Daughter left her foreign job to run the school : ओडिशा के पद्म श्री डी प्रकाश राव ने ज़रूरतमंद बच्चों के लिए जिस स्कूल को शुरू किया था। आज उनके जाने के बाद, उनकी बेटी ने विदेश की नौकरी छोड़कर इसे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उठाई है। उनके इस नेक काम में आप भी उनका साथ दे सकते हैं। प्रकाश राव भले ही खुद 10वीं भी पास नहीं थे, लेकिन वह शिक्षा की अहमियत को बखूबी समझते थे। यही वजह है कि उन्होंने न सिर्फ अपनी दोनों बेटियों को अच्छी शिक्षा दी, बल्कि कई और बच्चों को शिक्षा और स्कूल से जोड़ा। उस समय उन्होंने, अपने घर पर ही एक कमरे में स्कूल बनाया था और खुद के खर्च पर बच्चों को दूध और बिस्किट देते थे। धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ती गई और मदद करने वाले हाथ भी बढ़ने लगे। समय के साथ उनकी संस्था ‘आशा ओ आश्वासन’ (Asha o Ashwasana) की शुरुआत हुई, जो कई बच्चों का दूसरा घर बन गई।
छोटी बेटी भानुप्रिया की विदेश में नौकरी थीं
ओडिशा के कटक में चायवाले गुरू नाम से मशहूर, पद्म श्री डी प्रकाश राव ने साल 2000 में अपने दम पर सैकड़ों ज़रूरतमंद बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा उठाया था। उनकी वजह से इलाके के कई घरों में शिक्षा की रोशनी पहुंच पाई थी और समाज के लिए उनके किए इन प्रयासों की वजह से ही, साल 2019 में उन्हें पद्म श्री सम्मान से नवाज़ा गया था लेकिन 2021 में डी प्रकाश राव के निधन के बाद सबको लगने लगा था कि उनका शुरू किया हुआ स्कूल अब बंद हो जाएगा। उस समय उनकी बड़ी बेटी की शादी हो गई थी और छोटी बेटी भानुप्रिया विदेश में नौकरी करती थीं।
निभाया पिता के अंतिम समय में किया वादा
कोरोना के समय जब भानुप्रिया अपने पिता के पास आई थीं, तब उनके पिता बीमार थे। भानुप्रिया कहती हैं, “पिता के आखिरी वक़्त में मैं उनके साथ ही थी। पापा ने आखिरी समय कहा था स्कूल बंद मत करना। स्कूल चलना चाहिए, बच्चे पढ़ने चाहिए।” पिता की उस अंतिम ख़्वाहिश ने भानुप्रिया की सोच ही बदल दी। उन्होंने वापस विदेश जाने के बजाय कटक में रहकर स्कूल के लिए काम करना शुरू किया। इस बार उन्होंने खुद सर्वे करके पहले से कहीं ज्यादा बच्चों का दाखिला स्कूल में करवाया। लेकिन भानुप्रिया का कहना है कि हालत अब पहले जैसे नहीं रही। उनके पिता के दौर में राशन और मदद जुटाना काफी आसान था। उन्हें अपने पिता का सपना पूरा करने में आपके मदद की ज़रूरत है, ताकि फिर उन बच्चों का भविष्य अँधेरे में न खो जाए।