बच्चों की शिक्षा समग्र होनी चाहिए और केवल उनके मन को जानकारी से भरने की प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए। सिर्फ कक्षा में आना और कुछ पाठ सीख लेना वास्तव में वह शिक्षा नहीं है जिसकी एक बच्चे को आवश्यकता होती है। हमें शरीर और मन के सम्पूर्ण विकास पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि वे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उनमें अपनापन, बांटना, प्रेम और देखभाल जैसी मानवीय मूल्यों को पोषित करना आवश्यक है। यही वे सिद्धांत हैं जिनके आधार पर आप एक दिव्य समाज का निर्माण कर सकते हैं।
एक आदर्श शिक्षक के क्या गुण होने चहिए?
एक अच्छे शिक्षक का पहला गुण है कि उसमें धैर्य हो। एक छात्र कमज़ोर शिक्षार्थी हो सकता है लेकिन शिक्षक का धैर्य उसकी स्थिति को परिवर्तित कर सकता है। शिक्षक को छात्र के विकास में व्यक्तिगत रुचि लेनी चाहिए। माता-पिता को केवल एक या दो बच्चों की ही देखभाल करनी पड़ती है, लेकिन शिक्षकों को पूरे कक्षा के बच्चों को देखना होता है।
यह स्थिति अधिक चुनौतीपूर्ण और तनावपूर्ण होती है। इसे संभालने के लिए आपको केन्द्रित रहना आवश्यक है। आपको एक उदाहरण स्थापित करना होगा क्योंकि बच्चे हमेशा आपको ध्यान से देख रहे होते हैं और आपसे सीखते हैं। वे देखते हैं जब आप शांत और संयमित रहते हैं, और जब आप तनावग्रस्त और क्रोधित होते हैं। बच्चे आधे मूल्य अपने माता-पिता से सीखते हैं और बाकी अपने शिक्षकों से
शिक्षक का दूसरा गुण है कि वह छात्र को समझे। जैसे कि वे कहाँ से आते हैं, उनकी पृष्ठभूमि क्या है और कैसे उनका कदम-कदम पर मार्गदर्शन किया जा सकता है, ये अत्यंत महत्वपूर्ण है। भगवान कृष्ण बड़े अच्छे शिक्षक थे । कृष्ण ने धैर्य और प्रेम के साथ, अर्जुन को धीरे-धीरे उसके लक्ष्य तक पहुँचाया।
एक छात्र बहुत भ्रम से गुज़रता है। जब ऐसा होता है तब उसकी अवधारणाएँ टूट रही होती हैं और एक अच्छा शिक्षक इस बात को समझता है। एक अच्छा शिक्षक अपने किसी भी छात्र को एक ही अवधारणा पर टिके रहने की अनुमति नहीं देता क्योंकि अवधारणा के टूटने का अर्थ है कि आप प्रगति की ओर अग्रसर हैं। आवश्यकता पड़ने पर एक शिक्षक, छात्र के मन में भ्रम की स्थिति उत्पन्न करते हैं, उसके जीवन में बाधाएँ डालते हैं। जिससे की छात्र में निखार लाया जा सके और उसमें सुधार किया जा सके।
शिक्षक का तीसरा गुण जो बहुत महत्वपूर्ण है, वह है प्रेममयी होने के साथ साथ थोड़ा कठोर होना। जीवन में दो तरह के शिक्षक मिलते हैं, एक वे जो आपसे बहुत प्यार करते हैं और दूसरे वे जो आपके प्रति थोड़े कठोर होते हैं। दोनों ही अच्छे शिक्षक नहीं होते हैं। एक शिक्षक में प्रेम और कठोरता दोनों गुणों का समन्वय होना आवश्यक है। अन्यथा आप छात्र का मार्गदर्शन नहीं कर पाएँगे।
भारत में, गुरु-शिष्य संबंध के बारे में यह एक बहुत ही सुंदर लेकिन एक विचित्र विचार है। गुरु कहते हैं कि मेरा शिष्य सदैव मुझ पर विजय प्राप्त करे और शिष्य की सदैव यही कामना रहती है कि मेरे गुरु को विजय प्राप्त हो। दोनों एक दूसरे की जीत की कामना करते हैं, यह सबसे उत्तम स्थिति है।
यदि कोई छात्र शिक्षक से बहस करता है और महसूस करता है कि वह जीत गया या वह शिक्षक से अधिक जानता है, तो इसका मतलब है कि उसके अहंकार ने उसे पूरी तरह से गिरा दिया है। इसका यही अर्थ है कि उसने वास्तव में कुछ नहीं सीखा और वह अहंकार में डूब गया है। हमेशा यही चाहता है कि उसके छात्र उत्कृष्ट होने के साथ-साथ विनम्रता से रहें। गुरु या शिक्षक हमेशा यही मंगल कामना करते हैं कि यदि संभव हो, तो मेरे शिष्य मुझसे भी अधिक ऊँचाई पर पहुँचे। वहीं दूसरी ओर शिष्य की कामना होती है कि मेरे गुरु जीतें क्योंकि वह मेरे छोटे मन, मेरी छोटी-छोटी इच्छाओं को जानते हैं।
समाज को प्रेरणास्रोत शिक्षकों की आवश्यकता है जो समाज को सही दिशा दिखा सकें। जब किसी का व्यक्तित्व वास्तव में खिल उठता है तब पूरा समाज उनसे प्रेरणा प्राप्त करता है।