Son runs free tiffin service for elderly in memory of father : पिता के बाद उनका बिज़नेस या विरासत संभालने वाले बेटे तो आपने कई देखे होंगे, लेकिन उनकी सीख और आदर्शों को अपने जीवन का मिशन बनाने वाले कम ही होते हैं। खेड़ा, गुजरात के रहनेवाले राकेश पंचाल पिछले पांच सालों से अपने शहर के सैकड़ों जरूरतमंद बुजुर्गों की सेवा कर रहे हैं, अपने फ्री टिफिन सर्विस के ज़रिए। यह सब कुछ मुमकिन हो पाया राकेश की सोच और उनके पिता की दी सीख की वजह से। आज उनकी संस्था ‘विसानो परिवार’ से टिफिन का लाभ 500 से अधिक लोग उठा रहे हैं।
पिता की बीमारी के कारण नौकरी छोड़ने का फैसला
राकेश कुछ साल पहले तक मुंबई में नौकरी करते थे। लेकिन पिता की बीमारी के कारण उन्होंने नौकरी छोड़कर खेड़ा जाकर पिता के बिज़नेस में मदद करने का फैसला किया। खेड़ा, गुजरात के एक बिज़नेसमन मनुभाई पंचाल सालों से अपने आस-पास के जरूरतमंद लोगों की मदद और राहगीरों को पानी पिलाने जैसे काम करते थे। लेकिन, पांच साल पहले उनका निधन हो गया।
दुकान को तो संभाला ही मिसाल बन गए कइयों के
पिता के निधन के बाद उनके बेटे राकेश पंचाल ने उनकी दुकान को तो संभाला ही, साथ ही उनके सेवा काम को अपना कर कइयों के लिए मिसाल बन गए। इस दौरान वह सिर्फ काम को बारीकियों को नहीं सीख रहे थे बल्कि पिता के नेक कामों से प्रेरित हो रहे थे। उनके पिता एक नेक दिल इंसान थे। उनकी दुकान के सामने हमेशा पानी का मटका भरा रहता था और नियमित रूप से जरूरतमंद लोगों के लिए समय निकालकर काम करने के लिए वह पुरे शहर में जाने जाते थे।
मन की शांति के लिए बने जरूरतमंदों का आसरा
राकेश पिता के निधन के बाद ये सारे काम तो कर रहे थे लेकिन इसके बावजूद उन्हें मन से शांति नहीं मिल पा रही थी। उन्होंने बताया कि उन्हें कुछ ऐसा करना था, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद हो सके। फिर उन्होंने शहर की हॉस्पिटल के पास जाकर जरूरतमंद लोगों को खाने के पैकेट्स देना शुरू किया। उस समय वह रेडी पैकेट्स खरीदकर बाँटने जाया करते थे।
छोटी सी जगह बनाकर खाना बनवाने का फैसला
जब कोरोनाकाल आया तब उन्होंने खुद की दुकान के पास एक छोटी सी जगह बनाकर खाना बनवाने का फैसला किया और इसे उन बेसहारा बुजुर्गों तक पहुंचाने लगें, जिनका ख्याल रखने वाला कोई नहीं था। ऐसे एक-एक करके सैकड़ों लोग मदद और भोजन के लिए उनके पास आने लगें। कोरोनाकाल के बाद भी इन बुजुर्गों को दो वक़्त के खाने के लिए परेशान न होना पड़े, इसलिए राकेश ने टिफिन सेवा जारी रखी और इसे एक संस्था का नाम दे दिया।