देश में लोकसभा चुनाव का दौर चल रहा है। वहीं दो सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी अपने घोषणा पत्र को लॉन्च कर चुकी है। इस दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि दुनिया के किसी भी Democratic Country में नहीं है शरिया। कांग्रेस पार्टी पर्सनल लॉ के आधार पर ये देश चलाना चाहती है और हम चाहते है देश में एक कानून यानी UCC होना चाहिए।
शरिया लाना है तो पूरा लाओ
शाह ने इंडिया टू डे के इंटरव्यू में कहा कि अगर शरिया मानते हो, तो पूरी तरह से मानो। चोरी करने पर हाथ काट दो, नशीले पदार्थों के सेवन पर कोड़े मारो…अगर लाना है तो पूरी तरह लाओ।
क्यों ला रहे UCC( सामान नागरिकता संहिता)?
उन्होंने कहा कि देश को पंथनिर्पेक्षता बनाने के लिए इसीलिए UCC ला रहे है। यूसीसी क्यो चाहिए चार शादियां करने के लिए। इस देश का कानून धर्म के आधार पर होना चाहिए। शरिया लाना है तो पूरा लाओ ये क्या हमें पंथनिर्पेक्षता सिखाएंगे। जो पार्टी अपने घोषणा पत्र में पर्सनल लॉ के बारे में बात करती है वो क्या पंथनिर्पेक्षता मानी जाएगी।
क्या है UCC?
समान नागरिक संहिता के तहत महिलाओं को पैतृक संपत्तियों, गोद लेने और तलाक़ में समान अधिकार दिया गया है। माना जा रहा है कि इससे 'हलाला', 'इद्दत' और 'तीन तलाक' जैसे रिवाज अब दंडनीय अपराध की श्रेणी में शामिल हो जाएंगे और बहुविवाह पर भी प्रतिबंध लग जाएगा। संहिता में विवाह की उम्र लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई है. पुरुष व महिलाओं के तलाक से संबंधित विषयों में तलाक लेने के समान कारण व अधिकार रखे गए हैं.
क्या है शरिया कानून?
कुछ लोग शरिया या शरीयत कानून कहते हैं। भारत में शरीयत से संबंधित 1937 में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापनी की गई थी। इसके तहत मुसलमानों के सभी मामलों का निपटारा इस्लामिक कानून के तहत करने की बात की जाती है। इसमें मुसलमानों की शादी, तलाक, विरासत और विवाद के फैसले शामिल होते हैं।
उत्तराखंड में सबसे पहले पारित हो गया है
उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक ध्वनिमत से पारित हो गया है। इसके साथ ही समान नागरिक संहिता विधेयक पास करने वाला उत्तराखंड भारत का पहला राज्य बन गया है।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक इस विधेयक को लेकर उत्तराखंड के मुसलमानों की क्या राय है, यही जानने के लिए अलग अलग इलाकों के कई मुस्लिमों से बातचीत की गई है।
राजधानी देहरादून में रह रहे मुस्लिम समाज के एक वरिष्ठ नागरिक और बुद्धिजीवी एसएमए काज़मी ने बताया, ये विधेयक(कानून) जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और लिव-इन रिलेशनशिप और उससे संबंधित मामलों में एकरूपता प्रदान करने का वादा करता है, यह किसी भी प्रकार की 'एकरूपता' का वादा करने की तुलना में अधिक प्रश्न उठाता और भ्रम बढ़ाता हुआ दिखाई देता है।
सवाल ये कि अनुसूचित जनजातियों पर क्यों नहीं होगा लागू?
एक व्यक्ति ने कहा समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड, 2024 विधेयक में एकरूपता इसकी प्रस्तावना में बिखरी हुई है, जिसके दूसरे पैरे में ही यह लिखा गया है कि यह विधेयक अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों पर लागू नहीं होगा।
सवाल यह उठता है कि यदि यह विधेयक राज्य के सभी नागरिकों के लिए फ़ायदेमंद है, तो अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को इस कानून से वंचित क्यों रखा गया है?
रिपोर्ट के मुताबिक व्यक्ति ने कहा किल संघ परिवार और बीजेपी के एजेंडे के अनुसार यह विधेयक विवाह, तलाक़, पुनर्विवाह और उत्तराधिकार के मामलों में अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों को लक्षित करता है।
लिव-इन रिलेशनशिप को रजिस्टर्ड करवाना होगा अनिवार्य
यहां पहले ही 1955 के हिंदुओं के क़ानून और 1937 का मुस्लिम पर्सनल लॉ, इन सब पर पहले से क़ानून बने हैं, लिहाज़ा केंद्र के क़ानून चलेंगे ना कि यहां के क़ानून चलेंगे। काज़मी ने बताया, इस विधेयक में लिव-इन रिलेशनशिप को रेजिस्टर्ड कराना अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव है और ऐसा न करने पर क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी।