भारत और कनाडा के संबंध कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं। वहीं इसी बीच अब जस्टिन ट्रूडो ने एक नई घोषणा कर दी है। दरअसल, जस्टिन ट्रूडो ने विदेशी वर्कर्स की संख्या कम करने का फैसला लिया है। इस फैसले ने भारतीय अप्रवासियों के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है।
ट्रूडो ने किया विदेशी कामगारों को घटाने का ऐलान
प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने ट्विटर पर एक पोस्ट में लिखा, "हम कनाडा में अस्थायी विदेशी वर्कर्स की संख्या कम करने जा रहे हैं। हम कंपनियों के लिए सख्त नियम ला रहे हैं ताकि वो यह साबित कर सकें कि वे पहले कनाडा के कर्मचारियों को क्यों नियुक्त नहीं कर सकते है ।
बता दें कि कनाडा में भारतीय वर्कर्स और छात्रों को पहले से ही बहुत सीमित प्लेसमेंट के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं ट्रूडो के इस कदम से स्थिति और भी कठिन हो जाएगी।
1.3 लाख स्टूडेंट्स के परमिट 31 को समाप्त
इसके साथ ही बता दें कि कनाडा में भारतीय स्टूडेंट्स के वर्क परमिट 31 दिसंबर 2024 को समाप्त होने वाले हैं। जानकारी के अनुसार करीब 1.3 लाख स्टूडेंट्स के परमिट 31 को समाप्त हो जाएंगे। जिसके बाद उनको अपने देश लौटना होगा । वहीं इस स्थिति के खिलाफ स्टूडेंट ब्रैम्पटन में प्रदर्शन कर रहे हैं। जिसमे से ज्यादातर स्टूडेंट्स पंजाब से है।
29 अगस्त से स्टूडेंट्स कर रहे प्रदर्शन
जहां वे पोस्ट ग्रेजुएट वर्क परमिट (PGWP) का विस्तार मांग रहे हैं। निर्वासन के डर से 29 अगस्त से प्रदर्शन कर रहे हैं। वे पोस्ट ग्रेजुएट वर्क परमिट (PGWP) के विस्तार, स्थायी निवास के लिए उचित नीति और शोषण के खिलाफ अपनी मांगें रख रहे हैं। इस विरोध का नेतृत्व नोजवान स्टूडेंट नेटवर्क (NSN) के बिक्रम सिंह कुल्लेवाल कर रहे हैं, और इसे मोंट्रियल यूथ स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (MYSO) द्वारा भी समर्थन मिल रहा है।
31 दिसंबर को समाप्त हो जाएंगे Work Permit
MYSO के संयोजक मंदीप ने कहा कि लगभग 1.3 लाख स्टूडेंट्स के लिए खतरा है। दरअसल उनके वर्क परमिट 31 दिसंबर को समाप्त हो जाएंगे। जिसके कारण वे कनाडा में रहने के लिए वर्क परमिट का विस्तार मांग रहे हैं। हालांकि, पिछले एक साल में, भारत और कनाडा के बीच तनावपूर्ण संबंधों ने अप्रवासी और स्टूडेंट्स के बीच अनावश्यक डर पैदा कर दिया है।
इसके साथ ही मंदीप ने कहा कि भारतीय सरकार ने स्टूडेंट्स को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (Quality education) और रोजगार प्रदान करने में असफलता दिखाई है, जिससे युवाओं के पास कनाडा और अन्य देशों में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।