राष्ट्रीय सव्यंम सेवक संगठन(RSS) चीफ मोहन भागवत सोमवार को नागपुर में संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन में शामिल हुए। यहां भागवत ने चुनाव राजनीति और राजनीतक दलों पर बात कही। चुनाव सहमति बनाने की प्रक्रिया है। चुनाव के आवेश से मुक्त होकर देश के सामने उपस्थित समस्याओं पर विचार करना होगा। उन्होंने बिना किसी दल का नाम लिए नसीहत दी है। नागपुर में 'कार्यकर्ता विकास वर्ग' को संबोधित करते हुए उन्होंने ये बात कही।
भागवत ने कहा जो मर्यादा का पालन करते हुए कार्य करता है, गर्व करता है, किन्तु लिप्त नहीं होता, अहंकार नहीं करता, वहीं सही अर्थों में सेवक कहलाने का अधिकारी है। उन्होंने कहा कि जब चुनाव होता है तो मुकाबला जरूरी होता है। इस दौरान दूसरों को पीछे धकेलना भी होता है। लेकिन इसकी एक सीमा होती है। यह मुकाबला झूठ पर आधारित नहीं होना चाहिए।
मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा
भागवत ने मणिपुर की स्थिति पर कहा मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है। बीते 10 साल से राज्य में शांति थी, लेकिन अचानक से वहां गन कल्चर बढ़ गया। अचानक जो कलह वहां पर उपजा या उपजाया गया, उसकी आग में अभी तक जल रहा है, त्राहि-त्राहि कर रहा है। इस पर कौन ध्यान देगा? जरूरी है कि इस समस्या को प्राथमिकता से सुलझाया जाए।
भागवत ने अपने भाषण में क्या-क्या कहा
- संघ चुनाव नतीजों के एनालिसिस में नहीं उलझता
लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद बाहर का माहौल अलग है। नई सरकार भी बन गई है। ऐसा क्यों हुआ, संघ को इससे मतलब नहीं है। संघ हर चुनाव में जनमत को परिष्कृत करने का काम करता है, इस बार भी किया, लेकिन नतीजों के विश्लेषण में नहीं उलझता।
लोगों ने जनादेश दिया है, सब कुछ उसी के अनुसार होगा। क्यों? कैसे? संघ इसमें नहीं पड़ता। दुनियाभर में समाज में बदलाव आया है, जिससे व्यवस्थागत बदलाव हुए हैं। यही लोकतंत्र का सार है।
- चुनावी मुकाबला झूठ पर आधारित न हो
जब चुनाव होता है, तो मुकाबला जरूरी होता है, इस दौरान दूसरों को पीछे धकेलना भी होता है, लेकिन इसकी भी एक सीमा होती है - यह मुकाबला झूठ पर आधारित नहीं होना चाहिए। लोग क्यों चुने जाते हैं - संसद में जाने के लिए, विभिन्न मुद्दों पर आम सहमति बनाने के लिए। हमारी परंपरा आम सहमति बनाने की है।
संसद में दो पक्ष क्यों होते हैं? ताकि, किसी भी मुद्दे के दोनों पक्षों को संबोधित किया जा सके। किसी भी सिक्के के दो पहलू होते हैं, वैसे ही हर मुद्दे के दो पहलू होते हैं। अगर एक पक्ष एक पक्ष को संबोधित करता है, तो विपक्षी दल को दूसरे आयाम को संबोधित करना चाहिए, ताकि हम सही निर्णय पर पहुंच सकें।
- चुनाव ऐसे लड़ा, जैसे मुकाबला नहीं, युद्ध हो
जो लोग कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद इस दिशा में आगे बढ़े हैं, उनके बीच इस तरह की सहमति बनाना मुश्किल है। इसलिए हमें बहुमत पर निर्भर रहना पड़ता है। पूरी प्रतिस्पर्धा इसी के लिए है, लेकिन इसे ऐसे लड़ा गया, जैसे यह युद्ध हो। जिस तरह से चीजें हुई हैं, जिस तरह से दोनों पक्षों ने कमर कसकर हमला किया है, उससे विभाजन होगा, सामाजिक और मानसिक दरारें बढ़ेंगी।