Becoming a chef of a European restaurant : आपका भविष्य बनाने में आपके हालात नहीं बल्कि आपकी कोशिशें ज़्यादा मायने रखती हैं। कुछ ऐसी ही है हिम्मत और हौसलों वाली लड़की ‘लिलिमा खान’ की कहानी। आज दिल्ली के एक शानदार यूरोपियन रेस्टोरेंट की शेफ लिलिमा खान कभी सड़क पर रहती थीं और पूरा दिन कचरा बीनकर खाना खाती थीं। लेकिन आज वह शहर के एक फैंसी यूरोपियन रेस्टोरेंट की एग्जीक्यूटिव शेफ हैं। सफलता का यह मुकाम हासिल करना उनके लिए किसी बड़े सपने के पूरे होने जैसा था। उन्होंने सिर्फ अपनी कड़ी मेहनत से अपने जैसे कई युवाओं के लिए मिसाल कायम की है। आज वह 30-40 लोगों के टीम की लीडर हैं और खाने के शौकीनों को अपने हाथों से बना जायका परोस रही हैं। उनकी पूरी कहानी सुनकर आप भी यह बात जरूर मानेंगे।
चार साल की उम्र में उठा साया
एक गरीब परिवार में जन्मी लिलिमा महज चार साल की थीं, जब उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था। जिसके बाद वह अपने बड़े भाई के साथ रहती थीं लेकिन उनके ऊपर दुखों का पहाड़ तब टुटा, जब नशे की हालत में उनके भाई ने उनके घर को भी बेच दिया। इसके बाद वह छोटी सी उम्र में सड़क पर रहने को मजबूर हो गईं। वह बताती हैं कि खाना और सोने के लिए छत के लिए दिन भर सड़क पर कूड़ा बीनना पड़ता था। शिक्षा और स्कूल से तो मानो कोई लेना-देना ही नहीं था।
जीवन की मुश्किलें अभी और थीं….
कुछ साल सड़क पर यूँही गुजारने के बाद उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव की शुरू तब हुई जब उन्हें एक संस्था की मदद से रहने को स्थायी छत मिली। एनजीओ में आने के बाद उन्हें पढ़ना लिखना सिखाया गया। इसके बाद वह स्कूल में भी दाखिल हुई और पढ़ाई करना शुरू किया। लेकिन जीवन की मुश्किलें अभी ख़त्म नहीं हुई थी। जैसे ही लिलिमा की जिंदगी पटरी पर आई, उनकी एक मौसी उनको संस्था से निकालकर अपने घर ले गईं।
Kilkari Rainbow Home में रहीं
परिवार के पास रहकर वह खुश तो थीं लेकिन जल्द ही उनके रिश्तेदार उनसे मजदूरी कराने लगें, इतना ही नहीं उन्हें काम न करने पर मारा-पीटा भी जाता था। ऐसे में उनके भाई ने लिलिमा की मदद की और उन्हें दिल्ली के कश्मीरी गेट स्थित के Kilkari Rainbow Home में भेज दिया। जहां लिलिमा करीबन 18 साल तक रहीं। यहाँ उन्होंने फिर से पढ़ना-लिखना और अपने लिये सपने देखना शुरू किया।
और इस तरह लिलिमा बनी शेफ
लिलिमा बताती हैं कि जब वह किलकारी रेनबो होम में रह रही थीं तब उन्हें Creative Services Support Group (CSSG) का पता चला था। यह ग्रुप 18 साल से बड़े बच्चों को आत्मनिर्भर बनने में मदद करता है। इस ग्रुप की मदद से बच्चों को अलग-अलग ट्रेनिंग प्रोग्राम से जुड़ने का मौका मिलता है, जिसमें वे आगे चलकर अपना करियर बना सकें। ऐसे ही एक CSSG ग्रुप की मदद से लिलिमा को दिल्ली की एक रेस्टोरेंट में शेफ की ट्रेनिंग करने का मौका मिला। इस मौके को उन्होंने बखूबी इस्तेमाल किया और अपनी मेहनत के दम पर अपनी काबिलियत साबित करके दिखाई।