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अराजकता के बीच शांति : कीचड़ में खिले कमल की तरह बनो- श्री श्री रविशंकर कीचड़ में खिले कमल की तरह बनो- श्री श्री रविशंकर


अराजकता के बीच शांति : कीचड़ में खिले कमल की तरह बनो-  श्री श्री रविशंकर
9/18/2025 5:09:08 PM         Raj        Sri Sri Ravi Shankar, Art Of living,              

ख़बरिस्तान नेटवर्क : मरुस्थल में पानी की बोतल का मूल्य एक झरने के पास से कहीं अधिक होता है। जब चारों ओर शांति हो और आप शांत हों, तो उसका कोई विशेष अर्थ नहीं है। परंतु जब चारों ओर सब बिखर रहा हो और तब भी आप अपनी मुस्कान बनाए रखें, तभी शांति का असली मूल्य है।

जब लोग आपको दोष दें, जब वे आपको समझ न पाएँ - तब मुस्कुराते रहने की आंतरिक शक्ति चाहिए। जब आप अराजकता और भ्रम से घिरे हों, तभी सबसे अधिक शांति की आवश्यकता होती है। आनंद अराजकता से ही निकलता है, और अराजकता का आनंद लेने की क्षमता ही आत्मज्ञान है। जब परिस्थितियाँ आपके अनुकूल न हों, तभी धैर्य, शक्ति और साहस की आवश्यकता होती है ताकि आप विचलित न हों।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है , “समत्वं योग उच्यते”  अर्थात समभाव ही योग की कसौटी है। महात्मा गांधी की जीवनसंगिनी कस्तूरबा गांधी अपने जीवन के अंतिम क्षणों में थीं। डॉक्टरों ने उम्मीद छोड़ दी थी। उन्होंने कहा, “बस कुछ ही घंटे या मिनट बाकी हैं।” उसी क्षण गांधीजी अपने कुटीर से बाहर आए और पंडित सुधाकर चतुर्वेदी से कहा, “गीता का वह श्लोक मुझे सुनाओ।” जब उन्होंने गीता का पाठ किया तो गांधीजी बोले, “आज मेरी परीक्षा है।”

आत्मज्ञान का अर्थ है जीवन को  गहराई से जीना। जब आपकी जड़ें गहरी हों, जब आप अपने अस्तित्व की गहराई से जीते हों, तब संसार हिल सकता है पर आप अडिग रहते हैं। आप तूफान का अनुभव करते हैं, परंतु तूफान आपको निगल नहीं पाता।

कीचड़ में खिलने वाले कमल की तरह बनो, जो कीचड़ से अछूता रहता है। कमल का पत्ता पानी में रहता है, परंतु यदि उस पर पानी की एक बूँद डाली जाए तो वह मोती की तरह उस पर टिकती है, पर चिपकती नहीं। वैसे ही इस संसार में रहो, पर किसी से चिपको मत। जब आप संघर्ष और अराजकता के साथ रहना स्वीकार कर लेते हैं, तो वे मिट जाते हैं।

आप केंद्रित कैसे रह सकते हैं? अपने अनुभव से ध्यान हटाकर अनुभव करने वाले की ओर ले जाएँ। अनुभव हमेशा परिधि पर होते हैं, वे बदलते रहते हैं। लेकिन अनुभव करने वाला, जो अपरिवर्तनीय है - वह केंद्र में है। बार-बार केंद्र में लौटें।

यदि आप निराश हैं, तो निराशा के अनुभव में खोने के बजाय पूछें,“कौन निराश है?” यदि आप दुखी हैं, तो पूछें, “कौन दुखी है?” यदि आप अज्ञानी लगते हैं, तो पूछें, “कौन अज्ञानी है?” यदि आप सोचते हैं “मैं तो बेचारा हूँ,” तो पूछें, “यह ‘बेचारा मैं’ कौन है?” अपने सारे मुखौटे उतार दो और ‘मैं’ का सामना करो।

व्यवस्था और अराजकता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अनिश्चितता को दो तरीकों से देखा जा सकता है — यह या तो आपके उत्साह और आनंद को बढ़ा सकती है, या आपको डर, चिंता और अवसाद में धकेल सकती है। जब आप किसी आश्चर्य की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं, तो आप दरअसल क्या चाहते हैं? कुछ ऐसा जिसकी आपको अपेक्षा नहीं है, है न? सुखद आश्चर्य जीवन में रोमांच लाता है, मनोबल बढ़ाता है। फिल्म देखते समय यदि पहले से पता हो कि आगे क्या होगा, तो मजा नहीं आता। लेकिन जब पता नहीं होता, तो उत्साह और आनंद बना रहता है।

अनिश्चितता आपको कब चिंतित करती है? जब आपको यह भरोसा नहीं होता कि आपकी देखभाल की जा रही है, कि इस सृष्टि में एक शक्ति है जो आपसे प्रेम करती है और आपकी आवश्यकताओं का ध्यान रख रही है। अनिश्चितता भय पैदा कर सकती है। लेकिन इसे आप सभी संभावनाओं के क्षेत्र के रूप में भी देख सकते हैं।

जीवन बदसूरत ‘मुझे नहीं पता’ से खूबसूरत ‘मुझे नहीं पत’” तक की एक यात्रा है। बदसूरत ‘मुझे नहीं पता’ तब होता है जब आप झुंझलाहट में कहते हैं: “मुझे नहीं पता, मुझसे मत पूछो!” लेकिन खूबसूरत ‘मुझे नहीं पता’ विस्मय है। अपने प्रश्न को विस्मय में बदलो! बुद्ध ने कहा, ‘अनुत्तर भव’ - उत्तरहीन बनो। उन्होंने कभी नहीं कहा, प्रश्नहीन बनो। जब आप विस्मय में होते हैं, तभी सच्ची भक्ति प्रस्फुटित होती है।


अराजकता में सामंजस्य खोजना, दुख में आनंद खोजना, मूर्खता में ज्ञान खोजना, अंधकार में प्रकाश खोजना, मृत्यु के स्थान में अमरत्व खोजना - यही भगवद्गीता है।

उथल-पुथल इस संसार का स्वभाव है, जबकि शांति बनाना हमारे आत्मा का स्वभाव है। यदि दृढ़ संकल्प और कौशल के साथ हम शांति में केंद्रित रह पाते हैं, तो यह केवल हमारे भीतर तक सीमित नहीं रहती, बल्कि हमारे चारों ओर की उथल-पुथल को भी शांत करने लगती है।

'Sri Sri Ravi Shankar','Art Of living',''
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