PM Modi body language reveals his growing uneasiness : भारत का आम चुनाव अब जबकि दूसरे महीने में दाखिल हो चुका है। ज्यादातर पारंपरिक आकलन पहले ही धड़ाम हो चुके हैं। आत्मसंतुष्ट भविष्यवक्ताओं ने बहुत पहले ही यह नतीजा निकाल लिया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी (BJP) आसानी से जीत रही है लेकिन सात चरण के चुनाव में तीन चरणों की 283 सीटों के लिए वोट डाले जा चुके हैं। उसके बाद हालात अब इतने आसान नहीं दिख रहे हैं। भारत का स्वायत्त चुनाव आयोग सभी सात चरणों के मतदान खत्म होने तक किसी भी तरह के एग्जिट पोल जारी करने पर रोक लगाता है। (यह तारीख 1 जून है, नतीजों का ऐलान 4 जून को होगा) लेकिन मतदाताओं की भावनाओं के अनौपचारिक आकलन से यह इशारा मिलता है कि चीजें बीजेपी के मुताबिक नहीं चल रही हैं। ऐसा लगता है कि जनता के पास पार्टी को तीसरी बार वोट देने की पर्याप्त वजह नहीं हैं। जिन लोगों ने 2014 में मोदी को इस उम्मीद के साथ सत्ता सौंपी थी कि वह रोजगार पैदा करने के अपने वादे को पूरा करेंगे, उनके पास फिर से उन्हें वोट देने की कोई वजह नहीं है।
मुसलमानों पर छिपे शब्दों में धीरे-धीरे सीधे हमले
उनके शासनकाल में बेरोजगारी में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई और हालांकि लगता है कि हाल के दिनों में इसमें कमी आई है फिर भी यह मानने की भरपूर वजहें हैं कि असल बेरोजगारी दर सरकारी आंकड़ों से कहीं ज्यादा है। 2014 के बाद से हैरतअंगेज रूप से 80 फीसद भारतीयों की आय में गिरावट आई है और परचेजिंग पावर और घरेलू बचत दोनों घटी है। बहुत से लोग सरकार पर उनके कल्याण का काम नहीं करने का आरोप लगाते हैं। मोदी निश्चित रूप से अब भी खुद तो लोकप्रिय हैं, जिसका श्रेय बड़े जतन से बनाई गई उनकी व्यक्ति पूजा की इमेज को जाता लेकिन पार्टी के उम्मीदवारों को सीधे नकारा नहीं जा रहा है तो भी बड़े पैमाने पर उनके प्रति उदासीनता दिखाई दे रही है। पीएम मोदी के रंग-ढंग से बढ़ती बेचैनी का पता चलता है। मुसलमानों पर छिपे शब्दों में किए जाने वाले हमले धीरे-धीरे सीधे हमलों में बदल चुके हैं।
घोर भड़काऊ बयानबाजी बड़े पद का अपमान है
मोदी ने विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर भी हमले तेज कर दिए हैं और दावा किया है कि पार्टी के घोषणापत्र पर "मुस्लिम लीग की छाप" है। उन्होंने पिछले महीने एक चुनावी रैली में यह भी आशंका जता दी कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार हिंदुओं की निजी संपत्ति और जेवरों को उनसे छीनकर मुसलमानों में बांट देगी। कांग्रेस पार्टी के रुख को पूरी तरह गलत तरीके से पेश करने के अलावा- घोषणापत्र में न तो कहीं "मुस्लिम" और न ही "दोबारा बांटना" शब्द है। मोदी मुसलमानों को भारतीय नहीं बल्कि "घुसपैठिए" और "ज्यादा बच्चों वाले" कहकर निशाना बनाते हैं। घोर भड़काऊ बयानबाजी उस पद का अपमान है। एक प्रधानमंत्री से नागरिकों की सेवा करने की उम्मीद की जाती है फिर भी मोदी खुलेआम उन 20 करोड़ लोगों के लिए अपमानजक भाषा का इस्तेमाल करते हैं।
बीजेपी पदाधिकारी भी डर दिखाकर छोड़ रहे पार्टी
बीजेपी के दूसरे पदाधिकारी भी डर फैलाने में शामिल हो गए हैं, जो पार्टी की बढ़ती हताशा को दर्शाता है। उदाहरण के लिए गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया कि अगर बीजेपी हार गई तो भारत में शरिया कानून लागू हो जाएगा। इस तरह की बयानबाजी घोर अतिवादी है, मगर इसमें कोई अचंभे की बात नहीं। धार्मिक आधार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने की कोशिश बीजेपी की कामयाब स्ट्रेटजी रही है। हिसाब एकदम सीधा है। अगर मुसलमानों को बुरे लोग बताकर भारत के आधे हिंदुओं (जो आबादी का 80 फीसद हैं) को भी अपने आपसी मतभेदों को भुलाकर पार्टी के साथ एकजुट होने के लिए राजी किया जा सकता है तो एक और चुनावी जीत झोली में होगी लेकिन यह स्ट्रेटजी अचूक नहीं है. इसलिए बीजेपी दूसरे हथकंडे भी अपना रही है।
बीजू जनता दल और अकाली दल का गठबंधन ब्रेक
शुरुआत से देखें तो इसने बड़ी संख्या में विपक्षी राजनेताओं को अपने खेमे में मिला लिया है। अक्सर भ्रष्टाचार के आरोपियों को मुकदमे से बचने के लिए पार्टी बदलने को मजबूर किया जाता है। बीजेपी की वॉशिंग मशीन- जो दागी राजनेताओं को बेदाग कर देती है- एक राष्ट्रीय मजाक बन गया है। बीजेपी ने तमाम विपक्षी दलों के साथ गठबंधन किया है। उनमें से एक-आंध्र प्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी- ने कुछ साल पहले मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा (निचले सदन) में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था और इसके नेता ने मोदी की तीखी आलोचना की थी। अब, अचानक, सबकुछ भुला दिया है। पूर्वी राज्य ओडिशा में बीजू जनता दल और पश्चिमी राज्य पंजाब में अकाली दल, जिन्होंने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया है-को पाले में लाने की बीजेपी की कोशिशें कामयाब नहीं रहीं. दोनों पार्टियों ने बीजेपी की गुजारिश को ठुकरा दिया।
राहुल गांधी के हेलीकॉप्टर पर छापा, आत्मविश्वास कम
जब मान-मनुहार की उसकी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं, तो बीजेपी खुलेआम डराने-धमकाने पर उतर आती है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। विपक्षी आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष, जो दिल्ली और पंजाब में सत्ता में है- को एक जारी जांच के दौरान आधी रात को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। केजरीवाल के पूर्व उपमुख्यमंत्री एक साल से जेल में हैं, लेकिन अभी तक उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाया गया है। जहां तक कांग्रेस की बात है, उसके बैंक खाते चुनावी अभियान की शुरुआत में ही फ्रीज कर दिए गए थे और पिछले महीने काले धन की तलाश में पार्टी नेता राहुल गांधी के हेलीकॉप्टर पर छापा मारा गया। ये जनता के भरपूर समर्थन वाली किसी आत्मविश्वास से भरी पार्टी की हरकतें नहीं हैं, बल्कि एक ऐसी पार्टी की हरकतें हैं, जो महसूस करती है कि सत्ता उसकी मुट्ठी से फिसलती जा रही है।
विपक्ष नए आत्मविश्वास से लबरेज, बदलाव की महक
आखिरकार 2019 में, बीजेपी को कश्मीर में एक फौजी काफिले पर आतंकवादी हमले से बड़ी बढ़त मिली थी, जो पाकिस्तान के जैश-ए-मोहम्मद द्वारा मतदान से कुछ महीने पहले किया गया था। इस समय भारतीय मतदाताओं में जोश भरने वाली ऐसी कोई घटना नहीं होने की वजह से। बीजेपी पिछले चुनाव के अपने प्रदर्शन को दोहराने की उम्मीद नहीं कर सकती है। जनता बीजेपी के खोखले वादों से तंग आ चुकी है और विपक्ष नए आत्मविश्वास से लबरेज है। माहौल में बदलाव की महक है। बीजेपी ने 2019 के पिछले आम चुनाव में छह राज्यों में हर संसदीय सीट, तीन राज्यों में एक को छोड़कर सभी सीटें और दो राज्यों में दो को छोड़कर सभी सीटों पर जीत हासिल की। इन सभी राज्यों में बीजेपी के पास आगे जाने का एक ही रास्ता है : नीचे। अगर वह हर एक में चंद सीटें भी गंवा देती है तो कुछ मिलाकर वह अपना बहुमत खो देगी, जो कि केवल 32 सीटों का है और इसकी भरपूर संभावना है कि ऐसा होगा।