अयोध्या में विराजमान रामलला का पहला सूर्य तिलत रामनवमी यानी आज हुआ। 3 मिनट तक रामलला के मस्तक पर सूर्य किरणें पड़ीं। इसके लिए बेंगलुरु की कंपनी ने अष्टधातु के 20 पाइप से यह सिस्टम तैयार किया गया।जानकारी मुताबिक 1.20 करोड़ का ये सिस्टम मंदिर को डोनेट किया।
65 फीट लंबाई के इस सिस्टम में अष्टधातु के 20 पाइप पर लगाए गए। हर पाइप की लंबाई करीब 1 मीटर है। इन पाइप को फर्स्ट फ्लोर की सीलिंग से जोड़ते हुए मंदिर के अदंर लाया गया। गर्म किरणें रामलला के मस्तक पर न पड़े, इसलिए फिल्टर का इस्तेमाल किया गया।
क्या होता है अष्टधातु
अष्टधातु, (शाब्दिक अर्थ = आठ धातुएं) एक मिश्रातु है जो हिन्दू और जैन प्रतिमाओं के निर्माण में इस्तेंमाल होती है। जिन आठ धातुओं से मिलकर यह बनती है, वे ये हैं- सोना, चांदी, तांबा, सीसा, जस्ता, टिन, लोहा, तथा पारा (रस) की गणना की जाती है।
इस कंपनी ने किया है तैयार
सूर्य तिलक में लगने वाले पाइप से लेकर मिरर तक, सभी चीजें बेंगलुरु की कंपनी ऑप्टिक्स एंड एलाइड इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड (ऑप्टिका) ने तैयार कीं। सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की (CBRI) ने इसे डिजाइन किया।
करोड़ों की लागत लेकिन पैसा एक भी नहीं लिया
वहीं इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स बेंगलुरु (IIA) ने पाइप, मिरर और फिल्टर को फिट किया। इसकी लागत 1.20 करोड़ रुपए आई। ऑप्टिका कंपनी के मालिक ने इसके लिए एक भी पैसा नहीं लिया। हर साल रामनवमी पर सूर्य किरणें रामलला का अभिषेक करेंगी। साल 2043 तक इसकी टाइमिंग भी बढ़ेगी। 2043 में 2024 की टाइमिंग को रिपीट किया जाएगा।
4 मिरर और 4 लैंस लगे हुए है
एक रिपोर्ट के मुताबिक, CBRI के साइंटिस्ट ने बताया कि IIA बेंगलुरु की टीम के साथ मिलकर हमने इसे डिजाइन किया। इसमें 4 मिरर और 4 लेंस का प्रयोग किया गया। ये सभी हाई क्वालिटी की क्षमता वाले और बेहद कीमती हैं।
इस तरह होती है किरणें रिफ्लेक्ट
रामलला की मूर्ति का मुंह पूर्व दिशा में है। इसलिए इसे ऐसे लगाया गया है कि इसके ठीक उल्टी दिशा से किरणें मूर्ति की ओर रिफ्लेक्ट हो सकें। मंदिर के फर्स्ट फ्लोर की सीलिंग के ऊपर मिरर सेट किया गया, जिस पर सूर्य की किरणें पड़ीं। वहां इससे जोड़ते हुए पाइप लगाए गए।
पाइप को मंदिर की दीवार के पीछे इस तरह से सेट किया गया कि वह किसी को दिखाई न दें। फिर एपर्चर के सहारे अन्य पाइप को जोड़ते हुए अंदर लाया गया। हर मोड़ पर एक लेंस और दर्पण लगाया गया, ताकि सूर्य की किरणें रिफ्लेक्ट होते हुए आगे बढ़ें।
भगवान की प्रतिमा के सामने भी पाइप को इस तरह फिट किया गया कि वह किसी को दिखे नहीं। पाइप के अंतिम छोर पर भी एक दर्पण और लेंस का इस्तेमाल किया गया। इनके जरिए ही सूर्य की किरणें सीधे रामलला के मस्तक पर पड़ीं। इस पूरी डिजाइन में साइंटिफिक रीजन के साथ-साथ धार्मिक मान्यताओं का भी ख्याल रखा गया।
पुजारियों ने सूर्य किरणों का आना धार्मिक कारणों से ठीक नहीं माना
दरअसल मंदिर में मौजूद पुजारियों ने हमें बताया था कि लोहे के पाइप से सूर्य की किरणों का आना धार्मिक कारणों से ठीक नहीं था। इसलिए हमारी टीम ने कांच के अलावा, जहां भी अष्टधातु का इस्तेमाल करना था, वहां सिर्फ अष्टधातु का इस्तेमाल किया गया।
20 पाइप का इस्तमाल हुआ
इसमें अष्टधातु की 1 मीटर लंबाई वाली 20 पाइप का इस्तेमाल हुआ। पाइप को फर्स्ट फ्लोर की सीलिंग से जोड़ते हुए अंदर लाया गया। हर पाइप की लंबाई 1 मीटर है। मोटाई 3 MM और डायमीटर एरिया 200 MM का है।