यूं तो शादी के बाद मां बनना हर महिला का सपना होता है। ऐसे में गर्भ में पल रहा बच्चा किसे नहीं प्यारा होता है। लेकिन कई बार महिलाओं के लिए गर्भ में पल रहा बच्चा किसी बोझ से कम नहीं लगता है। जी हां इन्हीं समस्याओं में से एक यौन उत्पीड़न का भी है जिसमें किसी युवती या महिला को देश के कानून की वजह से इस अनचाहे गर्भ से मुक्ति नहीं मिल पाती है।
जिस वजह से उनके शारीरिक और मानसिक दोनों स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। लेकिन यौन उत्पीड़न से पीड़ित महिलाओं के अपने अनचाहे गर्भ से निजात पा सकती हैं। बता दें कि ऐसे ही एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने 14 साल की पीड़िता को 30वें सप्ताह में गर्भपात की मंजूरी दे दी है।
वैसे तो सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी स्थिति में अबॉर्शन कराने की मंजूरी दे दी लेकिन क्या 30वें सप्ताह में अबॉर्शन कराना सही है। इससे मां को तो किसी तरह का खतरा तो नहीं हो सकता है। साथ ही कानून के हिसाब से अबॉर्शन यक सही समय सीमा क्या है। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
जानें क्या है पूरा मामला
हाल ही में देश के सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसका संबंध यौन उत्पीड़न के मामले से था। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 14 साल की पीड़ित लड़की को गर्भपात कराने की मंजूरी दी है जबकि कुछ समय पहले बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस केस में अबॉर्शन कराने की मांग को रद्द कर दिया था।
फिर पीड़िता के परिवारजनों ने सुप्रीम कोर्ट की ओर रुख किया। वहीं इस मामले की मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने की है। हालांकि कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए आदेश देते हुए कहा कि गर्भपात में हर घंटे की देरी गर्भस्थ शिशु के लिए मुश्किलें बढ़ाती है।
ऐसे में उन्होंने ने केस को असाधारण बताते हुए लड़की की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को देखते हुए उसकी जिंदगी बचाना ज्यादा जरूरी बताया।
भारत में गर्भपात के लिए क्या है कानून
बता दें कि भारत में गर्भपात के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 लागू है, जिसे एमटीपी एक्ट भी कहा जाता है। इस कानून के तहत 20 सप्ताह तक गर्भावस्था के अबॉर्शन की अनुमति दी जाती है।
लेकिन इसके लिए डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है। अगर प्रेग्नेंसी 20वें से 24वें सप्ताह की है तो डॉक्टर की इजाजत लेना जरूरी हो जाता है। वहीं ऐसी कंडीशन में अगर कोई जबरन या गैरकानूनी तरीके से अबॉर्शन कराना चाहता है तो उसे जेल भी हो सकती है।
पीड़ित पर मानसिक और शारीरिक सेहत पर गलत प्रभाव
हालांकि 22 अप्रैल को सुनाए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट की भी जांच की। जिसमे पाया गया कि इच्छा के विरुद्ध गर्भावस्था जारी रखने से नाबालिग के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नेगेटिव इम्पैक्ट पड़ सकता है क्योंकि अभी वह महज 14 साल की है। ऐसे में कोर्ट ने लड़की की जिंदगी को बचाना जरूरी समझा।