खबरिस्तान नेटवर्क। अल्जाइमर, मस्तिष्क से संबंधित रोग है, जिसका खतरा उम्र बढ़ने के साथ बढ़ता जाता है। डॉक्टर्स बताते हैं, 60 साल से अधिक उम्र के लोगों में अल्जाइमर रोग होने का जोखिम अधिक रहता है, वैश्विक स्तर पर 5 करोड़ से अधिक लोग इस गंभीर समस्या के शिकार हैं। इससे बचाव के लिए युवावस्था से ही सभी लोगों को प्रयास करते रहना चाहिए। अल्जाइमर के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 21 सितंबर को विश्व अल्जाइमर दिवस मनाया जाता है। इस रोग के बारे में अधिक जानकारी के लिए जालंधर के एनएचएस अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. संदीप गोयल से खास बातचीत की गई।
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. संदीप गोयल ने बताया कि अल्जाइमर रोग एक तरह की उम्रदराज लोगों की समस्या है जिसके कारण वे भूलना शुरू हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि जब दुनिया की कुछ मशहुर पर्सनैलिटीज भी उम्र के साथ भूलना शुरू हो गए तो इस बारे में जागरुक करने और ऐसे मरीजों की मदद करने के मकसद से मुहिम की शुरुआत की गई। साल 1984 में एडिनबर्ग स्कॉटलैंड, इंग्लैंड में अल्जाइमर इंटरनेशनल सोसाइटी बनाई गई जोकि ऐसे मरीजों की मदद करती है और फिर उन्होंने 21 सितंबर से इस दिन को मनाने की शुरुआत की ताकि लोगों को इस बारे में अधिक जानकारी मिले, वे इस रोग को समझे।
अल्जाइमर और डिमेंशिया में अंतर
डॉ. संदीप गोयल ने बताया कि डिमेंशिया बड़े स्तर की बीमारी है, जिसमें सब भूल जाता है। इसमें कई तरह के टाइप होते हैं। अल्जाइमर एक किस्म है डिमेंशिया की। पर अल्जाइमर सबसे ज्यादा कॉमन है। अल्जाइमर आमतौर पर 60 साल के बाद होता है जिसमें व्यक्ति सब भूलने लगता है। हालांकि इसकी कोई स्टेज नही होती लेकिन कह सकते हैं कि मरीज हल्का-हल्का भूल रहा है, फिर उसके बाद कुछ ज्यादा भूलने लगा और फिर सब भूल गया यानि कि आम भाषा में इसे हम तीन स्टेज का कह सकते हैं।
अल्जाइमर रोग जेनेटिक नही होता
डॉ. गोयल ने बताया कि अल्जाइमर रोग पीढी दर पीढी नही होता हालांकि कुछ जीन्स जिनमें अगर कोई समस्यो हो तब ये हो सकता है लेकिन आमतौर पर ऐसा नही होता। neurological चेंज के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें नाम भूलना, ड्रेसिंग भूलना आदि आता है। कुछ केमिकल्स बनते हैं ब्रेन में जोकि नॉर्मल सेल यानि नर्व फाइबर को डैमेज कर देते हैं। तब दिमाग कमजोर होना शुरू कर देता है। जिस कारण व्यक्ति भूलना शुरू कर देता है। जिस कारण neurological सिंपटम्स होते हैं। उन्होंने कहा कि ये रोग होता तो 60 साल की उम्र के बाद है लेकिन एक टर्म है प्रेवलेन्स यानि कि जैसे अगर 70 साल के 100 लोग हैं तो उनमें ये रोग ज्यादा होगा, 80 साल की उम्र में ये और भी ज्यादा होगा और ये उम्र के साथ खतरा बढ़ जाएगा।
परिवार की जिम्मेदारी अहम
60 -70 साल के बाद हर व्यक्ति को अपना काम कम कर देना चाहिए। इसमें परिवार की जिम्मेदारी अहम हो जाती है। जब बुजुर्ग अपना समान भूलना शुरू कर दें, चाबी या पर्स रख कर भूल जाए, इसके बाद नाम भूलना शुरू कर दें, बिहेवरीयल चेंज या जाएँ तो इन लक्षणों को देखकर परिवार को पता चल जाता है कि ये रोग हो गया है। उन्हें सही समय पर डॉक्टर को इलाज के लिए दिखाएँ। दवाई सही समय पर शुरू करें । अगर बुजुर्ग भूल जाएँ दवाई लेना तो परिवार को इसकी पूरी जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी।
बीपी, शुगर के मरीजों पर क्या होता है असर
बीपी, शुगर के मरीजों पर अटैक आने का खतरा होता है जिसमें दिमाग के सेल कमजोर हो जाते हैं। बार बार अटैक आने पर वे भूलना शुरू कर देते हैं। ये multi infar dimensia का टाइप है जो बीपी, शुगर के मरीजों में कॉमन समस्या है। इसकी ट्रीटमेंट में दवाइयाँ हैं, इन्जेक्शन है। इसके बारे में लगातार रिसर्च हो रही हैं। मरीज के रिश्तेदारों को समझाया जाता है कि बुजुर्ग कुछ भूल रहा है तो उसे कैसे समझाया जाए। उनके लिए ये जानना जरूरी है कि मेरे बुजुर्ग कुछ भूल तो नहीं रहे, उनके व्यवहार में कुछ बदलाव तो नहीं आदि ।