लुधियाना, इस समय देश की सबसे बड़ी समस्या कूड़ा बना हुआ है। लेकिन इस कूड़े को मैनेज करके गांव और शहर के लोग न केवल कूड़े से पैसा कमा सकते हैं, बल्कि रोजगार भी पैदा कर सकते हैं। कूड़े के प्रबंधन को लेकर गांव और शहर के लोगों को अपनी मानसिकता को बदलना होगा।
यह विचार मंगलवार को हरियावल पंजाब की तरफ से कूड़ा प्रबंधन के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए करवाई गई एक वर्कशॉप में माहिरों ने पेश किए। इस वर्कशाप में 150 वातावरण प्रेमियों ने भाग लिया।
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वर्कशाप के मुख्य वक्ता कूड़ा प्रबंधन माहिर इंदौर से आए सुधीर पुलोरिया थे। इसके अलावा विशिष्ट अतिथि के रूप में भारतीय विद्या मंदिर के प्रधान पीसी गर्ग, मंडी गोबिंदगढ़ से भवानी मिल्स के डायरेक्टर संजीव सूद और माधव इंडस्ट्री के डायरेक्टर संजीव कुमार पहुंचे।
कूड़ा प्रबंधन के लिए ठोस नीति का अभी भी आभाव – सुधीर पुलोरिया
प्रोग्राम के मुख्यवक्ता सुधीर पुलोरिया ने अलग अलग सत्रों के माध्यम से कूड़ा प्रबंधन क्षेत्र में सुधार के लिए नागरिकों की भागीदारी और सहभागिता से लेकर इंडस्ट्री की भूमिका के बारे में जानकारी दी। उन्होंने घर में आने वाले खट्टे मीठे फलों से जैव एंजाइम बनाने की विधि से सबको अवगत करवाया। उसके फायदे भी बताए। जैव एंजाइम के इस्तेमाल से जहां हम प्लास्टिक के उपयोग को कम कर सकते है, वहीं पर रसायनिक उत्पादों से मुक्ति प्राप्त कर सकते है।
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सुधीर पुलोरिया ने बताया की बढ़ते शहरीकरण और उसके प्रभाव से निरंतर बदलती जीवनशैली ने आधुनिक समाज के सामने घरेलू तथा औद्योगिक स्तर पर उत्पन्न होने वाले कूड़े के उचित प्रबंधन की गंभीर चुनौती है। वर्ष-दर-वर्ष न केवल कूड़े की मात्रा में बढ़ौतरी हो रही है बल्कि प्लास्टिक और पैकेजिंग सामग्री की बढ़ती हिस्सेदारी के साथ ठोस कचरे के स्वरूप में भी बदलाव नज़र आ रहा है।
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हालांकि कूड़ा प्रबंधन की बढ़ती समस्या ने देश को इस विषय पर नए सिरे से सोचने को मज़बूर किया है और इस संदर्भ में कई तरह के सराहनीय प्रयास भी किए जा रहे हैं। परंतु इस प्रकार के प्रयास अभी तक देश भर में व्यापक स्तर पर कूड़ा प्रबंधन की समस्या से निपटने के लिये काफी नहीं हैं। देश को एक व्यापक कूड़ा प्रबंधन नीति की आवश्यकता है जो विकेंद्रीकृत कूड़ा निपटान प्रथाओं की आवश्यकता पर बल दे ताकि इस क्षेत्र में निजी प्रतिभागियों को हिस्सा लेने का प्रोत्साहन मिल सके।
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री-साइकिलिंग से पैसा और रोजगार दोनों – डॉ चड्ढा
इंडियन प्लास्टिक कंट्रोल एसोसिएशन IPCA की जनरल मैनेजर डॉ. रीना चड्ढा ने बताया की कचरा से न केवल पारिस्थितिकी तंत्र और स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है बल्कि यह समाज पर आर्थिक बोझ को भी बढ़ाता है। कचरा प्रबंधन में भी काफी धन खर्च होता है। कचरा संग्रहण, उसकी छंटाई और पुनर्चक्रण के लिए एक बुनियादी ढांचा बनाना अपेक्षाकृत काफी महंगा होता है। लेकिन एक बार स्थापित होने के बाद री-साइकिल के माध्यम से धन कमाया जा सकता है और रोजगार भी पैदा किया जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार भारत में ठोस कचरा प्रबंधन में सुधार करके 22 प्रकार की बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है।
गीला, सूखा और ठोस कूड़ा
ठोस कचरा (Solid Waste): ठोस कचरा के तहत घरों, कारखानों या अस्पतालों से निकलने वाला कचरा शामिल किया जाता है।
तरल कचरा (Wet Waste): कचरा जल संयंत्रों और घरों आदि से आने वाला कोई भी द्रव आधारित कचरा को तरल कचरा के तहत वर्गीकृत किया जाता है।
सूखा कचरा (Dry waste): कचरा जो किसी भी रूप में तरल या द्रव नहीं होता है, सूखे कचरा के अंतर्गत आता है।
बायोडिग्रेडेबल कचरा (Biodegradable Waste): कोई भी कार्बनिक द्रव्य जिसे मिट्टी में जीवों द्वारा कार्बन-डाइऑक्साइड, पानी और मीथेन में संश्लेषित किया जा सकता है।
नॉनबायोडिग्रेडेबल कचरा (Nonbiodegradable Waste): कोई कार्बनिक द्रव्य जिसे कार्बन-डाइऑक्साइड, पानी और मीथेन में संश्लेषित नहीं किया जा सकता।
कूड़े के निपटारे को लोगों की मानसिकता बदलना जरूरी- डा. वर्मा
राऊंड ग्लॉस फाउंडेशन के मैनेजर डॉ. रजनीश वर्मा ने कहा कि गांवों में लोगों को कचरे के निपटारे हेतु जागरूक व शिक्षित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज में परिवर्तन लाने के लिये लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाया जाना ज्यादा जरूरी है।
सदस्यों ने दिया वर्कशाप सहयोग
इस वर्कशॉप में हरियावल पंजाब के सदस्यों सिफेट वैज्ञानिक डा. राकेश शारदा, समाज सेवक प्रवीण कुमार जगराओं, भुवन गोयल डायरेक्टर एपी रिफाइनरी, मंडी गोबिंदगढ़ के अधिवक्ता संदीप कश्यप, प्रिंसीपल डॉ. दीप्ति शर्मा गढदीवाल, सीनियर अकाउंटेंट मनोज कण्डा नवांशहर जगराओ से मोहित अग्रवाल में सहयोग दिया।