ख़बरिस्तान नेटवर्क : केंद्र सरकार देश में जाति गणना करवाएगी। बुधवार को हुई केंद्रीय कैबिनेट मीटिंग में यह फैसला लिया। जिसके बारे में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि जनगणना, मूल जनगणना में ही शामिल होगी। कहा जा रहा है कि सितंबर महीने से जनगणना शुरू हो जाएगी और इसे पूरा होने में 2 साल लगेंगे।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि देश के बंटवारे के बाद से जाति जनगणना नहीं की गई। कांग्रेस ने जाति जनगणना का इस्तेमाल सिर्फ अपने फायदे के लिए किया था। जनगणना सिर्फ केंद्र का विषय है। कुछ राज्यों ने यह काम सुचारू रूप से किया है, ताकि सामाजिक माहौल प्रभावित न हो।
कोरोना के कारण नहीं हो पाई थी जनगणना
जनगणना हर 10 साल बाद की जाती है। पिछली जनगणना साल 2021 में होनी थी। पर कोरोना महामारी के कारण यह जनगणना नहीं हो पाई। जिस कारण जनगणना का सिस्टम भी बदल गया है जिस कारण अगली जनगणना साल 2035 में होगी। हालांकि अभी तक जनगणना की कोई आधिकारिक तारीख नहीं घोषित की गई है।
क्यों जरूरी है जनगणना
जनगणना सरकार इसलिए करवाती ताकि लोगों के लिए नीति बना सके और उनको देश का संसाधनों का सामान रूप से वितरण किया जा सके। जनगणना से न सिर्फ जनसंख्या बल्कि आर्थिक स्थिति समेत कई अहम जानकारियां भी हासिल होती है।
1872 में हुई थी पहली जातीय जनगणना
वहीं अगर जाति जनगणना की बात करें तो साल 1872 में अंग्रेजों ने पहली बार जाति जनगणना करवाई थी। इसमें लोगों की जनसंख्या के साथ सभी जातियों की भी गिनती की जाती थी। 1931 में भी यह चलता रहा और 1941 में भी ऐसे ही हुआ पर उस समय आंकड़े नहीं जारी किए गए।
आजाद भारत के बंद हो गई जाति जनगणना
आजादी मिलने के बाद भारत की पहली कैबिनेट मीटिंग में यह तय किया गया कि वह जाति जनगणना नहीं करवाएंगे। इस मीटिंग में पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और मौलाना आजाद जैसा नेता थे। इन सभी नेताओं का मानना था कि जाति जनगणना देश के लिए विभाजनकारी हो सकती है।
2011 में हुई थी आखिरी जनगणना
आजाद भारत की पहली जनगणना साल 1951 में हुई थी। इसके बाद हर 10 साल बाद जनगणना की जाने लगी। साल 2011 में आखिरी बार जनगणना हुई थी। उस दौरान भारत की संख्या 121 करोड़ थी और लिंग अनुपात 940 महिलाएं प्रति हजार पुरुष थे। वहीं साक्षरता दर 74.4 फीसदी थी।