जालंधर के कुल 85 वार्डों में चुनाव हुए, जिसमें सिर्फ 50.27 फीसदी वोट पड़े। यह वोट प्रतिशत पिछले चुनाव से करीब 11 फीसदी कम है। नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। आप को 38 सीटें मिली हैं और जालंधर में मेयर बनाने के लिए कम से कम 43 सीटें चाहिए। जालंधर में अपना मेयर बनाने के लिए आप के संपर्क में विरोधी पार्टियों के 7-8 पार्षद संपर्क में हैं। अगर पार्षद समर्थन दे देते हैं तो आप जालंधर में पहली बार मेयर बनाने में कामयाब हो पाएगी। चुनाव में कई बड़े चेहरों और उनकी गलतियों के कारण आप को सरकार बनाने के लिए अब दूसरी पार्टियों पर निर्भर होना पड़ रहा है।
देने पड़ सकते हैं सीनियर और डिप्टी मेयर के पद
अगर आप को विरोधी पार्टियां के पार्षदों का समर्थन मिलता है तो आप को नगर निगम में कुछ बड़े पद उन्हें देने पड़ते हैं। आप अपने पास मेयर का पद रख कर सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर का पद दे सकती है।
जनता ने पार्टी छोड़कर आए नेताओं को नकारा
जालंधर के लोगों ने इस बार एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाने वाले नेताओं को सिरे से नकारा दिया है। जिसका खामियाजा आप को हुआ है। क्योंकि आप ने कांग्रेस और बीजेपी से आए कई नेताओं को टिकट दिए थे। जिनमें कई बड़े चेहरे थे जिनसे जीत की उम्मीद थी पर वह हार गए। इसमें पूर्व मेयर जगदीश राजा, उनकी पत्नी अनीता, पूर्व डिप्टी मेयर हरसिमरन सिंह बंटी, पूर्व सीनियर डिप्टी मेयर कमलजीत सिंह भाटिया की पत्नी जसपाल कौर भाटिया के नाम शामिल हैं।
पूर्व मेयर और उनकी पत्नी हारीं
निगम चुनाव से ठीक पहले पूर्व मेयर जगदीश राज राजा अपनी पत्नी अनीता के साथ कांग्रेस का दामन छोड़ आप में शामिल हो गए। दोनों को आप ने 64 और 65 वार्ड से टिकट सौंपी। पर दोनों ही जीत नहीं पाए। राजा को भाजपा उम्मीदवार राजीव ढींगरा ने हराया तो वहीं उनकी पत्नी अनीता को प्रवीण वस्सल ने मात दी।
बंटी भी नहीं जीत दिला पाए
पूर्व डिप्टी मेयर रहे हरसिमरन सिंह बंटी भी अपने इलाके को लोगों को खुश नहीं कर पाए और उन्हें हार का सामना करना पड़ा। राजा की तरह ही बंटी भी काफी लंबे समय से कांग्रेस में थे। पर वह कांग्रेस छोड़कर आप में शामिल हुए थे, पर जनता ने उन्हें सिरे से नकार दिया और उनकी जगह भाजपा नेता मनजीत सिंह टीटू को जीता दिया।
कमलजीत भाटिया की पत्नी ने भी किया निराश
पूर्व सीनियर डिप्टी मेयर रहे कमलजीत सिंह भाटिया ने अपनी राजनीति की शुरुआत अकाली दल से की थी। जिसके बाद दोनों पति-पत्नी बीजेपी में शामिल हो गए। बीजेपी में शामिल होने के बाद दोनों ने आप को जॉइन कर लिया। लगातार पार्टी बदलने के कारण लोगों ने उन पर विश्वास नहीं दिखाया और वह हार गईं।
तरसेम लखोत्रा को नहीं दी टिकट, फिर जीते
इसी तरह ही कांग्रेस से आप में शामिल हुए तरसेम लखोत्रा पार्टी ने टिकट नहीं दी। जिससे नाराज होकर उन्होंने पार्टी छोड़ दी और आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े। जिसके बाद वह फिर चुनाव भी जीते। लोगों ने तरसेम लखोत्रा को स्वीकार किया और उन्हें जीत भी दिलवाई। जीत के बाद लखोत्रा से आप के सीनियर नेता से मुलाकात की है। पार्टी दोबारा लखोत्रा को अपने साथ जोड़ना चाहेगी।