किसी भी मौसम में होने वाले बैक्टीरियल इन्फेक्शंस के लिए डॉक्टर्स अक्सर एंटीबायोटिक दवाएं देते हैं। ऐसा बीमारी का इलाज और बैक्टीरिया को बढ़ने से रोकने के लिए करते हैं। लेकिन कई बार लोग खुद भी दवा खाते-खाते एंटीबायोटिक दवाओं की जानकारी कर लेते हैं और सामान्य बीमारी में डॉक्टर के पास जाने के बजाय किसी की सलाह पर या खुद से एंटीबायोटिक्स खा लेते हैं। जरा सा सर्दी-जुकाम हुआ तो हम एंटीबायोटिक टेबलेट खा लेते हैं, लेकिन यह गलत है, क्योंकि एंटीबायोटिक्स हर बीमारी का इलाज नहीं है और इसे ज्यादा खाने से अन्य बीमारियों का खतरा है। वर्ल्ड एंटीबायोटिक्स की रिपोर्ट की मानें तो भारत में पिछले 10 साल में प्रति व्यक्ति एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल 30 फीसदी तक बढ़ गया है। यानी हर एक भारतीय पहले से 30% ज्यादा एंटीबायोटिक खाने लगा है।
एंटीबायोटिक क्या है?
यह एंटीमाइक्रोबियल दवाएं होती हैं, जिन्हें बैक्टीरिया को किल करने और उनकी ग्रोथ को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एंटीबायोटिक्स तभी लेना चाहिए, जब कोई बैक्टीरिया इंफेक्शन हो, जैसे- स्किन में, दांत में इंफेक्शन आदि। लेकिन डॉक्टर की सलाह पर ही लें। वायरल इंफेक्शन में एंटीबायोटिक्स काम नहीं करते हैं। कुछ लोग जुकाम, गले खराब होने या बुखार होने पर भी एंटीबायोटिक्स ले लेते हैं, जो कि गलत है।
- एंटीबायोटिक्स दो तरह की होती हैं। पहली ब्रॉड एंटीबायोटिक हैं, ये बहुत सारी बैक्टीरिया को कवर करती हैं। यह तब दी जाती हैं, जब बैक्टीरिया के बारे में पता ही नहीं होता है।
- दूसरी नैरो एंटीबायोटिक हैं, ये एक या दो बैक्टीरिया को किल करती हैं। ये तब दी जाती हैं, जब बैक्टीरियल वायरस के बारे में पता होता है।
इन दवाओं से फायदा तो होता है लेकिन इन्हें लेते समय अन्य दवाओं के मुकाबले विशेष सावधानी की जरूरत होती है। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो एंटीबायोटिक दवाओं को लेने के फायदे के बजाय इसका बड़ा नुकसान हो सकता है।
बैक्टीरिया के कारण 12 लाख लोगों की मौत
हाल ही में एम्स ट्रामा सेंटर के अध्यक्ष डॉ. कामरान फारुकी ने एम्स के एक अध्ययन के माध्यम से एक न्यूज चैनल को बताया कि साल 2019 में पूरी दुनिया में करीब 12 लाख लोगों की मौत बैक्टीरियल संक्रमण की वजह से हुई थी। यह ऐसे बैक्टीरिया का हमला था जिन पर किसी भी एंटीबायोटिक दवा का असर नहीं हो रहा था। ये बैक्टीरिया एंटीबैक्टीरियल दवाओं के प्रति रेजिस्टेंट हो चुके थे और लगभग सुपर बग बन गए थे। बैक्टीरिया की इस स्थिति को मेडिकल क्षेत्र में एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस कहा जाता है।
डॉ. कामरान कहते हैं कि यह स्थिति तब आती है जब कोई बैक्टीरिया, फंगस, वायरस या पैरासाइट दवा के प्रति रेजिस्टेंट हो जाता है और बग या सुपर बग बनने लगता है, वह समय समय पर अपना रूप बदलने लगता है और कोई भी दवा उसके खिलाफ काम नहीं कर पाती है। यह स्थिति काफी खतरनाक होती है क्योंकि इस स्थिति में बीमारी का इलाज नहीं हो पाता है और मरीज की मौत हो जाती है।
ये गलतियां करते हैं लोग
. पहली गलती है बिना डॉक्टरी सलाह के, रिश्तेदार के कहने या खुद की मर्जी से एंटीबायोटिक दवाओं को लेना। हमेशा याद रखें कि एंटीबायोटिक दवाएं चिकित्सकीय सलाह से ली जाएं।
. दूसरी गलती है लोग एंटीबायोटिक दवाओं का कोर्स पूरा नहीं करते। जैसे ही बीमारी में फायदा पड़ता है लोग दवाओं को लेना बंद कर देते हैं। पांच दिन के बजाय दो चार दिन ही एंटीबायोटिक लेते हैं या रोजाना की पूरी खुराक नहीं लेते हैं। गैप कर देते हैं। ऐसा करना सबसे खराब है। एक बार ऐसा कर दिया तो अगली बार यह दवा बैक्टीरिया पर असर करना बंद कर देती है और बैक्टीरिया इसके प्रति रेजिस्टेंट हो जाता है।
. तीसरी सबसे बड़ी गलती है कि कल्चर टेस्ट के बाद ही ये दवाएं प्रिस्क्राइब करें, जैसे किसी को सीने में संक्रमण है तो बलगम का कल्चर कराकर ही दवा दें। अगर पहले ही एंटीबायोटिक दवा खा ली जाए तो इससे कल्चर टेस्ट गड़बड़ा जाता है।