सीआईडी में 'फ्रेडरिक्स' की भूमिका के लिए सबसे लोकप्रिय अभिनेता दिनेश फडनीस का निधन हो गया है। बता दें कि शनिवार रात को उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था और वेंटिलेटर पर रखा गया। 57 साल के एक्टर का मुंबई के तुंगा अस्पताल में इलाज चल रहा था। उनके निधन की खबर की पुष्टि सीआईडी एक्टर दयानंद शेट्टी ने की। दयानंद शेट्टी ने फडनीस के निधन पर बात करते हुए कहा, ''दिनेश ने रात 12.08 बजे अंतिम सांस ली.'' दयानंद शेट्टी ने बताया कि दिनेश फडनीस का निधन मल्टीपल ऑर्गन फेलियर के कारण हुआ है।
बता दें कि आजकल मल्टीपल ऑर्गन फेलियर के कारण कितने ही लोगों की जान जा रही है। आपको बताते हैं आखिर क्या है मल्टीपल ऑर्गन फेलियर और कैसे एक साथ फेल हो जाते हैं शरीर के दो या इससे ज्यादा अंग?
क्या होता है मल्टीपल ऑर्गन फेलियर?
शरीर में आई कोई गंभीर चोट या संक्रमण से आई सूजन, जब दो या दो से अधिक अंग प्रणालियों में शिथिलता का कारण बनती है तो इसे मल्टीपल ऑर्गन फेलियर कहा जाता है। मल्टीपल ऑर्गन सिस्टम फेलियर को मल्टीपल ऑर्गन डिसफंक्शन सिंड्रोम (MODS) के नाम से भी जाना जाता है, यह मरीज के लिए बेहद घातक हो सकता है। इस स्थिति में पीड़ित की जान तक भी जा सकती है। इससे इम्यून सिस्टम सहित पूरा शरीर प्रभावित होता है।
दरअसल इसका कोई एक ठोस कारण नहीं है, क्योंकि मरीज के हिसाब से इसके कई फैक्टर्स हो सकते हैं। हालांकि, ऑर्गन सिंड्रोम को सेप्सिस (Sepsis) के जरिए ट्रिगर किया जा सकता है। ये सिंड्रोम संक्रमण, चोट, हाइपोपरफ्यूजन और हाइपरमेटाबॉलिज्म के कारण होता है। इस स्थिति में साइटोकिन्स सेल्स का बनना अहम भूमिका निभाता है। इसमें सेल्स को सूचना भेजकर इम्यून सिस्टम को एक्टिव रखा जाता है। शरीर में ब्रैडीकिनिन प्रोटीन्स की मात्रा ज्यादा होने पर भी मल्टीपल ऑर्गन फेलियर हो सकता है।
ये होते हैं लक्षण
इस स्थिति में शरीर में ब्लड सर्कुलेशन के प्रभावित होने से शरीर में सूजन आने लगती है और ब्लड क्लॉट भी बनने लगते हैं। इसकी चपेट में आने से शरीर को ठंड का एहसास होना, मांसपेशियों में दर्द, पेशाब का न आना, सांस लेने में बहुत कठिनाई होना, स्किन का बेजान पड़ जाना आदि इसके लक्षण हैं। इससे मुख्य रूप से फेफड़े, हृदय, गुर्दा, जिगर, मस्तिष्क, रक्त प्रभावित होते हैं.
जानें इसका ईलाज -
रिसर्च अनुसार देश और दुनिया में ऑर्गन फेलियर वाले रोगियों का उपचार अभी भी काफी हद तक कारगर है। पिछले 20 सालों के आंकड़ों पर गौर करें तो रोगी की मृत्यु दर का प्रभाव काफी कम हुआ है। समय रहते अगर व्यक्ति अपने सिम्टम्स को पहचान लेता है तो वो अपनी जांच करा सकता है। अगर आपको खुद में ये लक्षण दिखते हैं तो बिना देर किए अपने डॉक्टर से बात करें। समय रहते इसका इलाज कराने से आप काफी हद तक अपना बचाव कर सकते हैं।