Muharram is the second holiest month after Ramadan : इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना 'मुहर्रम' रमजान महीने के बाद दूसरा सबसे पवित्र माह है, इस महीने के 10वें दिन यानी कि 10 तारीख को अशुरा कहते हैं, जो कि काफी खास है क्योंकि इस दिन दुनिया भर के मुस्लिम मातम बनाते हैं, इसी वजह से 'मुहर्रम' खुशी का पर्व नहीं बल्कि गम का त्योहार है। इस त्योहार को शिया और सुन्नी दोनों समुदाय अलग-अलग तरह से मनाते हैं। दरअसल ये पर्व पैगंबर मुहम्मद के पोते हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है। धर्मयुद्ध की इस लड़ाई में कर्बला में हुसैन साहब 72 मित्रों संग शहीद हुए थे। जिस महीने हुसैन शहीद हुए थे वो 'मुहर्रम' का महीना था और तब से ही ये गम का महीना बन गया।
'मुहर्रम' के दिन ताजिया निकालते हैं...
वैसे तो आशूरा 17 जुलाई को है लेकिन मुस्लिम त्य़ोहार केवल चांद पर आधारित होता है इसलिए इसकी अधिकारिक घोषणा आज शाम होगी। शिया लोग 'मुहर्रम' के दिन ताजिया निकालते हैं और मजलिस पढ़कर गम जताते हैं तो वहीं सुन्नी समुदाय वाले रोजा रखकर नमाज अदा करते हैं। मान्यता है कि कर्बला की जंग में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के छोटे नवासे हजरत इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ शहीद हुए थे इसलिए ये दिन उनकी याद में मनाया जाता है।
'मुहर्रम' में शिया लोग मनाते हैं मातम
सुन्नी समुदाय की ओऱ से जो उपवास रखा जाता है वो नेकी का पर्याय होता है। मुहर्रम में शिया लोग ना तो शादियां करते हैं औऱ ना ही कोई उत्सव मनाते हैं। कहीं-कहीं पर लोग शरीर पर जंजीरों से वार कर खून भी निकालते हैं, जो कि काफी दर्दभरा और भयानक होता है, हालांकि ऐसा सुन्नी समुदाय के लोग नहीं करते हैं। 'हजरत इमाम हुसैन' ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए थे, इसी कारण ये दिन उनकी शहादत का दिन है।
धर्म की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दी
इतिहास के मुताबिक इराक में यजीद नाम का एक क्रूर शासक था, जो खुद को खुदा मानता था। वो चाहता था कि इमाम हुसैन भी उसे ही ईश्वर माने लेकिन इमाम हुसैन ने ऐसा करने से मना कर दिया, जिसके बाद यजीद ने उन पर काफी जुल्म किए लेकिन वो इमाम हुसैन के इरादों को टस से मस ना कर सका और इसके बाद यजीद और इमाम हुसैन के बीच जंग छिड़ गई।