ज्ञानवापी केस में कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। हिंदू पक्ष को व्यास जी तहखाने में पूजा का अधिकार मिल गया है। वाराणसी कोर्ट ने ये बड़ा फैसला सुनाया है। अयोध्या में राम मंदिर बनने के बाद ये बड़ा फैसला है। जिला प्रशासन को सात दिन में व्यवस्था करने के लिए कहा है। व्यास तहखाना 1993 से बंद था।
नंदी भगवान के ठीक सामने व्यास परिवार का तहखाना है। मस्जिद के ग्राउंड फ्लोर में 1993 तक यहां पूजा होती थी, लेकिन नवंबर 1993 में सरकार ने यहां पूजा बंद करा दी थी और पुजारियों को हटा दिया था।
ज्ञानवापी स्थित व्यास तहखाना को जिलाधिकारी को सौंपने और उसमें पूजा-पाठ का अधिकारी देने की मांग को लेकर पं. सोमनाथ व्यास के नाती शैलेंद्र पाठक की ओर से दाखिल मुकदमे में जिला जज डा. अजय कृष्ण विश्वेश ने मंगलवार को आदेश सुरक्षित रख लिया था। इससे पहले सुनवाई के दौरान वादी व प्रतिवादी अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद ने अपनी-अपनी दलीलें दीं। बहस के बाद अदालत ने आदेश के लिए बुधवार का दिन दिया है।
ASI सर्वे रिपोर्ट में खुलासे
ज्ञानवापी की ASI सर्वे रिपोर्ट 25 जनवरी को सार्वजनिक की गई थी। जिसके मुताबिक, परिसर के अंदर भगवान विष्णु, गणेश और शिवलिंग की मूर्ति मिली हैं। पूरे परिसर को मंदिर स्ट्रक्चर पर खड़ा बताते हुए 34 साक्ष्य का जिक्र है। मस्जिद परिसर के अंदर 'महामुक्ति मंडप' नाम का शिलापट भी मिला है।
ASI के मुताबिक ज्ञानवापी में बड़ा हिंदू मंदिर था। 17वीं शताब्दी में जब औरंगजेब का शासन था, उस वक्त ज्ञानवापी स्ट्रक्चर को तोड़ा गया। कुछ हिस्सों को मॉडिफाई किया गया। मूलरूप को प्लास्टर और चूने से छिपाया गया। 839 पेज की रिपोर्ट में ASI ने परिसर के प्रमुख स्थानों का जिक्र किया।
ज्ञानवापी की दीवारों, शिलापटों पर 4 भाषाओं का जिक्र मिला। इसमें देवनागरी, कन्नड़, तेलुगु और ग्रंथ भाषाएं हैं। इसके अलावा भगवान शिव के 3 नाम भी मिले हैं। यह जनार्दन, रुद्र और ओमेश्वर हैं। सारे पिलर पहले मंदिर के थे, जिन्हें मॉडिफाई कर दोबारा इस्तेमाल किया गया।
परिसर के मौजूदा स्ट्रक्चर में सजाए गए मेहराबों के निचले सिरों पर उकेरी गई जानवरों की आकृतियां विकृत कर दी गई हैं। गुंबद के अंदरूनी हिस्से को ज्यामितीय डिजाइन से सजाया गया है। मंदिर के केंद्रीय कक्ष का मुख्य प्रवेश द्वार पश्चिम से था। इस द्वार को जानवरों और पक्षियों की नक्काशी और एक सजावटी तोरण से सजाया गया था।