Four fronts formed in Kashmir politics : अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार हो रहे लोकसभा चुनाव में कश्मीर में मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है। भाजपा लड़ाई में नहीं है, लेकिन मैदान से बाहर रहने के बाद भी वह केंद्र में है। भौगोलिक दृष्टि से कश्मीर तीन हिस्सों में बंटा हुआ है। इनमें दक्षिण, मध्य व उत्तर कश्मीर है। दक्षिण कश्मीर में अनंतनाग सीट है। हालांकि, परिसीमन के बाद इसमें जम्मू संभाग के राजोरी-पुंछ जिले की सात विधानसभा क्षेत्रों को जोड़ा गया है। मध्य कश्मीर में श्रीनगर और उत्तर कश्मीर में बारामुला की सीट है। 370 हटने के बाद बदली परिस्थितियों में कश्मीर में आतंकवाद-अलगाववाद कम हुआ है तो कश्मीर में अछूत मानी जाने वाली भाजपा ने भी अपनी शक्ति बढ़ाई है। 370 हटने के बाद ही पीडीपी से अलग होकर नई पार्टी जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी बनाने वाले अल्ताफ बुखारी ने भी कश्मीर के हर इलाके में अपने कैडर तैयार किए हैं।
कश्मीर की राजनीति में चार मोर्चे
कश्मीर की राजनीति में चार मोर्चे बन गए हैं। एक मोर्चा इंडिया गठबंधन का है जिसमें नेकां और कांग्रेस मिलकर चुनाव मैदान में हैं। दूसरा मोर्चा नेकां को रोकने के लिए अपनी पार्टी और पीपुल्स कांफ्रेंस का बना है। पीडीपी अकेले चुनाव मैदान में है जिनके निशाने पर भाजपा और नेकां है। चौथा मोर्चा गुलाम नबी आजाद की नई पार्टी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) का है जिसने दो प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। नेकां और पीडीपी तीन सीटों पर मैदान में है तो अपनी पार्टी- दो, डीपीएपी-दो और पीपुल्स कांफ्रेंस ने एक सीट पर चुनाव लड़ने का एलान किया है। नेकां और पीडीपी भी सभी इलाकों में सक्रिय है, लेकिन पीडीपी की दक्षिण कश्मीर में मजबूत स्थिति मानी जाती है। पीपुल्स कांफ्रेंस का उत्तरी कश्मीर में प्रभाव है।
चुनावी दंगल में नेकां-कांग्रेस
इंडिया गठबंधन के दोनों सहयोगी नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस संयुक्त रूप से चुनाव मैदान में हैं। कश्मीर में नेकां के प्रत्याशी है और कांग्रेस समर्थन दे रही है। दोनों ही दलों के मुख्य निशाने पर भाजपा रही है। नेकां को जहां अपने धुर विरोधी पीडीपी से चुनौती मिल रही है, वहीं इस बार पीपुल्स कांफ्रेंस और अपनी पार्टी के गठबंधन से श्रीनगर और बारामुला सीट पर चुनौती पेश आ रही है। अन्य प्रभावशाली लोगों की ओर से भी पीपुल्स कांफ्रेंस को समर्थन दिया जा रहा है। बडगाम के प्रभावशाली नेता नजीर खान की ओर से भी सज्जाद गनी लोन को समर्थन दिया जा रहा है।
पीपुल्स कांफ्रेंस (पीसी)-अपनी पार्टी
यह गठबंधन सीधे तौर पर नेकां पर हमले कर रहा है। अनुच्छेद 370 हटने के दौरान नेकां के सांसद ही थे, लेकिन इन्होंने कुछ भी नहीं किया। विकास कार्यों को भी लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं कि कश्मीर के विकास के लिए उन्होंने क्या काम किया। यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि कश्मीर में हिंसा के लिए नेकां ही जिम्मेदार है। पीडीपी पर भी हमले किए जा रहे हैं कि उसने भाजपा से सत्ता के लिए हाथ मिलाया था। उसका नाता केवल सत्ता से है।
पीडीपी
पीडीपी की ओर से भाजपा तथा केंद्र के फैसलों को चुनाव प्रचार में आधार बनाया जा रहा है। पार्टी की ओर से यह कहा जा रहा है कि भाजपा ने कश्मीर को जेल में तब्दील कर दिया है। 370 हटने के बाद भी हालात में किसी प्रकार का बदलाव नहीं आया है। पीडीपी यह भी प्रचारित कर रही है कि महबूबा को संसद में जाने से रोकने के लिए सभी पार्टियां लामबंद हो गई हैं। नेकां को भी पार्टी घेर रही है। टिकट बंटवारे में किए गए भेदभाव के बारे में भी आम जनता को बताया जा रहा है।
डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी)
पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) बारामुला को छोड़कर दो सीटों पर लड़ रही है। गुलाम नबी आजाद ने खुद पार्टी की कमान संभाल रखी है। पार्टी की ओर से जम्मू-कश्मीर के विकास को मुद्दा बनाया जा रहा है। उमर और आजाद के बीच कुछ दिन पहले जुबानी जंग खूब चली थी। इसमें उमर की ओर से आजाद को राज्यसभा भेजने की बात कही गई तो जवाब में आजाद ने उमर पर हमले करते हुए भाजपा शासनकाल में उमर के मंत्री रहने पर सवाल उठाए।