फिल्म की शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी के बचपन से होती है। बालक अटल की आंखों में हमेशा कुछ बड़ा करने की ललक दिखती है। वो इन्हीं सपनों को लेकर बड़ा होता है। जीवन की शुरुआत में ही अटल आरएसएस की शाखा से जुड़ जाते हैं। इसके बाद उनका अगला पड़ाव जनसंघ होता है। जनसंघ से जुड़ने के बाद वे एक बड़े नेता के रूप में स्थापित हो जाते हैं। इसके बाद वे जनता पार्टी की सरकार में मंत्री बनने से लेकर खुद के दल भाजपा का गठन करते हैं। सत्ता के शीर्ष यानी प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित करने के बाद उनकी राजनीतिक यात्रा में जो-जो रुकावटें आती हैं, फिल्म उसी को दर्शाती है। फिल्म में कारगिल वॉर और परमाणु परीक्षण जैसे साहसिक फैसले के पीछे की सोच भी दिखाई गई है।
स्टारकास्ट की एक्टिंग
अटल बिहारी वाजयेपी का किरदार पंकज त्रिपाठी से बेहतर और कोई नहीं निभा सकता था। फिल्म देखने के बाद यह बात साबित भी होती है। ऐसा लगता है कि पंकज नहीं बल्कि अटल जी ही पर्दे पर दिख रहे हैं। पंकज ने भारी भरकम डायलॉग्स को बड़ी सहजता से बोला है। एक्ट्रेस एकता कौल ने फिल्म में राजकुमारी कौल का किरदार निभाया है। अटल जी की लव इंटररेस्ट बनीं एकता का काम बहुत शानदार है। लाल कृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, प्रमोद महाजन और अरुण जेटली के रोल में सपोर्टिंग एक्टर्स का काम बढ़िया है। कुल मिला जुलाकर फिल्म की कास्टिंग अच्छी है।
डायरेक्शन
डायरेक्शन में इस बार नेशनल अवॉर्ड विनर रवि जाधव खरे नहीं उतर पाए हैं। मराठी फिल्मों में जिन्होंने उनका काम देखा है, उन्हें निराशा होगी। स्क्रीनप्ले काफी बिखरा हुआ है। फर्स्ट हाफ काफी हद तक बोरिंग है। सेकेंड हाफ में जरूर इंटररेस्ट बनाने की कोशिश की गई है। पावरफुल स्पीच और पंकज की अदाकारी ने सेकेंड हाफ में जान डाल दी है। फिल्म के म्यूजिक पर कुछ खास कहने को नहीं है। ऐसी फिल्मों में गाने वैसे भी प्रभावी नहीं होते। जो भी गाने हैं, फिल्म के सीक्वेंस के साथ मैच करते हैं।
काफी लोग अटल जी की लाइफ के लव एंगल से अनजान हैं। फिल्म में काफी अच्छे से इसे एक्सप्लोर किया गया है। लालकृष्ण आडवाणी के साथ अटल जी की मित्रता को खूबसूरती से पेश किया गया है। फिल्म में ऐसे ही अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन के कुछ अनसुने पहलुओं को दिखाया गया है।