छोटे बच्चे गोलू-मोलू से हों तो वे सभी को खूब अच्छे लगते हैं। लेकिन तब क्या हो जब बच्चा तो बड़ा हो जाए लेकिन उसका वजन कम होने का नाम ही न ले। बढ़ा हुआ वजन न केवल बड़े लोगों बल्कि छोटे बच्चों के लिए भी काफी परेशानी का कारण बन जाता है। वहीं 5 से 15 साल के बीच के बच्चों का वजन यदि जरूरत से ज्यादा हो जाए तो ये कई तरह की बीमारियों का कारण बन जाता है। कुछ बच्चों में मोटापा मेटाबॉलिक डिसऑर्डर और अनुवांशिक कारणों से होता है। तो वहीं ज्यादातर बच्चों में मोटापा खराब-खानपान और अस्त व्यस्त दिनचर्या के कारण होता है। आज हम इस लेख के माध्यम से हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे मोटापा बच्चों में कई तरह के रोगों का कारण बन जाता है।
क्या है मेटाबोलिक सिंड्रोम?
मेटाबॉलिक सिंड्रोम कोई एक बीमारी नहीं है बल्कि ये कई सारी बीमारियों का एक ग्रुप है। जिससे ज्यादातर 10 साल तक की आयु के बच्चे प्रभावित होते है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को दिल की समस्या और टाइप-2 डायबिटीज होने के चांस काफी हद तक बढ़ जाते हैं। मेटाबोलिक सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के पेट के निचले भाग में बहुत ज्यादा चर्बी जमा हो जाती है और इनका ब्लड प्रेशर भी हाई रहता है।
खानपान और लाइफस्टाइल में करें बदलाव
खानपान और लाइफस्टाइल में कुछ जरूरी बदलाव करके इस बीमारी के खतरे को काफी कम किया जा सकता है। इसके अलावा वेट लॉस करके, ब्लड प्रेशर को नियंत्रण में रखकर भी इस बीमारी के खतरे को कम किया जा सकता है। 5 से 15 साल की उम्र के बच्चों में मोटापा को बढ़ने से रोकना चाहिए। इसके साथ ही डाइटीशियन की मदद से भी मोटापा कंट्रोल कर सकते हैं। बच्चों को बाहर का खाना कम से कम खाने दें। बच्चों को जंक फूड और फास्ट फूड से दूर रखें। सॉफ्ट ड्रिंक्स(शुगर वाली ड्रिंक) पीने के लिए न दें। खाने में फल और सब्जियां भरपूर दें।बच्चों का स्क्रीन टाइम काफी कम रखें। बच्चों को फिजिकली एक्टिव रखें।
इंसुलिन रेजिस्टेंस हो जाता है शरीर
मेटाबोलिक सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों का सबसे मुख्य लक्षण है कि वह काफी ओवरवेट होने लगते हैं। ज्यादा वजन होने के कारण उनका शरीर इंसुलिन के प्रति रेजिस्टेंस हो जाता है। इंसुलिन ग्लूकोज को हमारे शरीर की कोशिकाओं में ले जाने का काम करता है। जब शरीर इंसुलिन को ठीक से प्रोसेस नहीं कर पाता है तो हमारा शरीर इंसुलिन के प्रति रेजिस्टेंस हो जाता है