ख़बरिस्तान नेटवर्क : पंजाब सरकार ने बड़ा यू-टर्न लेते हुए 'लैंड पूलिंग पॉलिसी' वापस ले ली है। आवास एवं शहरी विकास विभाग के प्रमुख सचिव ने लिखित में इसकी जानकारी दी है। आख़िरकार, किसानों ने मुख्यमंत्री भगवंत मान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है। सरकार कह रही है कि उसने किसानों के हित में यह फ़ैसला लिया है। लेकिन यही एकमात्र कारण नहीं है। आख़िरकार 'आप' सरकार को किसानों के गुस्से के आगे झुकना क्यों पड़ा?
ज़ाहिर है, सबसे बड़ा कारण ख़ुद किसान ही थे। पंजाब सरकार ने 4 जून को लैंड पूलिंग पॉलिसी को मंज़ूरी दी थी और 25 जुलाई को कैबिनेट ने इस पॉलिसी में संशोधन किया था। 'आप' सरकार ने अख़बारों में विज्ञापन देकर और प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इस पॉलिसी को किसान हितैषी बताया था।
लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा ने इस पॉलिसी के ख़िलाफ़ बिगुल बजा दिया था। हर रोज़ कहीं न कहीं किसान सरकार के पुतले जला रहे थे। पंजाब के किसानों के गुस्से को भांपते हुए सरकार ने यह फ़ैसला लिया है। पंजाब सरकार ने लैंड पूलिंग नीति के तहत 65,533 एकड़ ज़मीन अधिग्रहण करने का फ़ैसला किया था।
दूसरा बड़ा कारण विपक्षी दलों कांग्रेस और अकाली दल को लगातार मिल रहा फ़ायदा था। आम आदमी पार्टी ने दोनों दलों को राजनीति करने का मौक़ा दिया और दोनों ने इसका भरपूर फ़ायदा उठाया। इन मोर्चों ने राजनीतिक वेंटीलेटर पर पड़े अकाली दल को ऑक्सीजन देने का काम किया है।
कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल ने पूरे पंजाब में विरोध रैलियाँ भी कीं। अब, 1 सितंबर से मोहाली में स्थायी रूप से विरोध प्रदर्शन की तैयारी की जा रही थी। इस बीच, मोहाली में विकास भवन स्थित आम आदमी पार्टी के आवास का घेराव करने की योजना थी, जबकि भाजपा ने 17 अगस्त से 'ज़मीन बचाओ, किसान बचाओ यात्रा' निकालने का ऐलान किया था। विपक्ष की राजनीति को रोकने के लिए सरकार ने इस मोड को कम करना बेहतर समझा है।
तीसरा बड़ा कारण सरकार की अपनी समीक्षा थी, जिससे पार्टी के भीतर नीति का विरोध दिखने लगा था। कैबिनेट के दो वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को इस नीति के विरोध और पार्टी की छवि पर इसके असर के बारे में आगाह किया था। इसके बाद पार्टी ने रोज़ाना रिपोर्ट माँगनी शुरू कर दी।
मंत्री जो कह रहे थे, वह सही निकला। सरकार को भी डर था कि यह मामला उसके पिछले सारे अच्छे कामों पर पानी फेर देगा। और सरकार स्थानीय निकाय और पंचायत चुनावों से पहले किसी बड़े किसान विरोध का जोखिम नहीं उठाना चाहती थी। तरनतारन विधानसभा क्षेत्र का उपचुनाव भी नज़दीक है। इसके नतीजों का नए राजनीतिक समीकरण में पूरे माझा क्षेत्र पर असर पड़ेगा।
अदालत में इस नीति का जो हुआ, उसने इसके ताबूत में आखिरी कील ठोक दी। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने पंजाब सरकार की विवादास्पद लैंड पूलिंग नीति पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी थी। अदालत ने सरकार से पूछा कि क्या इस नीति के कार्यान्वयन के सामाजिक प्रभाव पर कोई सर्वेक्षण कराया गया है?
इसके अलावा भूमि अधिग्रहण से मज़दूरों जैसे भूमिहीन लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी स्पष्टीकरण माँगा गया। अदालत ने यह भी पूछा कि इस नीति के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन क्यों नहीं किया गया। हालाँकि, सरकार ने अदालत में दलील दी कि यह नीति किसानों की सहमति के बिना लागू नहीं होगी और इसका उद्देश्य भूमि बैंक बनाकर अवैध कॉलोनियों को रोकना है। जिसे अदालत ने खारिज कर दिया और चार हफ़्तों के लिए इस पर रोक लगा दी।
इस नीति के तहत पंजाब के 27 शहरों में लगभग 40,000 एकड़ कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण किया जाना था। इस ज़मीन पर 'अर्बन एस्टेट्स' के नाम से रिहायशी इलाके विकसित करने की योजना थी, जिसे पंजाब के शहरीकरण की अब तक की सबसे बड़ी परियोजना माना जा रहा था। सरकार को नई टाउनशिप या अर्बन एस्टेट काटने से पहले पंजाब के शहरों की हालत सुधारनी चाहिए, जहाँ पिछले कई सालों से कई सड़कें नहीं बनी हैं। लोग गंदगी खाने को मजबूर हैं। उम्मीद है कि सरकार अब शहरों पर पूरा ध्यान देगी।