Possibility of tax increase on the worlds super rich people : दुनिया के अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाने की डिमांड कई सालों से हो रही है. जिस पर तेजी के साथ विचार भी हो रहा है। दुनिया के 20 देशों का ग्रुप जिसे ग्रुप-20 भी कहते हैं। अगले महीने इन अमीरों पर टैक्स लगाने पर विचार भी कर सकते हैं। इसका मतलब है कि दुनिया के सुपर रिच लोगों पर टैक्स बढ़ने की संभावना है। दूसरी ओर दुनिया के सुपर रिच को एक सर्वे ने परेशान कर दिया है जिसमें जी20 देशों के 68 फीसदी से ज्यादा लोगों ने अमीरों पर टैक्स लगाने का समर्थन किया है। खास बात तो ये है कि इसमें 72 फीसदी भारत के लोगों ने वोट किया है। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर इस सर्वे में किस तरह की बातें सामने आई हैं।
कौन सा है सर्वे
अर्थ4ऑल इनिशिएटिव एंड ग्लोबल कॉमन्स अलायंस के सर्वे में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के 22,000 लोगों की राय ली गई। सर्वे में यह तथ्य सामने आया है कि इन देशों के 68 फीसदी लोग अमीरों पर इस तरह का कर लगाने के पक्ष में हैं। भारत में तो यह आंकड़ा और अधिक यानी 74 फीसदी है। इन लोगों का मानना है कि ग्लोबल लेवल पर भुखमरी, असमानता और जलवायु संकट से निपटने के लिए इस तरह का टैक्स लगाया जाना चाहिए।
जुलाई में फैसला
सुपर-रिच पर टैक्स लगाने का प्रस्ताव 2013 से लगातार चर्चा में है और पिछले कुछ वर्षों में इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन बढ़ रहा है। जी-20 के मौजूदा अध्यक्ष ब्राज़ील का लक्ष्य अमीरों पर कराधान को लेकर आम सहमति बनाना है। जुलाई में जी-20 के वित्त मंत्रियों की बैठक में इस बारे में एक संयुक्त घोषणा पर जोर दिए जाने की संभावना है।
2% सालाना टैक्स
फ्रांसीसी अर्थशास्त्री गैब्रियल ज़ुकमैन मंगलवार को इस बारे में एक रिपोर्ट पेश करेंगे कि कैसे बेहद अमीर लोगों पर वैश्विक स्तर पर न्यूनतम कर काम करेगा और इसे कितना बढ़ाया जा सकता है। ब्राजील के जी-20 में इस कर के प्रस्ताव के पीछे जुकमैन का ही दिमाग है। जुकमैन का कहना है कि आम लोगों की तुलना में बेहद अमीर लोग काफी कम कर देते हैं। प्रस्ताव का उद्देश्य एक नया अंतरराष्ट्रीय मानदंड स्थापित करना है। प्रत्येक देश के अरबपति व्यक्ति को अपनी संपदा का दो फीसदी सालाना कर के रूप में देना होगा।
सर्वे की अहम बात
सर्वे के अनुसार, 74 प्रतिशत भारतीय इस कर के पक्ष में हैं। 68 प्रतिशत भारतीयों का मानना है कि दुनिया को अगले दशक में अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों–बिजली उत्पादन, परिवहन, भवन, उद्योग और भोजन–में नाटकीय कार्रवाई करने की जरूरत है। सर्वेक्षण में शामिल 81 प्रतिशत भारतीयों ने कल्याणकारी अर्थव्यवस्थाओं में बदलाव का समर्थन किया है। ऐसी अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक वृद्धि के बजाय स्वास्थ्य और पर्यावरण पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है।