This time if seats decrease in the elections, where will Modi be : वर्तमान आम-चुनाव के परिणाम को लेकर हम विश्लेषकों को सत्ताधारी दल- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)- का मर्सिया पढ़ने का फिलहाल कोई कारण नहीं है। जैसे फ़िल्म में हीरो ने कहा था "मेरे पास मां है", भाजपा भी कह सकती है "मेरे पास मोदी है, गवर्नेंस का "मोदी-मॉडल" है। अगली सरकार किसकी है प्रश्न का जवाब इसी परिप्रेक्ष्य में देखना होगा, लेकिन भाजपा के पास इतना सब होने के बाद भी शायद सत्ता में फिर आना इतना आसान नहीं होगा। इस चुनाव में मतदान प्रतिशत का लगातार कम होना, वह भी उत्तर भारत के भाजपा-शासित राज्यों में और खासकर गुजरात जैसे राज्य में कम होना कुछ गहरा संकेत देता है। पिछले चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर जिन तीन वोटरों ने मत डाले उनमें से केवल एक ने भाजपा के मोदी को दिया, बाकी दो ने अन्य दलों को दिया। गुजरात में तो हर तीन में दो वोटर्स ने मोदी को वोट दिया। इसका सीधा मतलब यह है कि इन दो वोटरों ने यह जानते हुए भी कि मोदी की सत्ता फिर आयेगी, अपना मत मोदी के खिलाफ दिया। फिर आज कोई कारण नहीं कि वो मतदान करने नहीं जायेंगे और मोदी के खिलाफ वोट नहीं करेंगे।
230 सीटें भी आयीं तो मोदी सत्ता में रहेंगे
लिहाजा लो-टर्नआउट वोटर्स में मोदी के प्रति उदासीनता दिखती है, वोटर्स की नाराज़गी के संकेत मिलते हैं। वैसे भी उत्तर भारत के इन राज्यों में भाजपा को शत-प्रतिशत या अधिकतम सीटें मिली थीं लिहाज़ा उससे बढ़ने का कोई सवाल भी नहीं उठाता। भाजपा की सीटें पिछले चुनाव की 303 सीटों के मुक़ाबले घटेंगी, यह तो दिखाई दे रहा है और इसके साथ यह भी कि ऐसा हुआ तो इसका सीधा मतलब होगा कि मोदी के इकबाल में कमी आयी है। लेकिन यह इकबाल कितना घटा है, यह तथ्य मोदी का हीं नहीं, भाजपा का और देश का भविष्य तय करेगा। यहां एक बात और साफ़ करनी होगी। मोदी-शासन काल में जिस तरह मूल्यों, क़ानूनों और संविधान की धज्जियां उड़ाई गयी हैं उसे देखते हुए 230 सीटें भी आयीं तो मोदी सत्ता में रहेंगे।
बहुत सारे बड़े नेता भी ताल ठोकने लगेंगे
कुछ छोटी-छोटी पार्टियों को तोड़ कर, कुछ ईडी-सीबीआई-आईटी की मेहरबानी से। और इससे कम आना संभव नहीं है। यहीं से असली विश्लेषण की ज़रूरत होगी। भाजपा अगर 300-310 सीटें पाती है तो यह साफ़ हो जाएगा कि मोदी का इकबाल यानी लोकप्रियता जारी है। अगर 260-280 सीटें मिलती हैं तो भी सरकार तो मोदी की बनेगी। लेकिन जिस तरह का एकल-नेतृत्व का फॉर्मेट मोदी ने पिछले दस वर्षों में दिया है जिसमें केवल "एक मोदी और आधा अमित शाह" ही सब कुछ होते हैं, उस पर प्रश्न चिन्ह लगेगा। अच्छे पर्फोर्मर्स- जैसे योगी, गडकरी, शिवराज, वसुंधरा और सैकड़ों दोयम दर्जे के नेता "संघम शरणम" होंगे। नागपुर का रुख भी बदलेगा। और नागपुर बदला तो राजनाथ सिंह सहित बहुत सारे बड़े नेता भी जो मजबूरी में मोदी-वंदन में लगे रहते हैं, ताल ठोकने लगेंगे।
उभार में शक्तियाँ हैं और आज भी साथ हैं
एकल-नेतृत्व मूलतः डरपोक होता है। वह "जी हजूर" के अलावा कोई शब्द नहीं सुनना चाहता। अगर इसकी शंका भी हुई तो प्रहार की मात्रा इतनी तेज होती है कि बाकी लोग भी दहशत में आ जाते हैं। इतिहास इसका गवाह है और वर्तमान में रूस, चीन, टर्की सहित तमाम मुल्क भी। मोदी रिटेलिएट करेंगे दमन की हद तक। लेकिन तब आरएसएस की सांगठनिक बहु-आयामी शक्ति उन्हें मास-सपोर्ट से वंचित कर देगी। मोदी मॉडल शेर की सवारी है। जनमत के सैलाब में इस शेर पर बैठ तो सकते हैं पर उतरने पर शेर द्वारा हजम किये जाने का डर होता है। इसलिए सत्ता सर्वाइवल की पूर्व-शर्त बन जाती है। लेकिन ऐसे में सत्ता के गरूर में नेता यह अकसर भूल जाता है कि उसकी उभार के पीछे शक्तियाँ कौन सी हैं और क्या वे आज भी साथ में हैं।
पकड़ का लाभ ले सकती हैं मोदी एंड कंपनी
आरएसएस ने इतने दिनों में योगी को परखा और अपने तराजू पर तौला है और उन्हें 24 कैरेट का पाया है। योगी के गवर्नेंस में चुभन नहीं है और जो "बुलडोजिंग" है, उससे संघ को ऐतराज नहीं है और वह काल-विशेष के लिए तथा अपने उद्देश्य हासिल करने तक ही रहेगा। लेकिन संघ यह सब तत्काल नहीं, बल्कि अगले एक-दो साल के अंतराल में करेगा। लेकिन अगर सीटें 220 से कम हुईं तो कांग्रेस और उसके नेतृत्व में इंडिया गठबंधन अपने प्रयास करेगा। अगर सफल हुआ तो मोदी के खिलाफ संगठन में आवाज़ नहीं उठेगी और मोदी के साथ पूरी ताकत से संघ और पार्टी खड़ी होगी। जब तक कांग्रेस 250 सीटें नहीं लाती, केंद्र में एक सक्षम सरकार देना मुश्किल होगा और मोदी एंड कंपनी उसका लाभ ले सकती है, अपनी पकड़ फिर बनाने के लिए।