Maa Annapurna Mahavrat : 17 दिवसीय महाव्रत 'माता अन्नपूर्णा' आज से शुरू होकर 17 दिसम्बर तक चलेगा। माता अन्नपूर्णा का यह व्रत मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष पंचमी से प्रारम्भ होता है और मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी को समाप्त होता है। यह उत्तमोत्तम व्रत 17 दिनों का होता है। इस व्रत को करने से आयु, लक्ष्मी और श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होता है। अन्नपूर्णा व्रत के प्रभाव से पुरुष को पुत्र ,पौत्र तथा धनादि का वियोग कभी नहीं होता। जो इस उत्तम व्रत को करते हैं, उनकी श्री लक्ष्मी सदैव बनी रहती है। उनके लक्ष्मी का कभी विनाश नहीं होता।
सदैव रहता माता अन्नपूर्णा का निवास
उन्हें कभी अन्न का क्लेश-कष्ट नहीं होता और न उनके सन्तति का विनाश ही होता है। जिनके घर में लिखी हुई यह अन्नपूर्णा व्रत की कथा होती है, उस घर को माता अन्नपूर्णा कभी नहीं त्यागती। उनके गृह में सदैव माता अन्नपूर्णा का निवास रहता है।
व्रत 17 साल,17 माह व 17 दिनों का
इस व्रत के पहले दिन काशी में स्थित माता अन्नपूर्णा देवी के दरबार में भक्तों का तांता लगा होता है। पहले दिन श्रद्धालु 17 गांठ के धागे को हाथ के बाजू पर धारण करते हैं। मंदिर के महंत शंकर गिरी ने बताया कि महिलाएं धागे को बाएं और पुरुष इसे दाहिने हाथ में धारण करते हैं। व्रत 17 साल,17 महीने 17 दिनों का होता है।
बिना नमक के फलाहार ग्रहण करते
कहते है, माता अन्नपूर्णा के इस महाव्रत में भक्तों को पूरे 17 दिनों तक अन्न का त्याग करना होता है। दिन में सिर्फ एक बार फलाहार का सेवन कर भक्त इस कठिन व्रत को रखते हैं। इस व्रत में बिना नमक के फलाहार ग्रहण किया जाता है।
भक्तों की मनचाही मुरादें पूरी करती
इस व्रत से माता अन्नपूर्णा प्रसन्न होती है और भक्तों की मनचाही मुरादें पूरी करती है। इतना ही नहीं इससे दैविक, भौतिक सुख की प्राप्ति होती है और घर परिवार में सम्पन्नता भी बनी रहती है। यही वजह है कि इस वाराणसी ही नहीं, बल्कि पूर्वांचल भर के लोग इस कठिन व्रत और पूजा को पूरे श्रद्धाभाव से करते हैं।