सिजोफ्रेनिया एक मानसिक विकार है। इससे पीड़ित व्यक्ति को सामाजिक और व्यावसायिक क्षेत्र में रोजाना के कामकाज में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। यह डिसऑर्डर होना वैसे तो काफी दुर्लभ माना जाता है लेकिन यह काफी गंभीर समस्या है और दुनियाभर में करीब 20 लाख लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं। ज्यादातर टीनएज उम्र के बच्चों में यह समस्या देखी जाती है। ‘सिजोफ्रेनिया’ ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका मतलब ‘स्प्लिट माइंड’ होता है। इसमें भ्रम की स्थिति बन जाती है, जिसकी वजह से पीड़ितों को सोशल इंटरेक्शन करने में भी मुश्किलों से जूझना पड़ सकता है।
बता दें कि सिजोफ्रेनिया में से पीड़ित को लेकर कई बार सही जागरूकता न होने पर लोग अंधविश्वास में भी पड़ जाते हैं। जबकि यह समस्या एक मानसिक डिसऑर्डर है, जिसे अच्छे माहौल, थेरेपी और दवाओं के द्वारा कंट्रोल में की जा सकती है। समय रहते लक्षणों पर ध्यान देना जरूरी होता है, ताकि स्थिति बिगड़ने से पहले संभाली जा सके।
क्या है सिजोफ्रेनिया?
हमारे दिमाग में डोपामाइन नाम का न्यूरोट्रांसमीटर है, जो दिमाग और शरीर में तालमेल बिठाने का काम करता है। जब किसी भी वजह से दिमाग में डोपामाइन केमिकल जरूरत से ज्यादा बढ़ जाता है, तब सिजोफ्रेनिया की समस्या देखी जाती है। मानसिक अस्थिरता की ये स्थिति दो कारणों से हो सकती है। पहला जेनेटिक और दूसरा उस इंसान के आसपास का माहौल। बच्चे के मां-बाप में से किसी एक को ये परेशानी होती है, तो बच्चे में सिजोफ्रेनिया होने की संभावना 11 से 12 % तक होती है। वहीं अगर किसी बच्चे के मां-बाप दोनों ही इस मानसिक समस्या से जूझ रहे होते हैं, तो उस बच्चे में ये बीमारी होने की समस्या 40% तक होती है।
क्या होती हैं सिजोफ्रेनिया के रोगी को परेशानी
सिजोफ्रेनिया से पीड़ित अगर कोई किशोर है तो इसके लक्षणों की पहचान करना बेहद मुश्किल होता है, क्योंकि कई बार इसे उम्र संबंधित व्यवहार समझ लिया जाता है। इस समस्या से पीड़ित इंसान (लड़का या फिर लड़की) समाज से कटने लगता है। दूसरों के प्रति उसका व्यवहार बदलने लगता है और वह छोटी-छोटी बातों पर शक करने के साथ ही अकेले में खुद को ज्यादा सेफ महसूस करने लगता है। वैसे तो सिजोफ्रेनिया के कोई स्पष्ट कारण नहीं हैं। यह समस्या ड्रग्स, ज्यादा अल्कोहल लेना, बहुत ज्यादा स्ट्रेस में रहना, अनुवांशिक या फिर दिमाग से संबंधित कोई पुरानी बीमारी की वजह से हो सकती है।
सिजोफ्रेनिया के क्या होते हैं मानसिक व सामाजिक लक्षण
सिजोफ्रेनिया के मानसिक लक्षणों की बात करें तो अकेले में रहना, लोगों से बचना, भीड़ भाड़ वाली जगहों पर जाने से डरना, भ्रम की स्थिति में रहना और अजीब चीजें महसूस (जो है ही नहीं) करना, सिचुएशन के हिसाब से इमोशन को न समझ पाना, लाइफ के प्रति हमेशा निराश रहना। इस बीमारी की वजह से भूख के पैटर्न में बदलाव, चेहरे मुरझाया रहना, वजन घटने लगना, रोजमर्रा के काम सही से न कर पाना, जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
क्या है इसका टेस्ट और इलाज?
सिजोफ्रेनिया की बीमारी की जांच के लिए कोई सटीक टेस्ट उपलब्ध नहीं है। इसके लिए डॉक्टर रोगी की मेडिकल केस हिस्ट्री, मानसिक स्थिति, सामाजिक फैक्टर और लक्षणों का मूल्यांकन करते हैं। इस समस्या को मेडिटेशन, करीबियों के सहयोग और व्यवहारिक थेरेपी व दवाओं से कंट्रोल में किया जा सकता है। वहीं नशे और धूम्रपान जैसी चीजों से रोगी को दूर रखना चाहिए।
क्या ठीक हो सकते हैं सिजोफ्रेनिया से ग्रसित लोग?
इसके लक्ष्ण को तीन भागों में बांटा गया है। पॉजिटिव, नेगेटिव और कोगनिटिव सिम्टम। जिन्हें ये बीमारी जेनेटिक कारणों सी होती है उनमें नेगेटिव और कोगनिटिव सिमटम्स होने की संभावना ज्यादा होती है। यानि उनमें समस्या पॉजिटिव के मुकाबले गंभीर होती है। वहीं पॉजिटिव सिम्टम की बात करें, तो इस स्टेज में दवाइयां कारगार साबित होती है। शरीर और दिमाग दवाई पर रेस्पौंड करता है और इंसान जल्द ही ठीक हो जाता है।
वहीं नेगेटिव और कोगनिटिव स्टेज में लोगों को ठीक होने में थोड़ा समय लगता है। जिसे लोग पागलपन कहते हैं, असल में वो दिमाग में होने वाली केमिकल प्रॉब्लम है। इस मानसिक बीमारी में लोगों के मौत की वजह ज्यादातर सुसाइड देखी जाती है। सिजोफ्रेनिया को लेकर लोगों में जो डर की स्थिति है, उसके खिलाफ जागरूकता की जरूरत है, ताकि लोग अपनी जिंदगी खत्म करने की स्टेज तक न पहुंचे और समय रहते ठीक हो जाएं।
सिजोफ्रेनिया के मरीज की मदद कैसे करें
- सिजोफ्रेनिया के मरीजों को शुरुआती दौर में ही मदद की जानी चाहिए। ऐसा करने पर व्यक्ति अपने रिश्तों, दोस्तों और जिंदगी को बेहतर तरीके से समझ सकता है।
- अगर मरीज का हाल परिवार पहले से ही समझ जाए, तो संभव है कि उसे अस्पताल तक जाने की जरूरत ही न पड़े। परिवार का साथ उसके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर होने में मदद कर सकता है। अगर घर वाले पूरा सपोर्ट करते हैं, तो डॉक्टरों को इलाज करने में भी मदद मिलती है और मरीज के रिकवरी की संभावना भी बढ़ जाती है।
- सिजोफ्रेनिया होना अपने-आप में घातक नहीं है। लेकिन जब व्यक्ति को यह बीमारी हो जाती है, तो वह आक्रामक हो सकता है और दूसरों को नुकसान पहुंचा सकता है। कई मामलो में मरीज खुद को भी हानि पहुंचाने की कोशिश कर सकता है।
- सिजोफ्रेनिया से पीड़ित लोगों को अपने चिकित्सक द्वारा बताई गई दवाएं लें और किसी लक्षण को नजरअंदाज न करें।