इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जनता को जानने का पूरा हक है कि चुनाव का पैसा कहा से आ रहा है कहा जा रहा हैं। इससे केंद्र सरकार को बड़ा झटका देखने को मिल रहा है।
SBI को तीन हफ्ते में देनी होगी रिपोर्ट
इसलिए इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना का अधिकार उल्लंघन है। चीफ जस्टिस ने कहा कि पॉलिटिकल प्रॉसेस में राजनीतिक दल अहम यूनिट होते हैं। SC ने कहा कि SBI को तीन हफ्ते में रिपोर्ट देनी होगी। कोर्ट ने कहा कि 2019 से अब तक SBI को चुनाव आयोग को जानकारी देगी।
पॉलिटिकल फंडिंग की जानकारी वह प्रक्रिया है जिससे मतदाता को वोट डालने के लिए सही चॉइस मिलती है। वोटर्स को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार, इससे मतदान के लिए सही चयन होता है। राजनीतिक पार्टियों को बड़ा चंदा गोपनीय रखना असंवैधानिक है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम सूचना के अधिकार के अधिनियम का उल्लंघन है। ब्लैक मनी पर नकेल कसने के लिए सूचना के अधिकार का उल्लंघन न्यायोचित नहीं है। चुनावी बॉन्ड के अलावा कोई और विकल्प भी है। पैसे कहां से आ रहे कहां जा रहे ये जानना जरूरी।
2023 नवंबर में फैसला रखा था सुरक्षित
CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने तीन दिन की सुनवाई के बाद 2 नवंबर 2023 को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई में कोर्ट ने पार्टियों को मिली फंडिंग का डेटा नहीं रखने पर चुनाव आयोग से नाराजगी जताई थी।
अदालत ने आयोग से कहा था कि राजनीतिक दलों को 30 सितंबर तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए जितना पैसा मिला है, उसकी जानकारी जल्द से जल्द दें।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने सरकार से पूछा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड की क्या जरूरत है। सरकार तो ऐसे भी जानती है कि उन्हें चंदा कौन दे रहा है। इलेक्टोरल बॉन्ड मिलते ही पार्टी को पता चल जाता है कि किसने कितना चंदा दिया है।