मारुति सुजुकी आज देश की सबसे बड़ी कार बनाने वाली कंपनी है। इसकी शुरुआत मारुति के नाम से भारत में हुई थी। हालांकि बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि इसके पहले मैनेजिंग डायरेक्टर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी थे। 14 दिसंबर 1983 को पॉपुलर मारुति 800 पेश की गई थी। भारत की सबसे सफल कारों में से एक रही है।
मिडिल और लोअर क्लास भी खरीद पाए
1983 के पहले भी भारत में कई सालों से कारों का निर्माण हो रहा था। 1950 के दशक से ही ज्यादा किफायती पीपल्स कार (लोगों की कार) को लेकर चर्चाएं चल रही थी। लेकिन ऐसी सस्ती कार आने में सालों लग गए, जिसे मिडिल और लोअर मिडिल क्लास लोग भी खरीद पाएं। यह थी मारुति 800।
इसके लॉन्च होने का क्रेडिट पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी को दिया जाता रहा हैं। हालांकि जून 1980 में संजय गांधी की प्लेन क्रैश में मौत हो गई थी। इसके बाद इंदिरा गांधी ने पीपल्स कार विजन को आगे बढ़ाया था। 1959 में एक समिति ने ऐसी कार को डिजायरेबल नेसेसिटी बताया था। एक साल बाद एक अन्य समिति ने इसका समर्थन किया।
10 साल तक कागज पर ही रहा विचार
ऐसी कार का विचार 10 साल तक कागज पर ही रहा जब तक कि सरकार ने प्राइवेट कंपनियों को छोटी कार बनाने के लाइसेंस आवेदन करने को इंवाइट नहीं किया। सरकार ने इंवाइट पर 18 आवेदक आए जिनमें टेल्को (जो अब टाटा मोटर्स है) भी शामिल थी। बता दें कि इनमे से एक कंपनी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की भी थी जो, मारुति थी। जिसके बाद मारुति को लाइसेंस मिल गया।
रोल्स रॉयस के साथ 3 साल ट्रेनिंग की
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक संजय गांधी ने रोल्स रॉयस के साथ 3 साल तक ट्रेनिंग की हुई थी। हालांकि बाद में सामने आया कि उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में मामूली क्वालिफिकेशन ही ली थी। भले ही उनके पास मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ज्यादा क्वलिफिकेशन नहीं थी। लेकिन संजय को अपनी मारुति फैक्ट्री शुरू करने के लिए गुड़गांव में 12 हजार रुपए प्रति एकड़ से थोड़ा कम पर 297 एकड़ जमीन मिल गई।
8 हजार रुपए रखी थी कीमत
योजना पूरी तरह से स्वदेशी कार बनाने की थी, जिसकी कीमत लगभग 8 हजार रुपए हो। मई 1975 में जब यह लॉन्च के करीब पहुंची तो एक्सशोरूम कीमत 16,500 रुपए तय की गई थी। हरियाणा में ऑन रोड कीमत 21 हजार रुपए होती थी लेकिन फिर बाजार के मौजूदा मॉडलों की तुलना में यह 5 हजार से 10 हजार रुपए सस्ती थी। लेकिन वह दिन कभी नहीं आया जब संजय गांधी की मारुति शोरूमों तक पहुंचती।
मई 1975 में दावा किया गया था कि हर महीने 12-20 यूनिट के साथ प्रोडक्शन शुरू किया जाएगा और 4 सालों में इसे 200 यूनिट प्रति दिन तक ले जाया जाएगा।
यह आईडिया अपनी मां से शुरू किया था
कहा जाता है कि अपना यही आइडिया उन्होंने तत्कालीन पीएम और मां इंदिरा गांधी से शेयर किया था। संजय गांधी के सुझाव के आधार पर ही इंदिरा गांधी ने कैबिनेट में कार निर्माण के लिए सरकारी कंपनी के गठन का प्रस्ताव रखा था। इसके बाद 4 जून 1971 को मारुति मोटर्स लिमिटेड नामक एक कंपनी का गठन किया गया था और इसके एमडी के तौर पर संजय गांधी को जिम्मेदारी दी गई थी।
इमरजेंसी लगने से प्रोजेक्ट हुआ प्रभावित
जून 1975 में उनकी मां और पीएम इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी और संजय गांधी राजनीति में आ गए। इससे भी उनका कार प्रोजेक्ट प्रभावित हुआ। फिर, इंदिरा गांधी 1977 का चुनाव हार गईं और 1978 में एक अदालत ने मारुति को बंद करने का आदेश दिया। यह कंपनी तभी बंद हो गई होती लेकिन 1980 में इंदिरा फिर से पीएम बनीं।
1980 के बाद भारत सरकार ने अपने अंडर ले लिया
अब जून (1980) में विमान दुर्घटना में संजय की मौत हो गई। इसके बाद भारत सरकार ने मारुति लिमिटेड को 13 अक्टूबर, 1980 से अपने अंडर ले लिया। साथ ही जापान की सुजुकी को मारुति का कुछ हिस्सा बेचा गया और फिर 1983 में पहली मारुति 800 लॉन्च हुई। यहीं से मारुति के घर-घर पहुंचने का सफर शुरू हुआ। हालांकि, मारुति 800 में सिर्फ नाम ही संजय गांधी की मारुति का था, उसके अलावा यह नया प्रोडक्ट था।