आज कल इतनी बीमारियाँ हो गयी है कि पता ही नहीं चलता कि आप कब कौन सी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। दरअसल एंडोमेट्रियोसिस महिलाओं में होने वाली गर्भाशय से संबंधित समस्या है। इसमें गर्भाशय के अंदर के टिशू बढ़ जाते हैं और गर्भाशय के बाहर तक फैलने लगते हैं।
यह फैलोपियन ट्यूब और अंडाशय के बाहरी और अंदरूनी हिस्सों में भी फैल जाते हैं। इससे महिलाओं को तेज दर्द की शिकायत रहती है। ये दर्द तब ज्यादा होता है जब उनका मासिक चक्र आता है। यह ऊतक गर्भाशय के अंदर वाले ऊतक की तरह ही होता है।
लेकिन मासिक चक्र के समय यह बाहर नहीं निकल पाता है, जिसके कारण दर्द ज्यादा महसूस होता है। इस समस्या के कारण महिलाओं में फर्टिलिटी क्षमता भी कम होने लगती है। तो आज हम बताने वाले हैं कि एंड्रियोमेट्रिओसिस की समस्या क्यों होती है और इससे लिस तरह से बचा जा सकता है।
आखिर एंडोमेट्रिओसिस होने के क्या कारण होते हैं
बता दें एंडोमेट्रियोसिस होने का एक कारण है रेट्रोग्रेड मेंस्ट्रुएशन। जिसमें मासिक धर्म के दौरान खून में एंडोमेट्रियल कोशिकाएं आमतौर पर शरीर से बाहर नहीं निकलती हैं। साथ ही यह फैलोपियन ट्यूब से पैल्विक केविटी में वापस प्रवाहित होने लगती हैं।
एंडोमेट्रियल सेल्स सभी पेल्विक अंगों पर चिपक जाती हैं और मासिक धर्म चक्र के दौरान ब्लीडिंग शुरू कर देती हैं।
दूसरा कारण पेरिटोनियल सेल्स का बदलना हो सकता है। जिसे इंडक्शन थ्योरी कहते हैं। पेरिटोनियल कोशिकाओं में बदलाव होने के कारण एंडोमेट्रियोसिस होने की संभावना रहती है। इसमें एस्ट्रोजन जैसे हार्मोन शुरुआती अवस्था में भ्रूण की कोशिकाओं को परिवर्तित कर सकते हैं।
वहीँ जब किसी प्रकार की सर्जरी कराई जाती है, जैसे सी-सेक्शन या हिस्टेरेक्टॉमी जैसी सर्जरी कराने पर एंडोमेट्रियल कोशिकाएं सर्जरी के चीरे से चिपक सकती हैं।
कमजोर इम्युनिटी भी इसके होने का सबसे बड़ा कारण बनता है। जिसकी वजह से एंडोमेट्रियल ऊतकों को प्रतिरक्षा प्रणाली नष्ट नहीं कर पाती है।
इस तरह से एंडोमेट्रिओसिस से बचाव करें
- बता दें शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन को कम करके एंडोमेट्रियोसिस होने की संभावना से बचा जा सकता है
- एस्ट्रोजन मासिक धर्म चक्र के समय गर्भाशय की लाइनिंग मोटी हो जाती है। इसके लिए हार्मोनल गर्भनिरोधक दवाओं या गर्भनिरोधक उपचारों के माध्यम से एस्ट्रोजन का लेवल कम किया जा सकता है
- नियमित रूप से व्यायाम करने से भी एस्ट्रोजन हार्मोन का लेवल कम किया जा सकता है
- कैफीन युक्त पदार्थों का सेवन कम करें
- इसके अलावा महिलाओं को अपनी डाइट का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए