पंजाब के टेंपरेचर में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है और ठंड बढ़ गई है। अगले कुछ दिनों में बारिश की कोई संभावना नहीं हैं। एयर क्वालिटी इंडेक्स ऑरेंज लेवल पर पहुंच गई है। इस कारण सुबह कोहरा देखने को मिल रहा है। एक तरफ इस का बड़ा कारण पराली जलाने को माना जा रहा है। आठ नवंबर से अब तक 932 एफआईआर दर्ज हो चुकी है।
वहीं अगर टेंपरेचर की बात करें तो राज्य का हाई टेंपरेचर 27 डिग्री और न्यूनतम टेंपरेचर 12 डिग्री रहने का अनुमान है। मौसम विभाग के मुताबिक अगले कुछ दिनों में तापमान में और गिरावट आएगी। बढ़ती ठंड को देखते हुए लोगों ने गर्म कपड़े पहनना शुरू कर दिया है।
पराली जलाने के रोक पर हर संभव प्रयास किया जा रहा
इस बीच एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) बेहद खतरनाक स्तर पर बना हुआ है। जहरीली हवा में सांस लेना जानलेवा हो सकता है। प्रशासन ने किसानों को मनाने की कोशिशें बेअसर साबित हुई हैं, जिससे लोगों का दम घुट रहा है।
राज्य में रेड अलर्ट है जारी
पंजाब डीजीपी ने पराली जलाने पर रेड अलर्ट जारी किया है और कहा है किसानों पर सख्त कार्रवाई की जा रही है। सड़कों पर चलते समय सावधानी बरतने को कहा है। सर्दी के मौसम में वाहनों को भी अच्छी स्थिति में रखना चाहिए। इससे एक्सीडेंट में रोक लगेगी।
बता दें कि इस बार पराली जलाने के 34 हजार के पार कर गए हैं। इसके चलते सुबह शाम कई इलाकों में धुआं छाया रहता है। पिछले 17 दिनों में से 14 दिनों में एयर क्वालिटी बहुत खराब रही है।
पराली जलाने पर किसानों को भी हो रहा नुकसान
इससे एयर पॉल्यूशन के साथ साथ जमीन को भी नुकसान पहुंचता है। पराली का धुंआ उड़ता हुआ वायुमंडल में आ जाता है, जिससे दिन में भी धुंध छा जाती है और लोग साफ सुथरी हवा के लिए तरसने लगते हैं। पराली जलाने से किसानों काे भी नुकसान होता है। केंचुआ को किसानों का दोस्त माना जाता है। क्योंकि यह जमीन को भुरभुरा बनाता है। जिससे उसकी उर्वरक शक्ति बढ़ती है, लेकिन पराली जलाने से केंचुआ मर जाता है।
नाइट्रोजन पहुंचाने वाली बैक्टीरिया मर जाती है। पराली जलाने से खेत की मिट्टी में पाया जाने वाला राइजोबिया बैक्टीरिया भी मर जाता है। यह बैक्टीरिया पर्यावरण की नाइट्रोजन को जमीन में पहुंचाता है जिससे खेत की पैदावार की कैपेसिटी बढ़ती है।
पराली को इस तरह से भी कर सकते है उपयोग
इसके अलावा वहां किसान धान की पराली पशुओं के लिए सूखे चारे के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। पराली की जिन किस्मों को पशु खाना पसंद नहीं करते उसका इस्तेमाल सर्दी में उन्हें गर्म रखने के लिए भी किया जाता है और जैव उर्वरक के रूप में भी।
खाद और बायोगैस में बदला जा सकता है
बायोगैस और उर्वरक(Fertilizers) के कई उपाय हैं लेकिन सरकार को यह फैसला करने की जरूर है कि किसे प्रचारित करना है। पंजाब में ही कई ऐसी कंपनियां हैं जिन्होंने धान की पराली को खाद और बायोगैस में तब्दील करने का तरीका विकसित किया है। जैसे फाजिल्का में संपूर्ण एग्री वेंचर्स ने पल्वराइजर और डाइजेस्टर विकसित किया है जिसकी क्षमता हर दिन 70 टन है।
हालांकि इसे स्थापित करने की लागत करीब 35 करोड़ रुपए है। किसान किसी भी रूप में पराली ला सकते हैं। इसे टुकड़ों में तोड़ा जाता है और डाइजेस्टर में प्राकृतिक अवयवों से इसका निपटान किया जाता है।
इस दौरान उत्पन्न बायोगैस को बिजली कंपनियां खुशी खुशी खरीदा जाता है। बाकी अवशेष को ऊंचे दाम वाले उर्वरक में तब्दील कर दिया जाता है। बहुत-सी कंपनियां धान की पराली से बायोगैस उत्पादन का दावा करती हैं लेकिन जो ऐंजाइम का इस्तेमाल नहीं करते