India is the country of Sufi-saints and sages, the message of love and peace, this state has the highest number of Dargahs : भारत को सूफी-संतों और ऋषि-मुनियों का देश कहा जाता है। देश में सूफी बुजर्गों की दरगाहों पर बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। इन सभी ने भी मोहब्बत और अमन का पैगाम दिया है। इनके दरबार में हर धर्म के लोग आते हैं. लेकिन बीते कई दिनों से देश की कई दरगाहों को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। अजमेर की ख्वाजा गरीब नवाज, महाराष्ट्र में हाजी मलंग, उत्तर प्रदेश में शेख सलीम चिश्ती, कर्नाटक के बाबा बुदन समेत कई अन्य दरगाहों में मंदिर होने का दावा किया जा रहा है। इन सभी के बीच आइए जानते हैं कि क्या होती है दरगाह। देश में हैं कितनी और कौन होते हैं सूफी...
2 अहम कामों से होती दरगाह की बुनियाद?
शास्त्रीय इस्लामी लेखक और शोधकर्ता गुलाम रसूल देहलवी ने बताया कि दरगाह वो पवित्र स्थल होता है, जहां किसी सूफी बुजुर्ग की मजार (कब्र) होती है। इसी परिसर में मस्जिद, मदरसे, बैठकें, अस्पताल होते हैं। वह कहते हैं कि 2 महत्त्वपूर्ण कामों से दरगाह की बुनियाद होती है। इनमें पहला भूखों को खाना खिलाना और दूसरा सलामती का पैगाम देना। इसकी नींव सूफी बुजुर्गों ने रखी है। गुलाम रसूल देहलवी कहते हैं कि हिंदुस्तान में सबसे पुरानी दरगाह राजस्थान के अजमेर शरीफ स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्फ गरीब नवाज की दरगाह है। दिल्ली में ख्वाजा बख्तियार काकी और हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह शरीफ हैं।
कौन होते हैं सूफी? रेशम कपड़ों से परहेज
इस्लाम के सबसे महान सूफियों में ईराक के शहर बगदाद स्थित शेख अब्दुल कादिर जिलानी को माना जाता है, जिन्हें गौस-ए-आजम (अल्लाह उन पर खुश हो) के नाम से भी जाना जाता है। बात करें भारत की तो यहां सबसे बड़े सूफी बुजुर्ग ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती (र.अ.) हैं. इन्हें गरीब नवाज के नाम से जाना जाता है और इनकी दरगाह राजस्थान के अजमेर शहर में है। वे 12वीं सदी में ईरान के सिस्तान से लाहौर होते हुए राजस्थान के अजमेर पहुंचे थे। उनकी दरगाह शरीफ पर हर धर्म के लोग पहुंचते हैं. वे रेशम और अन्य सुंदर वस्तुओं से बने आकर्षक कपड़ों से परहेज करते थे इसलिए वह ‘सूफी’ कहलाए।
सूफी-संतों ने अपनाया है पैगंबर का आदर्श
गुलाम रसूल ने बताया कि भारतीय सूफियों ने पैगंबर मोहम्मद साहब के सादगी भरे जीवन के आदर्शों को अपनाया। उन्होंने जीवन के फिजूलखर्ची और अपव्यय को त्याग दिया और बड़े पैमाने पर मानवता की सेवा करने के प्रयास में उच्च मानवीय आदर्शों का पालन किया। वह कहते हैं कि भारत के सूफी संतों ने अपनी रहस्यमय खोज को समाज सेवा की भावना के साथ जोड़ दिया। वह कहते हैं कि सूफी बुजुर्गों ने जोड़ने की सीख दी, लेकिन कुछ फिरकापरस्त लोग तोड़ने की बात करते हैं और दरगाहों को निशाने पर लेते हैं।
दरगाहों पर बसंत, होली और दिवाली की धूम
गुलाम रसूल देहलवी कहते हैं कि ‘सूफी’ अरबी शब्द ‘सूफ’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ऊन, जो सूफियों का पसंदीदा वस्त्र है। गुलाम रसूल देहलवी कहते हैं कि सूफी बुजुर्गों ने सभी धार्मिक आस्था और पवित्र स्थानों का ख्याल रखा। वह कहते हैं कि हजरत निजामुद्दीन औलिया ने यमुना नदी के किनारे अपना अस्थान बनाया था। उनका मत था कि यमुना नदी पवित्र है और इससे हिंदू मजहब के लोगों की आस्था है। इसी का आदर करते हुए वह यमुना नदी किनारे रहे। उन्होंने बताया कि सूफी बुजुर्गों की खानकाहों पर बसंत मनाई जाती है। होली के रंग उड़ते हैं और दिवाली के दिए जलाए जाते हैं।
सूफी बुजुर्गों का अमन व मोहब्बत का पैगाम
देश में सूफी बुजुर्गों ने अमन और मोहब्बत का पैगाम दिया। देश में कादरी, चिश्ती, सोहरवर्दी, नक्शबंदी, मदारिया सिलसिले की दरगाहें हैं। इन्हीं में से कई सिलसिले निकले हैं। देश में कादरी सिसली की सबसे बड़ी दरगाह शरीफ उत्तर प्रदेश के एटा जिले के मारहरा शरीफ में स्थित दरगाह खानकाहे बरकातिया है। यहां के सूफी बुजुर्ग हजरत सैयद शाह बरकतुल्लाह फारसी भाषा के साथ ब्रज और अवधि भाषा का ज्ञान रखते थे। उन्होंने ब्रज भाषा में पेम प्रकाश साहित्य लिखा। उन्होंने भारत के आपसी भाईचारे पर एक दोहा लिखा था, ‘पेमी हिंदू-तुर्क में रंग एक ही रहो समाए, देवल और मसीद में दीप एक ही भाए।
अखिल भारतीय उलेमा व मशाइख बोर्ड (AIUMB)
अखिल भारतीय उलेमा एवं मशाइख बोर्ड (AIUMB) के मुताबिक, देश में 574 सूफी बुजुर्गों की दरगाह शरीफ हैं। इनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 118, उसके बाद बिहार में 110, गुजरात में 85, राजस्थान में 43, दिल्ली में 42, जम्मू और कश्मीर में 37, महाराष्ट्र में 31, कर्नाटक में 23, मध्य प्रदेश में 21, आंध्र प्रदेश में 14, झारखंड में 10, पश्चिम बंगाल में 8, पंजाब और उत्तराखंड में 7-7, हरियाणा और तमिलनाडु में 5-5, उड़ीसा और गोवा में 3-3, छत्तीसगढ़ और अंडमान निकोबार में 1-1 दरगाह हैं. यहां कई सदियों से लंगर चलता आ रहा है, जिसे सभी धर्मों के लोग प्रसाद के रूप में खाते हैं।
अजमेर में गरीब नवाज, दिल्ली में 32 ख्वाजा
देश की राजधानी दिल्ली को 32 ख्वाजा की चौखट कहा जाता है। 42 दरगाह हैं, हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, हजरत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया, हजरत ख़्वाजा अमीर ख़ुसरो, हजरत नसीरुद्दीन चिराग. राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती गरीब नवाज, ख्वाजा फखरुद्दीन चिश्ती सरवर शरीफ, ख्वाजा सैयद फखरुद्दीन गुरदेजी, हरियाणा के पानीपत में हजरत बू अली शाह कलंदर, पंजाब के करनाल में हजरत शेख आबिद नक्शबंदी, उत्तराखंड के रुड़की में हजरत अलाउद्दीन साबिर पाक कलियर शरीफ, झारखंड में देवगढ़ स्थित अब्दुल लतीफ शाह बाबा, रांची में अंजन शाह बाबा कोते की दरगाह शरीफ है।
कश्मीर में सूफी हजरत शेख जैनुद्दीन ऋषि
जम्मू और कश्मीर के अनंतनाग में हजरत शेख जैनुद्दीन ऋषि, ऐनाश, बड़गाम में दरगाह शेख आलम नूरुद्दीन ऋषि चरारे शरीफ, बारामूला में सैयद यूसुफ बातिनजी कश्मीरी, पश्चिम बंगाल के कलकत्ता में सैयद बाबा साहिब खिज्रपुर, दार्जिलिंग में हजरत सैयद इकरामुल हक़ हल्द खोरा, मध्य प्रदेश के हजरत निजामुद्दीन भिखारी बुरहानपुर, भोपाल में हजरत सैयद शाह बहादुर, ग्वालियर मने हजरत गौस, इंदौर में हजरत नूरुद्दीन गाजी, गुजरात में अहमदाबाद की हजरत शाह आलम, अमरेली की सबूरा पीर चिश्ती लाठी, भावनगर की सैयद सईद महमूद बुखारी।
महाराष्ट्र में हाजी अली, हैदराबाद में हजरत मूसा
महाराष्ट्र की हजरत हाजी अली, हजरत मखदूम माहिमी, हजरत बहाउद्दीन बाबा, हाजी मलंग, कर्नाटक में बैंगलोर स्थित हजरत तवक्कल शाह मस्तान सुहरवर्दी, गुलबर्गा में हजरत बंदा नवाज गेसू दरज, गोवा में पोंडा हजरत सैयद अमीन शाह बाबा कोडवारा, हैदराबाद में हजरत मूसा कादरी, तमिलनाडु मे हजरत तमीम अंसारी कोलम, छत्तीसगढ के रायपुर में हजरत सैयद अली आगा बंजारी वाले बाबा, अंडमान निकोबार में अल्लामा फजल ए हक खैराबादी और उड़ीसा में बलांगीर सैयद अब्दुस शकूर तरभा की प्रमुख दरगाहें हैं।
उत्तर प्रदेश में करीब 118 दरगाह शरीफ
उत्तर प्रदेश में करीब 118 दरगाह शरीफ हैं, इनमें एटा के मारहरा शरीफ में हजरत सैयद बरकतुल्लाह, आगरा में हजरत सैयद आमिर अबुल उला, शेख सलीम चिश्ती फतेहपुर सीकरी, हजरत मीर ख्वाजा नोमान नक्शबंदी. इलाहाबाद में हजरत शाह मुनव्वर इलाहाबादी, अंबेडकर नगर में हजरत मखदूम अशरफ सिमनानी किछौछा शरीफ, आला हजरत अशरफी मियां किछौछा शरीफ. आजमगढ़ में हाफिजे मिल्लत अब्दुल अजीज मुहद्दिस मुबारकपुर, बागपत में मीर सैयद तल्हा कुतुबुद्दीन कोटाना, बहराइच में हजरत सैयद सालार मसऊद गाजी।
बाराबंकी में हजरत हाजी वारिस अली शाह देवा शरीफ, बरेली में आला हजरत इमाम अहमद रजा खां. बस्ती में सूफी शाहबाज अली. शाहजहांपुर में हजरत ताजुल फहुल अब्दुल मुकतदि, इटावा में हजरत शाह अब्दुस समद हाफिज बुखारी फफूंद शरीफ, फैजाबाद में हजरत मखदूम अब्दुल हक रदौलवी, गाजीपुर में सैयद शाह जुनेद कादरी गाजीपुर, हरदोई में हजरत सैयद मुहम्मद कादरी बिलग्रामी, जालौन में मीर सैयद फजलुल्लाह कल्पवी, कानपुर में हजरत सैयद बदीउद्दीन शाह मदार मकनपुर, लखनऊ में शाह मोहम्मद काजिम कलंदर काकोरा शरीफ, लखनऊ हजरत मुल्ला निजामुद्दीन फिरंगी महली दरगाह शरीफ हैं।
बिहार में 110 सूफी बुजुर्गों की दरगाह
बिहार की 110 दरगाह शरीफ में अरवल की खानकाह शम्सिया अरवल, औरंगाबाद की दरगाह सैयदना मोहम्मद कादरी अमझर शरीफ, बेगूसराय की सैयद फरीदुल हक शाह जोगीर, भागलपुर की खानकाह शाहबाज़िया मौलाना चक, बक्सर की दरगाह काजी शम्सुद्दीन चौसा, छपरा की दरगाह हकीम फरहतुल्लाह करीम चक, दरभंगा की शाह फिदा अहमद अब्दुल करीम, गया की हजरत शाह अता हुसैन फानी मुनेमी, जहानाबाद की दरगाह बीबी कमाल काको, कटिहार की ख्वाजा अब्दुल हाफिज रहमानपुरी, किशनगंज की खानकाहे अशरफिया कांगी, मुजफ्फरपुर की खानकाहे तेघिया सुर्खाही शरीफ, नालंदा की हजरत मखदूम याह्या मनेरी, पटना की खानकाह ए सज्जादिया अबुल ओलैया प्रमुख हैं।