कैंसर एक जानलेवा बीमारी है जिसका समय रहते इलाज न करवाया गया तो व्यक्ति की जान भी जा सकती है। ऐसे में आंखों के कैंसर से पीड़ित मरीजों के लिए एक अच्छी खबर है। बता दें कि एम्स में आंखों के कैंसर का इलाज नई तकनीक से किया जा रहा है। इस नई तकनीक का नाम गामा नाइफ रेडियोथेरेपी है।
डॉक्टरो ने दावा किया है कि पूरे देश में सिर्फ एम्स में गामा नाइफ रेडियोथेरेपी की मदद से आंखों के कैंसर का इलाज किया जा रहा है। इसकी सबसे खास बात यह है कि इस सर्जरी में आधे घंटे का समय लगता है। वहीं एम्स में आयुष्मान भारत और बीपीएल के मरीजों का फ्री में इलाज हो रहा है।
क्या होता है गामा नाइफ रेडियोथेरेपी
गामा नाइफ एक प्रकार की गैर-आक्रामक स्टीरियोटैक्टिक रेडियो सर्जरी है जो ब्रेन और ऑर्बिटस के ट्यूमर के इलाज का एक बेहद सटीक तरीका प्रदान करती है। गामा-नाइफ की सटीकता साइबरनाइफ की 1 मिमी और प्रोटॉन बीम थेरेपी की 2-3 मिमी की तुलना में 0.1 मिमी तक पहुंचती है।
इस तकनीक की सबसे खास बात ये है कि यह बिना सर्जरी, डे केयर प्रोसिजर है, जिसमें सिंगल सेशन में इसका इलाज किया जाता है। एम्स के न्यूरोसर्जन डॉक्टर दीपक अग्रवाल बताते हैं कि एम्स में ब्रेन ट्यूमर के लिए गामा नाइफ तकनीक का इस्तेमाल 1990 से किया जा रहा है।
वहीं इस ट्रीटमेंट की 75 हजार रुपये की फीस है लेकिन इसके बाद पूरी लाइफ लॉन्ग फॉलोअप फ्री में की जाती है।
जानिए आई स्पेशलिस्ट डॉक्टर से आंखों के कैंसर के बारे में
एम्स की आई स्पेशलिस्ट डॉक्टर भावना चावला बताती हैं कि आंखों में एक खास प्रकार का कैंसर होता है जिसे कोरोइडल मेलेनोमा कहते हैं। जब यह ट्यूमर आंखों के सेंसिटिव एरिया में होता है तो आंखों का विजन कम हो जाने से इस बीमारी का पता लग जाता है।
साथ ही वे बताती हैं कि आंखों में ये कैंसर अधिकतर वयस्कों में होता है। वहीं ये बीमारी वेस्टर्न कंट्रीज में 60 साल से ऊपर के लोगों में होती है। लेकिन अब देश में 40 साल के भी मरीजों में देखी जा सकती है। साथ ही उन्होंने बताया कि एम्स में इस तकनीक से अब तक 15 मरीजों का इलाज किया गया है जिसमें सबसे छोटा 14 साल का है।