मुख्तार अंसारी का वीरवार देर शाम कार्डियक अरेस्ट से निधन हो गया। बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी ने सीने में दर्द होने की बात कही और अचानक ही दर्द तेज हो गया तो पुलिस ने माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को दुर्गावती मेडिकल कॉलेज में दाखिल करवाया। जहां ईलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।
पोस्टमार्टम जारी
3 डॉक्टरों के पैनल सहित 5 लोगों की टीम मुख्तार के शव का पोस्टमार्टम कर रही है। उसका शव परिजन को सौंपा जाएगा। इसके बाद सड़क के रास्ते मुख्तार को पुश्तैनी घर गाजीपुर लाया जाएगा। यहां काली बाग कब्रिस्तान में उसे सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा। यहां तैयारियां शुरू हो गई हैं।
बेटे ने कहा- पिता को स्लो पॉयज़न दिया गया
माफिया मुख्तार अंसारी की मौत पर उसके बेटे उमर अंसारी ने कहा कि हम भी इंसान हैं। पिता के न रहने पर जो हाल होता है, वैसा ही मेरा है। पिता को वार्ड में भर्ती करने की बजाय 3 दिन पहले ICU में रखा था। उनको आईसीयू से सीधे जेल ले गए। मुझे पापा ने बताया था कि उनको स्लो पॉयज़न दिया जा रहा था।
राजनाथ बोले- जहर देने का आरोप बेबुनियाद
देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने मुख्तार अंसारी की मौत पर लग रहे आरोपों पर जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि जो भी आरोप लगाए जा रहे हैं, वह पूरी तरह से बेबुनियाद हैं। मुख्तार अंसारी को पूरी बचाने की कोशिश की गई थी। जो भी उसके मौत पर आरोप लग रहे हैं, वह गलत हैं।
गाजीपुर में धारा 144 लागू
अंसारी की मौत के बाद गाजीपुर में धारा 144 लागू कर दिया है। मुख्तार अंसारी के बेटे उमर अंसारी को इसकी सूचना दे दी गई है। वकील हेदर के अनुसार मेडिकल कॉलेज को छावनी में तब्दील कर दिया गया है। उन्हें भी मिलने की इजाजत नहीं दी जा रही है। उनसे कहा गया है कि जब जरूरत होगी फोन करके बुला लिया जाएगा। वहीं इसी बीच मऊ और गाजीपुर में सुरक्षा बढ़ाई दी गई है। बांदा में भी सुरक्षा के विशेष इंतजाम है और बड़ी संख्या में पुलिस कर्मी तैनात है।
माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की कहानी
प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार के संबंध रखने वाले मुख्तार अंसारी की कहानी बहुत ही रोचक है। माफिय़ा डॉन कैसे बने और लोगों के दिलों में मुख्तार अंसारी के लिए बहुत ही प्यार था। मुख्तार अंसारी का जन्म गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद में 3 जून 1963 को हुआ था। पिता सुबहानउल्लाह अंसारी और मां का बेगम राबिया एक प्रतिष्ठित राजनीतिक खानदान से हैं।
दादा स्वतंत्र सेनानी थे और गांधी जी के साथ किया था काम
माफिया डॉन कहे जाने वाले मुख्तार अंसारी ने 17 साल से भी ज्यादा समय जेल में ही व्यतीत किया। दादा डॉक्टर मुख़्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता सेनानी थे। गांधी जी के साथ काम करते हुए वह 1926-27 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। मुख़्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को 1947 की लड़ाई में शहादत के लिए महावीर चक्र से नवाज़ा गया था। मुख्तार के पिता सुबहानउल्लाह अंसारी गाजीपुर में अपनी साफ सुधरी छवि के साथ राजनीति में सक्रिय रहे थे। भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में मुख़्तार अंसारी के चाचा लगते थे।
पंजाब की जेल में भी बंद रह चुका है मुख्तार अंसारी
बता दें कि मुख्तार अंसारी को यूपी की बांदा जेल से पंजाब की रोपड़ जेल भेजा गया था। इसके बाद वो लंबे समय तक रोपड़ जेल में बंद रहा। यूपी में बीजेपी सरकार बन जाने के बाद मुख्तार वापस नहीं आना चाहता था। उसे यूपी लाए जाने के लिए दोनों राज्यों की सरकारों के बीच खींचतान चली।
मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद उसे यूपी शिफ्ट करने का फरमान सुनाया। इसके बाद 7 अप्रैल 2021 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भारी सुरक्षा इंतजामों के बीच बाहुबली मुख्तार अंसारी को पंजाब के रोपड़ से हरियाणा के रास्ते आगरा, इटावा और औरैया होते हुए बांदा जेल पहुंचा दिया गया था।
दंगा भड़काने के बाद कर दिया था सरेंडर
मुख्तार अंसारी ने मऊ में दंगा भड़काने के बाद गाजीपुर पुलिस के सामने सरेंडर किया था और तभी से वो जेल में बंद था। पहले गाजीपुर जेल में रखा गया था। फिर वहां से मथुरा जेल भेजा गया था। फिर मथुरा से आगरा जेल और आगरा से बांदा जेल भेज दिया गया था। उसके बाद मुख्तार को बाहर आना नसीब नहीं हुआ। फिर एक मामले में उसे पंजाब की जेल में शिफ्ट कर दिया गया था। लेकिन फिर भी पूर्वांचल में उनका दबदबा कायम रहा। वो जेल में रहकर भी चुनाव जीतता रहा।
रॉबिनहुड जैसी छवि रखता था मुख्तार अंसारी
ठेकेदारी, खनन, स्क्रैप, शराब, रेलवे ठेकेदारी में अंसारी का कब्ज़ा था। जिसके दम पर उसने अपनी सल्तनत खड़ी की थी। मगर ये रॉबिनहुड अगर अमीरों से लूटता था, तो गरीबों में बांटता भी था। ऐसा मऊ के लोग कहते हैं कि सिर्फ दबंगई ही नहीं बल्कि बतौर विधायक मुख्तार अंसारी ने अपने इलाके में काफी काम किया था। सड़कों, पुलों, अस्पतालों और स्कूल-कॉलेजों पर ये रॉबिनहुड अपनी विधायक निधी से 20 गुना ज़्यादा पैसा खर्च करता था।
पूर्वांचल में बोलती थी तूती
मुख्तार अंसारी के दादा स्वतंत्रता सेनानी थे और उसके फौज में नाना ब्रिगेडियर. तो फिर मुख्तार अंसारी माफिया कैसे बन गया। रौबदार मूंछों वाला ये विधायक आज भले ही दुनिया से चल बसा हो लेकिन मऊ और उसके आसपास के इलाके में मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी। कभी वक्त था जब पूरा सूबा मुख्तार के नाम से कांपता था। वो बीजेपी को छोड़कर उत्तर प्रदेश की हर बड़ी पार्टी में शामिल रहा।
मुख्तार अंसारी 24 साल तक लगातार यूपी की विधानसभा पहुंचता रहा। मुख्तार अंसारी भले ही संगठित अपराध का चेहरा बन चुका था. लेकिन गाजीपुर में उसके परिवार की पहचान प्रथम राजनीतिक परिवार की है। सिर्फ डर की वजह से नहीं बल्कि काम की वजह से भी इलाके के गरीब गुरबों में मुख्तार अंसारी के परिवार का सम्मान है।
नाना थे नौशेरा युद्ध के नायक
मुख्तार अंसारी के दादा की तरह नाना भी नामचीन हस्तियों में से एक थे। शायद कम ही लोग जानते हैं कि महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान मुख्तार अंसारी के नाना थे। जिन्होंने 47 की जंग में न सिर्फ भारतीय सेना की तरफ से नवशेरा की लड़ाई लड़ी बल्कि हिंदुस्तान को जीत भी दिलाई। हालांकि वो खुद इस जंग में हिंदुस्तान के लिए शहीद हो गए थे। मुख्तार के पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी कम्यूनिस्ट नेता थे। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी मुख्तार के रिश्ते में चाचा लगते हैं।
पहली बार बसपा से लड़ा था चुनाव
1996 में BSP के टिकट पर जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचने वाले मुख़्तार अंसारी ने 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में भी मऊ से जीत हासिल की। इनमें से आखिरी 3 चुनाव उसने देश की अलग-अलग जेलों में बंद रहते हुए लड़े और जीते थे। राजनीति की ढाल ने मुख्तार को जुर्म की दुनिया का सबसे खरा चेहरा बना दिया और हर संगठित अपराध में उसकी जड़ें गहरी होती चली गईं।
बीजेपी विधायक से थी पुरानी अदावत
सियासी अदावत से ही मुख्तार अंसारी का नाम बड़ा हुआ और वो साल था 2002 जिसने मुख्तार की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। इसी साल बीजेपी के विधायक कृष्णानंद राय ने अंसारी परिवार के पास साल 1985 से रही गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट छीन ली। कृष्णानंद राय विधायक के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके और तीन साल बाद यानी साल 2005 में उनकी हत्या कर दी गई।
कृष्णानंद राय हत्याकांड में आया था नाम
कृष्णानंद राय एक कार्यक्रम का उद्घाटन करके लौट रहे थे। तभी उनकी गाड़ी को चारों तरफ से घेर कर अंधाधुंध फायरिंग की गई। हमला ऐसी सड़क पर हुआ जहां से गाड़ी को दाएं-बाएं मोड़ने का कोई रास्ता नहीं था। हमलावरों ने AK-47 से तकरीबन 500 गोलियां चलाईं और कृष्णानंद राय समेत गाड़ी में मौजूद सभी सातों लोग मारे गए।
बाद में इस केस की जांच यूपी पुलिस से लेकर सीबीआई को दी गई। कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केस 2013 में गाजीपुर से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया। लेकिन गवाहों के मुकर जाने से ये मामला नतीजे पर न पहुंच सका।
दिल्ली की स्पेशल अदालत ने 2019 में फैसला सुनाते कहा कि अगर गवाहों को ट्रायल के दौरान विटनेस प्रोटेक्शन स्कीम 2018 का लाभ मिलता तो नतीजा कुछ और हो सकता था तो गवाहों का अकाल पड़ने से मुख्तार अंसारी जेल से छूट गया। मुख्तार भले ही जेल में रहा लेकिन उसका गैंग हमेशा सक्रिय रहा। लेकिन योगी सरकार आने के बाद उसके बुरे दिन शुरू हो गए थे।
योगी सरकार ने कसा शिकंजा
मुख्तार अंसारी पर उत्तर प्रदेश में 52 केस दर्ज हैं। यूपी सरकार की कोशिश 15 केस में मुख्तार को जल्द सजा दिलाने की थी। योगी सरकार अब तक अंसारी और उसके गैंग की सैकड़ों करोड़ों की संपत्ति को या तो ध्वस्त कर चुकी है या फिर जब्त। मुख्तार गैंग की अवैध और बेनामी संपत्तियों की लगातार पहचान की जा रही है। मुख्तार गैंग के अब तक करीब 100 अभियुक्त गिरफ्तार किए जा चुके हैं, जिनमें 75 गुर्गों पर गैंगेस्टर एक्ट में कार्रवाई हो चुकी है। कुल मिलाकर मुख्तार अंसारी योगी सरकार के टारगेट पर था।