़ी रकम लेता था।
वशिष्ठ से जुड़े तार
ये जग जाहिर है कि जब से रमन अरोड़ा विधायक बने हैं उनका नगर निगम से कुछ ज्यादा ही प्यार रहा है। अक्सर शहर में होने वाली सीलिंग ये निगम के एक्शन में रमन अरोड़ा किसी न किसी तरीके से आ जाते थे। नगर निगम में मेयर बनने के बाद रमन अरोड़ा का दखल हालांकि निगम में कुछ घटा था। मगर पूरी तरह बंद नहीं हुआ था।
कभी नहीं रुकी अवैध कालोनियां
जब कहीं कोई अवैध इमारत या कालोनियां बनती हैं तो बिल्डिंग ब्रांच का काम इस पर नजर रखना और रोकना है। मगर पिछले कई दशकों से जालंधर में अवैध निर्माण और अवैध कालोनियां कटती ही रहती हैं। कुछ मामलो में एक्शन भी होता है। बिल्डिंग ब्रांच के अधिकारियों पर आरोप है कि वे बिना उचित अनुमति के अवैध निर्माण को बढ़ावा देते हैं, जिससे नगर निगम को राजस्व का नुकसान होता है ।
बिल्डिंग ब्रांच और सियासत साथ-साथ ही चलती है। कभी सियासत के दबाव में काम रुकता, कभी शुरू होता है। विधायक रमन अरोड़ा का नाम भी इसी सीरिज में जुड़ रहा है। सूत्रों के मुताबिक रमन अरोड़ा की गिरफ्तारी का मामला एटीपी वशिष्ठ से जुड़ा हुआ है।आरोप लगते रहे हैं कि राजनीतिक नेताओं के प्रभाव में आकर अफसर नियमों की अनदेखी करते हैं, जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। कुछ आर्किटेक्ट्स पर आरोप है कि वे गलत दस्तावेजों के माध्यम से अवैध निर्माण को वैध बनाने में मदद करते हैं, जिससे नियमों का उल्लंघन होता है।
बिल्डिंग ब्रांच में करप्शन के रास्ते
लोग जब मकान, दुकान या बिल्डिंग बनवाने के लिए नगर निगम से नक्शा पास करवाने आते हैं, तो बिना रिश्वत मंजूरी नहीं मिलती। फाईलें रोकी जाती हैं।
कई बार लोग निर्धारित FAR (Floor Area Ratio) से ज़्यादा निर्माण करते हैं। अफसर ऐसे निर्माण को देखकर भी कार्रवाई नहीं करते।
आरोप है कि नक्शे से अलग बन रही इमारतों पर कार्रवाई कम होती है।
आरोप है कि पहले अवैध निर्माण होने दिया जाता है। फिर नोटिस आता है और सेटिंग होती है।
आरोप है कि अफसर कुछ खास आर्किटेक्ट्स और बिल्डरों के साथ मिलकर काम करते हैं। इनसे आने वाली फाइलों को जल्दी पास कर दिया जाता है, जबकि आम नागरिकों को परेशान किया जाता है।
नकली दस्तावेज या अधूरे प्लान पास कर दिए जाते हैं क्योंकि "हिस्सेदारी" तय होती है।
ऐसे खत्म हो सकती है करप्शन
नगर निगम की बिल्डिंग ब्रांच को करप्शन फ्री करने के लिए इच्छाशक्ति, पारदर्शिता और टेक्नोलॉजी के सही इस्तेमाल करना होगा।
डिजिटल प्रोसेस और ट्रैकिंग-ऑनलाइन नक्शा मंजूरी प्रणाली (AutoDCR/OBPAS): हर फाइल की स्टेज ट्रैक हो, ताकि कौन-सी फाइल कब, किस टेबल पर रुकी है, यह पता चल सके।
SMS और ईमेल अलर्ट: हर बार जब फाइल मूव हो, नागरिक को सूचना मिले।
हर पेमेंट ऑनलाइन हो, कैश का कोई स्कोप न हो।
Approved Maps/Rejected Files की लिस्ट ऑनलाइन हो।
हर ATP/जूनियर इंजीनियर के KPI (काम का मूल्यांकन) सार्वजनिक हो।
अफसरों को एक दिन जनता का दरबार लगाने के लिए कहा जाए, जिस दिन वह लोगों से सीधे मिलें। इसमें जनप्रतिनिधि और मीडिया को भी रहना चाहिए।
जिन अधिकारियों पर शिकायत हो, उनकी स्वतंत्र जांच हो और दोषी पाए जाने पर FIR हो।
ट्रांसफर पॉलिसी लागू हो, एक ही व्यक्ति को वर्षों तक एक ब्रांच में न रखा जाए।
सरकार की ओर से नेताओं को निर्देश दिया जाए कि बिल्डिंग ब्रांच में "सिफारिश" न करें।
आर्किटेक्ट्स और बिल्डरों पर निगरानी रखी जाए। नियम तोड़ने वाले आर्किटेक्ट्स का लाइसेंस रद्द होना चाहिए।