Garud Commando, most dangerous special force of the Indian Air Force : हमारी सेना की स्पेशल फोर्स का इतिहास और खासियत आपको गौरवान्वित कर देगा। हम बात कर रहे हैं भारतीय वायुसेना की गरुड़ कमांडो की। भारतीय सेना की वीरता से वैसे तो पूरा जग परिचित है मगर इसे उन स्पेशल फोर्सेज में गिना जाता है जिनका नाम सुनते ही दुश्मन कांपने लगते हैं। इस फोर्स का हिस्सा होना बहुत कठिन है। इसकी ट्रेनिंग को पूरा करना अपने आप में एक उपलब्धि है। बता दें एक हजार दिन के कठोर प्रशिक्षण के बाद तैयार होता गरुड़ कमांडो। आज हम आपको इसकी खासियत और इतिहास के बारे में बताएंगे।
ऐसे हुआ था गरुड़ फोर्स का गठन
2001 में जम्मू-कश्मीर में भारतीय वायुसेना के दो एयरबेस पर आतंकियों ने हमला किया था। इन हमलों के बाद वायु सेना बेस की सुरक्षा और जवाबी कार्रवाई के लिए कमांडो फोर्स की जरूरत महसूस की गई। इसके बाद वायुसेना ने अपनी चयन प्रक्रिया तैयार की और 2004 में गरुड़ कमांडो फोर्स का गठन किया। इस फोर्स को पैरा एसएफ और भारतीय नौसेना के MARCOS की तर्ज पर तैयार किया गया।
70 सदस्यीय टीम का स्क्वाड्रन लीडर
जहां MARCOS और पैरा SF में चयन के लिए विभिन्न सैन्य इकाइयों से कमांडो को बुलाया जाता है और उनका परीक्षण किया जाता है, वहीं गरुड़ कमांडो का चयन सेना द्वारा किया जाता है और वे इसके स्थायी कर्मी होते हैं। हर वायुसेना स्टेशन पर तैनात गरुड़ कमांडो के 60 से 70 सदस्यों की टीम का नेतृत्व एक स्क्वाड्रन लीडर या फ्लाइट लेफ्टिनेंट रैंक का अधिकारी करता है।
हर जगह दिख रहा वीरता का शौर्य
इस कमांडो फोर्स को सिर्फ एयरफोर्स बेस और काउंटर इंसर्जेंसी के लिए रखा गया था। हालांकि, समय के साथ अब देश की हर मुश्किल परिस्थिति में गरुड़ कमांडो की तैनाती की जा रही है। हाल ही में इस कमांडो फोर्स को भारत-चीन और मराठों के बीच अहम चोटियों पर तैनात किया गया था। इसके साथ ही इन्हें 2019 से जम्मू-कश्मीर के आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल ऑपरेशन डिवीजन में शामिल किया गया है जिसे तालिबान के खिलाफ कार्रवाई में शामिल किया जा रहा है।