ख़बरिस्तान नेटवर्क: अमेरिकी रक्षा विभाग (पेंटागन) की नई ग्रूमिंग नीति ने सेना में कार्यरत धार्मिक अल्पसंख्यकों के बीच व्यापक रोष पैदा कर दिया है। रक्षा सचिव पीट हेगसेथ द्वारा जारी किए गए एक ताज़ा आदेश ने धार्मिक कारणों से दाढ़ी रखने के अधिकार को लगभग समाप्त कर दिया है। इस नीति का सीधा असर सिख, मुस्लिम और यहूदी सैनिकों की धार्मिक पहचान और उनके सैन्य करियर पर पड़ेगा।
दरअसल अमेरिकी रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने हाल ही में वर्जीनिया के मरीन कॉर्प्स बेस क्वांटिको में एक भाषण के दौरान सेना में अनुशासन बहाल करने की बात करते हुए दाढ़ी रखने की छूट को खत्म करने की घोषणा की थी। इसके तुरंत बाद पेंटागन ने एक आधिकारिक मेमो जारी किया जिसमें सभी सैन्य शाखाओं को 2010 से पहले के मानकों पर लौटने का आदेश दिया गया। इसका मूल अर्थ यह है कि अब दाढ़ी रखने की अनुमति (अलाउंस) रद्द कर दी गई है।
बदले गए नियम,अब क्या होगा?
पेंटागन की तरफ से जारी किए गए नए आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि चेहरे के बालों के लिए धार्मिक या व्यक्तिगत छूटें सामान्य तौर पर नहीं दी जाएंगी। सभी सैन्य इकाइयों को 60 दिनों के भीतर एक कार्य योजना विकसित करनी होगी और 90 दिनों के भीतर इस नियम को पूरी तरह से लागू करना होगा।
सिर्फ स्पेशल ऑपरेशंस यूनिट्स को सीमित और अस्थायी छूटें दी जा सकती हैं, लेकिन उन्हें भी मिशन से पहले क्लीन-शेव करना आवश्यक होगा। इसके अतिरिक्त अधिक वजन वाले वरिष्ठ अधिकारियों, जैसे मोटे जनरलों, को वजन कम करने की चेतावनी दी गई है। 2017 में ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान दाढ़ी, पगड़ी और अन्य धार्मिक प्रतीकों की इजाज़त दी गई थी, लेकिन अब इस नियम को बदल दिया गया है।
यह नई नीति 2010 से पहले के सख्त सैन्य मानदंडों की ओर वापसी का संकेत देती है, जब दाढ़ी रखने की अनुमति नहीं थी। धार्मिक संगठनों और सैनिकों ने इस नीति की धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में आलोचना की है, जबकि पेंटागन का कहना है कि यह फैसला सैन्य अनुशासन और एकरूपता बनाए रखने के लिए लिया गया है।
2017 की प्रगतिशील नीति अब इतिहास
2017 में अमेरिकी सेना ने सिख सैनिकों को दाढ़ी और पगड़ी पहनने के लिए स्थायी छूट देकर एक ऐतिहासिक कदम उठाया था। इसके बाद मुस्लिम, यहूदी और नॉर्स पगैन समुदायों के सैनिकों को भी धार्मिक आधार पर छूटें मिली थीं। इस नीति को जुलाई 2025 में फिर से अपडेट किया गया था, जिसमें धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा की गई थी। हालांकि नई नीति इन सभी प्रगतिशील पहलों को उलट देती है।