खबरिस्तान नेटवर्क : आईआईटी इंदौर के केमिकल और बायोमेडिकल साइंस एवं बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग ने अपने एक शोध के दौरान कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी के लिए उपचार खोज निकाला है। उन्होंने रुथेनियम आधारित ऐसे नैनो जेल का आविष्कार किया है, जो शरीर में मौजूद कैंसर सेल पर दो तरफा वार करेगा। कैंसर के इलाज की यह प्रक्रिया कीमोथेरेपी से बिल्कुल अलग प्रक्रिया है जो शरीर में मौजूद इन्फेक्टेड सेल पर ही वार करेगी। यह कीमोथैरेपी से बेहतर होगा क्योंकि यह कैंसर सेल के अलावा अन्य सेल को नहीं मारेगा। इसमें मौजूद रुथेनियम-ग्लूकोज कॉम्प्लेक्स अगर लीक हो भी जाता है तो वो शरीर से बाहर न निकलते हुए शरीर में ही मौजूद अन्य कैंसर सेल को ढूंढेगा और उन पर वार करेगा।
इस नैनो जेल के अविष्कार में काम करने वाली टीम के प्रोफेसर सोनकर के अनुसार इसे अलग-अलग स्टेज पर टेस्ट किया जा चुका है. जिसमें इस बात को देखा गया है कि यह केवल कैंसर युक्त सेल को ही नष्ट कर रहा है। इसके अलावा स्वस्थ सेल पर इसका प्रभाव नहीं है जो एक बहुत ही अच्छी बात है।
रुथेनियम के कारण साइड इफेक्ट भी कम होंगे
जैसा की आमतौर पर कैंसर पेशेंट को कीमोथेरेपी के कई साइड इफैक्ट्स झेलने पड़ते हैं, जिसके कारण शरीर पूरी तरह कमज़ोर हो जाता है। साथ ही और भी कई तरह के बदलाव शरीर में होते हैं। लेकिन अगर यह आविष्कार सफल साबित होता है तो इसमें मौजूद रूथेनियम के चलते शरीर पर किसी भी तरह के नुकसान देखने को नहीं मिलेगा और कैंसर के इलाज की प्रक्रिया भी आसान हो जाएगी। बता दें कि कैंसर के लिए वर्तमान में या तो प्लेटिनम आधारित ड्रग दिया जाता है या फिर ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल आधारित कॉम्प्लेक्स। दोनों ही स्वस्थ सेल को भी मारती है, जिससे मरीज में बहुत कमजोरी तो आती ही है साथ ही अन्य साइड इफेक्ट्स भी होते हैं। प्रो. मुखोपाध्याय ने बताया कि रुथेनियम इस समस्या का समाधान हो सकता है। इस पर आधारित दवा की तलाश भी लंबे समय से की जा रही है। यही एक मुख्य कारण है कि इस अविष्कार के सफल साबित होने से कैंसर जैसी बीमारी के इलाज में काफ़ी सकारात्मक बदलाव देखा जा सकता है।
मछली पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नजर नहीं आया
प्रोफेसर सोनकर ने बताया कि इस शोध को कई प्रकार से टेस्ट भी किया गया है और सभी में यह देखने को मिला कि नैनो जेल सिर्फ कैंसर सेल को ही प्रभावित करते हैं, स्वस्थ सेल पर कोई प्रभाव नहीं डालते। इसका एक प्रयोग मछलियों पर भी किया गया था, जिनमें कोई प्रतिकूल असर नहीं दिखा। हालांकि इंसानों पर इसके प्रयोग के लिए और अध्ययन करने की जरूरत है।