How Powerful Post of Deputy CM? भारत के संविधान में कहीं भी उपमुख्यमंत्री या उपप्रधानमंत्री पद का जिक्र तक नहीं है. ऐसे में सवाल यह है कि यह पद कितना अहम है और इसकी क्या शक्तियां हैं. क्या यह पद अन्य किसी भी मंत्री से ज्यादा बड़ा है या यह बस नाम का पद है और इसकी शक्तियां मंत्रियों के जैसी है. रोचक बात यह है कि दो उपमुख्यमंत्री को होना भी असामान्य बात ही है. लेकिन भारत के तीन राज्यों, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में ऐसा होना उपमुख्यमंत्री पद को लेकर कौतूहल जरूर पैदा कर रहा है।
3 राज्यों में BJP को बहुमत
तीनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिला था। इस बार पार्टी नए चेहरों को मुख्यमंत्री और दो-दो उपमुख्यमंत्री के नामों का फैसला भी कर चुकी है। राजस्थान में जहां दिया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा को उपमुख्यमंत्री बनाया जा रहा है और मध्यप्रदेश में राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा को, तो वहीं छत्तीसगढ़ में अरुण साव और विजय शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाया जा रहा है।
कब से आया है यह चलन
गौर करने वाली बात है कि जिस तरह से मुख्यमंत्री का पद भारत के प्रधानमंत्री के पद की तरह, लेकिन राज्य के स्तर का पद है, उसी तरह से उपमुख्यमंत्री पद भी भारत में उपप्रधानमंत्री पद की तरह है. जबकि कम लोग जानते हैं कि यह पद तो संविधान लागू होने से पहले ही बना दिया गया था. सरदार वल्ल्भ भाई पटेल 15 अगस्त 1947 को देश के उपप्रधानमंत्री बने जो 15 दिसंबर 1950 तक इस पद रहे थे।
दिख रहा राजनैतिक कद
इसके बाद देश में मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम बाद में उपप्रधानमंत्री बने, लेकिन 1989 में चौधरी देवीलाल के उपप्रधानमंत्री बनने के बाद प्रदेशों में भी उपमुख्यमंत्री पद बनने लगे और अभी तीन राज्यों में दो दो उपमुख्यमंत्री बनाए जा रहे हैं. साफ है कि पद की संवैधानिक तौर पर कैसी भी हैसियत हो इस पद का एक राजनैतिक कद जरूर दिख रहा है।
बना रहे राजनैतिक संतुलन
1990 के दशक से जब गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ, तब से देखा जा जाने लगा कि राजैनितक संतुलन स्थापित करने के लिए उपमुख्यमंत्री पद का उपयोग अधिक होने लगा है. गठबंधन में दो शक्तिशाली दलों में से एक का ही व्यक्ति मुख्यमंत्री बन सकता है. ऐसे में राजैतिक तौर पर उपमुख्यमंत्री का पद दूसरे दल को दिया जाता है. वहीं कई सरकारों में जाति या शक्तिशाली वोट समूह के प्रतिनिधित्व को महत्व देने के लिए भी यह पद बनाया जाता है. जैसा कि इस बार भी दिख रहा है।
संविधान में जिक्र भी नहीं
फिर भी सवाल यह उठता है कि आखिर जब संविधान में उपमुख्यमंत्री पद का जिक्र तक नहीं है तो इस पद की हैसियत इतनी बढ़ कैसे गई और इस पद की असल संवैधानिक स्थिति क्या है. संविधान के अनुच्छेद 163 (1) में कहा गया है कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्रीपरिषद होगी जो अपने कार्यों के निष्पादन के लिए राज्यपाल को सलाह देगी. 164 में भी मुख्यंमत्री और उनकी मंत्रीपरिषद के बारे में विस्तार से बताया गया है, लेकिन उपमुख्यमंज्ञत्री नाम नहीं मिलता है।
रुतबा कैबिनेट मंत्री का
तकनीकी तौर पर उपमुख्यमंत्री का रुतबा केवल एक कैबिनेट मंत्री का होता है। तीनों राज्यों में शपध ग्रहण के बाद करीब 14 राज्यों में उपमुख्यमंत्री हो जाएंगे. इनमें महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्य शामिल हैं। कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री के बाद सबसे बड़ा मंत्री पद होता है. लेकिन मंत्रीमंडल मे कई केबिनेट मंत्री होते हैं।