world health organization ने पूरी दुनिया में अकेलेपन की बढ़ती समस्या को देखते हुए इसके समाधान के लिए कदम उठाया है। डब्ल्यूएचओ की ओर से एक तकनीकी सलाहकार समिति का गठन किया गया है। समिति अब इंटरनेशनल लेवल पर इस मुद्दे से निपटने के लिए सिस्टम की पहचान करने में सहायता के लिए विशेषज्ञों की तलाश कर रही है। अकेलापन कई तरह की स्वास्थ्य समस्या लेकर आती है। इसकी वजह से डब्ल्यूएचओ की चिंता बढ़ी है।
अकेलेपन और सामाजिक अलगाव के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम होते हैं, और मृत्यु दर के जोखिम में बढ़ोतरी होती है। एजवेल फाउंडेशन के एक हालिया सर्वे में वरिष्ठ नागरिकों के बीच अकेलेपन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी का पता चला है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने अधिक समावेशी नीतियों को बनाने की अपील की है। खोजे गए विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी को उन सिस्टम को पहचान करने में मदद करेंगे जिनका उपयोग इस मुद्दे को वास्तविक इंटरनेशनल सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में स्थापित करने के लिए किया जा सकता है।
अकेलेपन से निपटने के लिए कमेटी
वे सामाजिक जुड़ाव को बढ़ावा देने और सामाजिक अलगाव और अकेलेपन को कम करने के लिए प्रभावी इंटरफेयरेंस की मैपिंग और पहचान में भी मदद करेंगे। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, सामाजिक अलगाव और अकेलापन जो सामाजिक संबंधों में कमी को दर्शाता है, सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है। यह मृत्यु दर, फिजिकल और मेंटल हेल्थ (सुसाइड जोखिम समेत) कई तरह के गंभीर परिणाम सामने आते हैं और आ सकते हैं।
इसके पीछे कोरोना है वजह
कोरोना महामारी के बाद से तो अकेलेपन की समस्या और भी बढ़ गई है। लोगों को घर के अंदर रहने की आदत हो गई है। कुछ लोग बाहर निकलने से डरने लगे हैं। हालांकि दुनिया को कमरे में कैद करने वाला यह वायरस के कमजोर पड़ने की वजह से लोग बाहर निकलने लगें। लोगों से मिलना जुलना शुरू हो गया है। लेकिन कुछ लोग ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। अगर आपके आसपास या फैमिली में कोई सदस्य अकेलेपन का शिकार है तो उससे बातचीत कीजिए। उसे कमरे से बाहर निकालने की कोशिश कीजिए। उसपर नजर रखिए।
भारत में 20 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन के शिकार
साल 2021 की एक रिपोर्ट की मानें तो डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, भारत में 20 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन (अवसाद) सहित अन्य मानसिक बीमारियों के शिकार हैं। भारत में काम करने वाले लगभग 42 प्रतिशत कर्मचारी डिप्रेशन और एंग्जाइटी (व्यग्रता) से पीड़ित हैं। डिप्रेशन और अकेलापन भारत सहित पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है और इसे केवल समाज की जिम्मेदारी मानकर नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। अकेलेपन में घिरा हुआ व्यक्ति स्वयं अपने विनाश का कारण बन जाता है, वह जीवन के बारे में न सोच कर, मृत्यु के बारे में सोचने लगता है। अकेलेपन का शिकार व्यक्ति जीवन भर परेशान रहता है और उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया भर के युवाओं की मौत की तीसरी सबसे बड़ी वजह आत्महत्या है और इसका सबसे बड़ा कारण अकेलापन ही है। यूं तो अकेलापन कहने को केवल एक शब्द है, लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते, किंतु हाल की स्थितियों को देखते हुए दुनिया भर के देशों ने अब इसे गंभीरता पूर्वक लेना शुरू कर दिया है।