सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि बाल विवाह को रोकने के लिए हमें जागरुकता की जरूरत है। सिर्फ सजा के प्रावधान से कुछ नहीं होगा। बाल विवाह निषेध अधिनियम को 'पर्सनल लॉ' (personal laws) प्रभावित नहीं कर सकते और बचपन में कराए गए विवाह अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का विकल्प छीन लेते हैं।
बाल विवाह को लेकर जागरुकता की जरूरत
CJI ने कहा कि इस तरह की शादियां नाबालिगों की जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन हैं। हमने बाल विवाह की रोकथाम पर बने कानून के उद्देश्य को देखा और समझा। इसके अंदर बिना किसी नुकसान के सजा देने का प्रावधान है, जो अप्रभावी साबित हुआ। हमें जरूरत है जागरुकता की।
बाल विवाह को कंट्रोल करने पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश
- बाल विवाह रोकने से जुड़े सभी विभागों के लोगों के लिए विशेष ट्रेनिंग की जरूरत है
- हर समुदाय के लिए अलग तरीके अपनाए जाएं
- दंडात्मक तरीके से सफलता नहीं मिलती
- समाज की स्थिति को समझ कर रणनीति बनाएं
बाल विवाह निषेध कानून को पर्सनल लॉ से ऊपर रखने का मसला संसदीय कमेटी के पास पेंडिंग है। इसलिए कोर्ट उस पर टिप्पणी नहीं कर रहालेकिन यह सच है कि कम उम्र में शादी लोगों को अपने पसंद का जीवनसाथी चुनने के अधिकार से वंचित कर देती है
जुलाई में फैसला रखा था सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिका सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलेंटरी एक्शन ने 2017 में लगाई थी। NGO का आरोप था कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को शब्दशः लागू नहीं किया जा रहा है।