2025 Mahakumbh Anand Akhara History : 13 जनवरी से प्रयागराज में महाकुंभ शुरू हो जाएगा. जहां देश-विदेश से श्रद्धालु आएंगे. इन श्रद्धालुओं का सबसे बड़ा आकर्षण देश के 13 प्रमुख अखाड़ों के साधु संत होंगे, जिनकी वजह से ही महाकुंभ की भव्यता होती है. देश के 13 प्रमुख अखाड़ों में एक आनंद अखाड़ा भी है. इस अखाड़े के साधु संत भी महाकुंभ में शिरकत करेंगे. आइए इस अखाड़े के बारे में विस्तार से जानते हैं...
आनंद अखाड़े की स्थापना
आनंद अखाड़े का पूरा नाम श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती है। ये अखाड़ा शैव संप्रदाय से संबंध रखता है। अखाड़े की स्थापना आदि गुरू शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में की थी। विक्रम संवत के अनुसार, 856 में ये अखाड़ा बरार में स्थापित किया गया था। इसका प्रमुख केंद्र उत्तराखंड के हरिद्वार में है। वहीं से इस से इस अखाड़े की धार्मिक, प्रशासनिक और समाजिक गतिविधियां संचालित होती हैं।
मानते हैं इष्ट देव भगवान सूर्य
ये अखाड़ा अपना इष्ट देव भगवान सूर्य को मानता है। भगवान सूर्य आनंद देते हैं। इसी कारण इसे अखाड़े का नाम आनंद अखाड़ा है। समाजिक क्रियाओं और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए ये अखाड़ा पहचाना जाता है। बताया जाता है कि इस अखाड़े का संगीत कला से भी गहरा रिश्ता है। इसी वजह से इस अखाड़े के संतों ने देश ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्धि प्राप्त की है।
नहीं होता महामंडलेश्वर का पद
आनंद अखाड़े कि एक चीज जो इसे बाकी अखाड़ों से अलग करती है, वो है महामंडलेश्वर का पद। दरअसल, इस अखाड़े में बाकी अखाड़ों की तरह महामंडलेश्वर का पद नहीं होता। इस अखाड़े का प्रमुख पद आचार्य का होता है। आचार्य ही इस अखाड़े के सभी धार्मिक और प्रशासनिक मामलों को देखते हैं। ये परंपरा इस अखाड़े की स्थापना से ही चली आ रही है।
प्रजातांत्रिक प्रक्रिया का पालन
इस अखाड़े के जो संस्थापक थे, उन्होंने आचार्य को ही प्रमुख पद देने का फैसला लिया था। भगवान से जुड़कर मोक्ष और आनंद की प्राप्ति के मकसद से इस अखाड़े की स्थापना की गई थी। इस अखाड़े की कई विशेषताए हैं। उनमें से ही एक विशेषता इस अखाड़े में प्रजातांत्रिक प्रक्रिया का पालन होना भी है। कहा जाता है कि आजादी के काफी पहले ही इस अखाड़े में प्रजातांत्रिक प्रक्रिया का पालन होता है।