Tubeless tires and normal tires have started being used in four-wheeler and two-wheeler vehicles : आज के समय में फोर व्हीलर और टू-व्हीलर गाड़ी में ट्यूबलेस टायर यूज होने लगे हैं। इससे पहले सभी गाड़ी में नॉर्मल टायर यूज होते थे, जिनमें टायर के साथ ट्यूब भी होता था और इसमें हवा भरी जाती थी। आज हम आपके लिए ट्यूबलेस टायर और नॉर्मल टायर का कंपेरिजन लेकर आए हैं। ट्यूबलेस टायर और नॉर्मल टायर के कंपेरिजन में हम आपको बताएंगे कि गाड़ी के लिए दोनों में कौन सा टायर बेस्ट रहता है।
ट्यूबलेस टायर के फायदे
कम पंचर रिस्क : ट्यूबलेस टायर में हवा सीधे टायर और रिम के बीच रहती है, इसलिए पंचर होने पर हवा धीरे-धीरे निकलती है। यह वाहन अचानक रुकने से बचाता है।
लोअर रोलिंग रेसिस्टेंस : ट्यूबलेस टायर में घर्षण कम होता है, जिससे ईंधन की बचत होती है और माइलेज बेहतर होता है।
हल्के वजन : ट्यूबलेस टायर में ट्यूब नहीं होती, जिससे वजन कम होता है और वाहन की परफॉर्मेंस बेहतर होती है।
सेल्फ-हीलिंग प्रॉपर्टीज : छोटे पंचर खुद ही सील हो जाते हैं क्योंकि टायर के अंदर की सीलेंट हवा के संपर्क में आते ही जम जाती है।
बेहतर हैंडलिंग : ये टायर टायर में दबाव को बनाए रखने में मदद करते हैं, जिससे हैंडलिंग और स्थिरता में सुधार होता है।
ट्यूबलेस टायर के नुकसान
महंगे : ट्यूबलेस टायर नॉर्मल टायर की तुलना में महंगे होते हैं।
सर्विसिंग में जटिलता : पंचर होने पर इनकी मरम्मत ट्यूब टायर की तुलना में जटिल होती है और इसके लिए विशेष उपकरण की आवश्यकता होती है।
विशेष रिम की आवश्यकता : ट्यूबलेस टायर विशेष रिम पर ही फिट होते हैं, इसलिए पुरानी गाड़ियों में इनका उपयोग कठिन हो सकता है।
नॉर्मल टायर के फायदे
सस्ते : नॉर्मल टायर ट्यूबलेस टायर की तुलना में सस्ते होते हैं।
आसान मरम्मत : इनकी मरम्मत और पंचर ठीक करना आसान होता है और इसे सड़क के किनारे भी आसानी से ठीक किया जा सकता है।
अधिक उपयोगी : ये टायर लगभग सभी प्रकार के रिम पर फिट हो सकते हैं, इसलिए इनका उपयोग पुरानी गाड़ियों में भी आसानी से किया जा सकता है।
नॉर्मल टायर के नुकसान
अधिक पंचर रिस्क : ट्यूब टायर में ट्यूब होती है, जिससे पंचर होने पर हवा तेजी से निकलती है और अचानक फ्लैट टायर हो सकता है।
अधिक वजन : ट्यूब टायर में ट्यूब और टायर दोनों होते हैं, जिससे उनका वजन अधिक होता है और वाहन की परफॉर्मेंस पर असर पड़ सकता है।
लोअर फ्यूल एफिशिएंसी : ट्यूब टायर का रोलिंग रेसिस्टेंस अधिक होता है, जिससे ईंधन की खपत बढ़ जाती है।
ओवरहीटिंग : लंबी दूरी पर चलाने से ट्यूब टायर में ओवरहीटिंग का खतरा रहता है, जो टायर ब्लोआउट का कारण बन सकता है।