Evening worship Caution be taken : सनातन धर्म में प्रातः काल की पूजा के साथ साथ संध्या पूजन का भी विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तीन वक्त की पूजा यानी सुबह, दोपहर और शाम की पूजा करने का विधान है। दिन भर के कार्यों के बाद शाम के समय वंदना से शुभ फल मिलने की मान्यता है। लेकिन संध्या की पूजा के समय कुछ खास बातों का ध्यान रखना भी जरूरी होता है ताकि जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहे। तो आइए जानें शाम की पूजा कैसे और किस समय करनी चाहिए और किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
शाम की पूजा में घंटी या शंख न बजाएं
शास्त्रों के अनुसार, सुबह की पूजा में शंख और घंटी बजानी चाहिए क्योंकि इससे भगवान को जगाया जाता है। मगर शाम की पूजा के दौरान भगवान सोने के लिए जाते हैं इसलिए शंख या घंटी बजाना वर्जित है। क्योंकि इससे उनकी नींद में खलल होता है। इसलिए शाम की पूजा में घंटी या शंख बिल्कुल न बजाएं।
संध्या को पूजा करना सही नहीं होता
शास्त्रों में बताया गया है कि सुबह-सुबह सूर्य देव को जल अर्पित करने और उनकी पूजा से शुभ परिणामों की प्राप्ति होती है। सूर्य देव को जीवन में आत्मविश्वास, ऊर्जा और तेज का कारक माना गया है। लेकिन संध्या के समय सूर्य देव को जल चढ़ाना या उनकी पूजा करना सही नहीं होता।
तय समय में ही पूजा करनी चाहिए
ज्योतिषियों के अनुसार, शाम की पूजा करने का एक निर्धारित समय होता है इसलिए आपको तय समय में ही पूजा करनी चाहिए। शाम की पूजा का समय सूर्य के डूबने से 1 घंटा पहले और सूर्य के डूबने के 1 घंटा बाद तक आप सायंकाल की पूजा कर सकते है।
तुलसी के पत्ते भी भूलकर न चढ़ाएं
शाम की पूजा के दौरान तुलसी के पौधे के सामने घी का दीपक जलाना बहुत शुभ होता है। लेकिन इस दौरान तुलसी के पत्ते तोड़ना वर्जित होता है इस बात का ध्यान रखें। इतना ही नहीं शाम की पूजा के दौरान तुलसी के पत्ते भी भूलकर न चढ़ाएं।
शाम को फूल न तोड़ें, खास विधान
प्रातः काल की पूजा में ताजे फूल अर्पित करने का खास विधान होता है। जबकि शाम की पूजा में भगवान को फूल चढ़ाना शुभ नहीं माना जाता। इसलिए ध्यान रखें कि शाम को पूजा करते समय भगवान को अर्पित करने के लिए फूल न तोड़ें।