भारत के सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कुछ दवाईयां लैब टेस्ट में फेल हुई हैं। जो अब लोगों के लिए चिंता विषय बन गई है। वहीं दूसरी ओर दवाओं की बढ़ती कीमतें आम लोगों के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार, इन दवाओं को NSQ (गुणवत्ता मानक के अनुरूप नहीं- नो स्टैंर्ड क्वालिटी) घोषित किया गया है।
ये दवाईयां लैब टेस्ट में फेल
जो दवाईयां लैब टेस्ट में फेल हुई है वह है डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों को कंट्रोल करने वाली कुछ दवाएं एसिड रिफ्लक्स, विटामिन और कैल्शियम सप्लीमेंट्स, साथ ही बच्चों के लिए बैक्टीरियल संक्रमण के इलाज के लिए दी जाने वाली एंटीबायोटिक दवाएं समेत 53 दवाएं लैब टेस्ट में फेल हैं।
भारत में डायबिटीज के मरीज 10 करोड़
भारत में डायबिटीज के 10 करोड़ से ज्यादा मरीज हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, आमतौर पर डायबिटीज के कुल मरीजों में से 80 फीसदी से ज्यादा टाइप-2 वाले होते हैं। इसी तरह भारत में हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों की संख्या भी 20 करोड़ है। ऐसे में अब सोचिए कि इतनी बड़ी आबदी जिस बीमारी की दवा खाती है उनकी क्लाविटी अच्छी नहीं है।
दो कंपनियों की दवा की क्वालिटी खराब मिली
जो दवाएं टेस्ट में फेल हुई हैं उनमें हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने वाली मेडिसिन टेल्मिसर्टन और टाइप-2 डायबिटीज की दवा ग्लिमेपिराइड भी शामिल है। हालांकि इन नाम की सभी मेडिसिन फेल नहीं है, इन दवाओं को बनाने वाली दो कंपनियों की दवा की ही क्वालिटी खराब मिली है।
ये दवाएं हुईं टेस्ट में फेल
रिपोर्ट में इन दवाओं की क्वालिटी, स्टैंडर्ड पर खरी नहीं उतरी पैरासिटामोल टैबलेट्स (500 mg): हल्के बुखार और पेन किलर के तहत प्रयोग की जाती है, आमतौर पर ये प्राथमिक उपचार का हिस्सा है और हर घर में सामान्य तौर पर पाई ही जाती है।
ग्लाइमेपिराइड: यह एक एंटी-डायबिटिक दवा है, जिसका उपयोग शुगर के इलाज में किया जाता है. इसका निर्माण अल्केम हेल्थ ने किया था।
टेल्मा H (टेल्मिसर्टान 40 mg): ग्लेनमार्क की यह दवा हाई बीपी के इलाज में दी जाती है. परीक्षण में यह दवा भी बिलो स्टैंडर्ड रही है।
Pan D: एसिड रिफ्लक्स के इलाज दी जाने वाली यह दवा भी गुणवत्ता परीक्षण में असफल रही. इसे अल्केम हेल्थ साइंस ने बनाया था।
शेल्कल C और D3 कैल्शियम सप्लीमेंट्स: शेल्कल को Pure & Cure हेल्थकेयर द्वारा निर्मित और टोरेंट फार्मास्यूटिकल्स द्वारा वितरित किया गया, जो परीक्षण में मानकों पर खरा नहीं उतरा।
क्लैवम 625: यह एक एंटीबायोटिक दवा है-
सेपोडेम XP 50 ड्राई सस्पेंशन: बच्चों में गंभीर बैक्टीरियल संक्रमण के इलाज में दी जाने वाली यह दवा, हैदराबाद की हेटेरो कंपनी द्वारा बनाई गई थी.क्वालिटी टेस्ट में असफल रही।
Pulmosil (इरेक्टाइल डिसफंक्शन के लिए): सन फार्मा द्वारा बनाई गई, इरेक्टाइल डिसफंक्शन के इलाज के लिए दी जाती है।
Pantocid (एसिड रिफ्लक्स के लिए): एसिडिटी और रिफ्लक्स के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली सन फार्मा की यह दवा भी फेल पाई गई।
Ursocol 300: सन फार्मा की यह दवा भी गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतरी।
Defcort 6: मैकलॉयड्स फार्मा की यह दवा, जो गठिया के इलाज में दी जाती है, गुणवत्ता परीक्षण में फेल रही।
इस कंपनी की दवाई हुई टेस्ट में फेल
मैसर्स, मैस्कॉट हेल्थ सीरीज़ प्रा. लिमिटेड की ओर से बनाई जा रही ग्लिमेपिराइड लैब टेस्ट में फेल हुई है। इस बीच यह जानना भी जरूरी है की टेस्ट में फेल दवाएं अगर कोई खा चुका है तो वह कैसे शरीर को नुकसान पहुंचाती है। क्या सभी दवाएं ही खराब हैं?
इन दवाओं को खाने से सेहत होती है खराब
रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में मेडिसिन के डॉ. अजय कुमार बताते हैं कि लैब टेस्ट में फेल होने वाली दवाएं वह होती हैं। जिनको खाने से सेहत खराब हो सकती है। आमतौर पर दवा किडनी और लिवर को खराब करती है, चूंकि डायबिटीज और हाई बीपी की दवाएं लोग आमतौर पर हर दिन ही खाते हैं तो अगर टेस्ट में फेल दवा कोई खा चुका है तो इससे लिवर में खराबी या किडनी की कोई बीमारी होने की आशंका रहती है।
सभी दवाईंयां खराब नहीं
हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि लैब टेस्ट में फेल होने का ये मतलब नहीं है की भारत या दुनिया में मौजूद सभी ग्लिमेपिराइड और टेल्मिसर्टन दवा खराब हैं। ऐसा बिलकुल नहीं है।