Moitri Banerjee is taking her childhood out of the clutches of drugs : आप डेंड्राइट का नशा क्यों सूँघते हैं?” चार साल पहले कोलकाता के सेवड़ाफुली स्टेशन के बाहर बैठे 7 से 11 साल के बच्चों से जब कोलकाता की मोइत्री बनर्जी ने ये सवाल किया तो जवाब मिला। “क्योंकि यह दो टाइम के खाने से काफी सस्ता है और इससे नींद भी आ जाती हैं।”मज़बूरी और बेबसी भरे इस जवाब को सुनकर मोइत्री का दिल भर आया और उन्होंने फैसला किया कि वह इन बच्चों के लिए जरूर कुछ करेंगी इसलिए उन्होंने कोलकाता के ही महाजीवन संस्था की मदद लेने का फैसला किया। जिसके साथ वह काफी समय से काम भी कर रही थीं। फिर उन्होंने कुछ शिक्षकों के साथ मिलकर इन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। उन्होंने महाजीवन संस्था के साथ चाइल्डलाइन एनजीओ की भी मदद ली और इन बच्चों की काउन्सलिंग और मेडिकल सुविधाओं के लिए काम करना शुरू किया। नशे से मुक्त हुए ये 40 बच्चे और इनके परिवार वाले आज शिक्षा का महत्त्व अच्छे से समझ चुके हैं। यह सब कुछ मुमकिन हुआ मोइत्री की सोच और उनके प्रयासों से, जोकि पिछले चार सालों से सड़क पर नशा करने वाले बच्चों के जीवन में बदलाव लाने का काम कर रही हैं।
भूख या ठंड नहीं लगती डेंड्राइट ले लेने से
ये बच्चे किसी भी हार्डवेयर की दुकान या प्लास्टिक ट्यूबों में आसानी से डेंड्राइट ले लेते हैं जो एक औद्योगिक गोंद है। ये उन बच्चों का पसंदीदा है जो ट्रेनों में भीख मांगते हैं और आजीविका के लिए कूड़ा बीनते हैं। इससे भूख या ठंड नहीं लगती इसलिए अक्सर, छोटे बच्चे इस सूँघ कर अपने दिन और रात गुजारते हैं और धीरे-धीरे इसके आदि बन जाते हैं। मोइत्री को इस समस्या को कोई अंदाजा ही नहीं था। न उन्हें यह पता था कि इसे कैसे ख़त्म किया जाना चाहिए।
नशे की लत छोड़कर बनें किताबों के साथी
बच्चों को संस्था की ओर से बुनयादी सुविधाएं भी मिलने लगी ताकि भूख के कारण वह नशा न करें। विशेषकर यहाँ रहती लड़कियों के लिए मोइत्री को अधिक चिंता थी। इसलिए उन्होंने इन बच्चों को कला से जोड़ना शुरू किया और फ्री स्कूल के ज़रिए जागरूकता लाने के प्रयास में जुट गई। उनकी इस पहल के ज़रिए, उन्होंने करीबन 40 बच्चों को नशे के अँधेरे से निकालकर स्कूल में दाखिला करवाया। मोइत्री बड़े गर्व से बताती हैं कि आज ये बच्चे अच्छी पढ़ाई कर रहे हैं।
मदद करना चाहते हैं तो जुड़ें महाजीवन से
आज जब वह उनसे मिलने जाती हैं तो वे फटे-पुराने कपड़े पहने नहीं बल्कि अच्छे से बालों को कंघी करके तैयार दिखते हैं। कुछ बच्चे तो अच्छी अंग्रेजी बोलना भी सीख गए हैं। कुछ बेघरों के लिए मोइत्री और उनकी संस्था ने घर भी बनवाकर दिए हैं ताकि उन्हें सड़कों पर न घूमना पड़े। मोइत्री आगे भी जरूरतमंद बच्चों के लिए ऐसे ही प्रयास करने में जुटी हैं अगर आप उनके इस काम में मदद करना चाहते हैं तो उनकी संस्था महाजीवन से जुड़ सकते हैं।