देश में लोहड़ी और मकर संक्रांति का त्योहार आने वाला है। अध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने मकर संक्रांति के महत्व के बारे में और क्यों यह त्योहार खास है उसके बारे में बताया। उन्होंने कहा कि एक वर्ष में बारह संक्रांतियाँ आती हैं, जिनमें से मकर संक्रांति को सबसे महत्त्वपूर्ण माना गया है क्योंकि यहीं से उत्तरायण पुण्यकाल शुरू होता है। मकर संक्रांति के इस शुभ अवसर पर हम सूर्य देवता का आवाहन करते हैं।
जब शीत ऋतु समाप्त होने लगती है तो सूर्यदेव मकर रेखा का संक्रमण करते हुए उत्तर दिशा की ओर अभिमुख हो जाते हैं और इसे ही उत्तरायण कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन हम सूर्य देवता का स्मरण करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। वैसे तो पूरे वर्ष को शुभ माना जाता है लेकिन इस उत्तरायण की अवधि को देवताओं का समय होने के कारण अधिक शुभ कहते हैं।
सदियों से हम इस त्यौहार को बड़े उत्साह से मनाते आये हैं। इसी उत्तरायण काल को पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और दिल्ली में लोहड़ी के रूप में, असम में बिहू के रूप में और तमिलनाडु में पोंगल के रूप में मनाते हैं। किसान इसी समय एक फसल काटने के बाद, दूसरी फसल के लिए बीजरोपण करते हैं और उत्सव मानते हैं।
इस दिन से ठंड कम होने लगती है और यह वसंत के आगमन का सूचक भी है। इस समय तिल, गन्ना, मूँगफली और धान जैसी नई फसलें आती हैं। इन सबको मिलाकर पहले दिन खिचड़ी बनाई जाती है और फिर इसे सभी लोग आपस में बांटते हैं। दूसरे दिन गाय की पूजा भी की जाती है। जब नई फसल आती है तो उसे सभी के साथ बांटकर खाते हैं और दान भी करते हैं।
ऐसा कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन गंगा जी ने राजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके साठ हजार पितरों को मोक्ष प्रदान किया था। वैसे तो हर उत्सव में गंगा स्नान का बहुत महत्त्व होता है लेकिन मकर संक्रांति पर गंगा स्नान का विशेष महत्त्व माना जाता है।
जो लोग गंगा जी के पास हैं वे तो गंगा जी में स्नान करते ही हैं लेकिन जहाँ गंगा जी नहीं है, वहाँ यह समझना चाहिए कि गंगा अपने घर में ही हैं। मकर संक्रांति के पर्व पर गंगा स्नान का अर्थ यही है कि ज्ञान की गंगा में स्नान करें। ज्ञान से लोगों को पीढ़ी दर पीढ़ी सुकून मिलता है और जब हम ध्यान करते हैं और ज्ञान में रहते हैं तब उसका प्रभाव केवल हम तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि आगे वाली पीढ़ियों और हमारे पूर्वजों पर भी पड़ता है।
मकर संक्रांति पर हम तिल और गुड़ का आदान-प्रदान करते हैं। छोटे-छोटे तिल हमें याद दिलाते हैं कि इस ब्रह्माण्ड में हमारा महत्त्व भी एक तिल के बीज के समान मात्र एक छोटे से कण जैसा है - लगभग कुछ भी नहीं।
यह भावना कि 'मैं कुछ भी नहीं हूँ' हमारे अहंकार को समाप्त कर देती है और हमारे भीतर विनम्रता लाती है। यही ‘अकिंचनत्व’ है माने ‘मैं कुछ भी नहीं हूं’। ये संसार अनंत है। यहाँ अरबों-खरबों तारे सितारे हैं, उनमें से एक सूरज है; यहाँ अनेक ग्रह हैं जिनमें से एक पृथ्वी है जहाँ आपके जैसे पता नहीं कितने लोग आए और कितने चले गए।
जब आप इस बात के प्रति सजग हो जाते हैं कि इस विशाल सृष्टि में हम कुछ भी नहीं हैं, तब आपका ये अहंकार और बनावटीपन जिससे सारी परेशानियाँ होती हैं, वह सब छूट जाता है और आप एक नवजात शिशु की तरह सहज हो जाते हैं । यही तिल का संदेश है ।
महाराष्ट्र में इस दिन एक दूसरे को यह कहकर अभिवादन करते हैं कि ‘गुड़ खाओ और मधुर बोलो।’ हम मिठास के बिना नहीं रह सकते क्योंकि यदि हमारे शरीर में ब्लड शुगर का स्तर कम हो जाता है तो हमारे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है । गुड़ माने मधुरता; मधुरता जीवन का आधार है। मकर संक्रांति हमें यही संदेश देती है कि हमारे जीवन में गुड़ जैसी मधुरता और तिल जैसा अकिंचनत्व दोनों साथ-साथ हों