Ayodhya Sikh And Jain History : इक्ष्वाकु वंश की राजधानी अयोध्या केवल हिन्दुओं की आस्था का केंद्र नहीं है। सिख और जैन धर्म के लिए भी यह नगर बेहद महत्वपूर्ण है। सरयू के तट पर बसी रामनगरी का सिख और जैन धर्म से विशेष संबंध है। यहां तक कि बौद्ध धर्म से जुड़ी जातक कथाओं में भी इसका उल्लेख मिलता है। सिख धर्म का भी अयोध्या से गहरा नाता है। रामनगरी के गुरुद्वारा नजरबाग और गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में गूंजती गुरुबाणी इसका प्रमाण है। अयोध्या के संत भी यह मानते हैं कि सनातन धर्म और सिख धर्म के संबंध का गहरा नाता भगवान राम से हैं। गुरुबाणी में बार-बार राम के नाम का प्रयोग मिलता है तो गुरुग्रंथ साहिब में कहा गया है कि निर्गुण ब्रह्म सर्वव्यापक है। निर्गुण ब्रह्म को ही राम के नाम से पुकारा गया है। जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि रामलला के मंदिर के साथ ही साथ अयोध्या का भी तेजी से विकास हो रहा है। इससे वहां पहुंचना तो आसान होगा ही, जैन मंदिरों का भी उत्थान होगा। उत्तर प्रदेश सरकार भी अयोध्या के जैन मंदिरों के विकास पर ध्यान दे रही है। सबसे पहले तीर्थंकर आदिनाथ की जन्मभूमि पर स्थित मंदिर परिसर में संग्रहालय बनाने का प्रस्ताव बनाया गया है। इसमें जैन मूर्तियां, तीर्थंकरों की दुर्लभ प्रतिमाएं, उनसे जुड़े साहित्यिक प्रमाण और उनके उपदेशों को सहेजा जाएगा।
अयोध्या में कई तीर्थंकरों का जन्म
जहां तक जैन धर्म और अयोध्या की बात है तो जैन मान्यता के अनुसार, इस धर्म में 24 तीर्थंकर हुए. इसमें से कई का जन्म अयोध्या में ही हुआ था। जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में हुआ था, जिनके बारे में वेदों में भी वर्णन मिलता है। ऋग्वेद, अथर्ववेद के साथ ही साथ मनुस्मृति और श्रीमदभागवत में भी ऋषभदेव के बारे में बताया गया है। इनके अलावा तीर्थंकर आदिनाथ, अभिनंदन नाथ, अजीत नाथ, अनंतनाथ और सुमित नाथ का जन्म भी अयोध्या में हुआ था. इसलिए जैन धर्म को मानने वाले लोग भी बड़ी संख्या में अयोध्या जाते हैं।
राम की नगरी में हैं जैन धर्म के कई मंदिर
अयोध्या में जैन धर्म से जुड़े कई मंदिर हैं. इनकी संख्या करीब नौ हैं, जहां जैन धर्म के अनुयायी दर्शन-पूजन करते हैं। जैन धर्म के जानकार बताते हैं कि भगवान जहां जन्म लेते हैं। वह शाश्वत भूमि कही जाती है. इसलिए अयोध्या भी जैन धर्म के लिए शाश्वत भूमि है। यहां रायगंज में भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा स्थापित है, जिसकी ऊंचाई 31 फुट की है। इसे बड़ी मूर्ति भी कहा जाता है। इसके अलावा रामनगरी में श्री दिगंबर जैन मंदिर, अयोध्या जैन मंदिर और अयोध्या श्वेतांबर जैन मंदिर जैन धर्म के लोगों की आस्था का केंद्र हैं।
गुरु नानक देवजी ने की रामनगरी यात्रा
सिख धर्म के जानकार बताते हैं कि गुरुद्वारा नजरबाग और गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड का संबंध सीधे सिखों के पहले गुरु गुरु नानकदेव जी से है। गुरु नानक देवजी साल 1501 में अयोध्या आए थे. तब उन्होंने जिस स्थान पर धूनी रमाई थी, वहां एक बाग था। इसे ही बाद में नजरबाग कहा जाने लगा। नजरबाग गुरुद्वारा के जत्थेदार और सेवादार इसकी पुष्टि भी करते हैं। उनका कहना है कि अपनी प्रमुख चार यात्राओं में से, जिन्हें चार उदासियां भी कहा जाता है। तीसरी उदासी के दौरान हरिद्वार से जगन्नाथपुरी जाते वक्त गुरु नानकदेव जी भी अयोध्या आए थे। उस दौरान गुरु नानकदेव जी सरयू के किनारे ब्रह्मकुंड भी गए थे।
ब्रह्मकुंड पर बाद में गुरु तेग बहादुर आए
इसी ब्रह्मकुंड पर बाद में गुरु तेग बहादुर भी आए। बताया जाता है कि उन्होंने यहां 48 घंटे तपस्या भी की थी। इसी तरह से गुरु गोविंद सिंह जी का भी अयोध्या से सीधा संबंध है। गुरुद्वारा नजरबाग के सेवादार नवनीत सिंह के अनुसार, गुरु गोविंद सिंह जी गुरु पुत्र के रूप में साढ़े छह साल की आयु में अयोध्या आए थे। हनुमानगढ़ी और राम जन्मभूमि में दर्शन करने के साथ ही सरयू तट, गुप्तारघाट और वशिष्ठ कुंड भी गए थे। कहा जाता है कि उन्होंने बंदरों को चने भी खिलाए थे। तब बंदरों ने कतारबद्ध होकर चने खाए थे। सिखों के इतिहास की किताब तवारीख गुरु खालसा में गुरु की इस यात्रा का वर्णन भी मिलता है।
गुरु गोविंद सिंह जी भी आए थे अयोध्या
सिखों के पहले गुरु और सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव जी, नौवें गुरु गुरु तेगबहादुर और दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह की यात्राओं से यह स्पष्ट होता है कि अयोध्या और राम के प्रति उनका गहरा अनुराग था। सिख गुरुओं की इन यात्राओं के कारण सिखों का भी रामलला और उनकी जन्मस्थली अयोध्या से विशेष लगाव है। वे यहां आकर गुरुद्वारों में सेवा कार्य करते हैं। जन्मभूमि पर बन रहे नए मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा से पहले ही बड़ी संख्या में सिख धर्म के अनुयायी अयोध्या पहुंच गए हैं और प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद इनकी संख्या और बढ़ने की उम्मीद है।